हरियाणा में अपराध और गैंगवार का सिलसिला रुकने का नाम नहीं ले रहा है। बीती रात कुरुक्षेत्र पुलिस और यमुनानगर में हुई कार्रवाई ने एक बार फिर से फेक एनकाउंटर और असली मुठभेड़ की बहस को सामने ला दिया है। इसी बीच लॉरेंस बिश्नोई गैंग का शूटर काला राणा सोशल मीडिया पर सामने आया है और उसने पुलिस प्रशासन को खुली धमकी दी है। ऐसे मामलों में सबसे बड़ा सवाल यही खड़ा होता है कि आखिर ये मुठभेड़ असली होती हैं या फेक तरीके से बनाई जाती हैं।
लॉरेंस गैंग और हरियाणा पुलिस का टकराव क्यों बढ़ रहा है
लॉरेंस बिश्नोई गैंग का नाम अब हरियाणा, पंजाब और दिल्ली तक अपराध की दुनिया में फैल चुका है। इस गैंग से जुड़े बदमाश आए दिन शराब ठेकों, शो-रूम या कारोबारी प्रतिष्ठानों पर फायरिंग कर दहशत फैलाते हैं। ताज़ा उदाहरण बीती रात का है, जब कुरुक्षेत्र पुलिस ने 50 हजार रुपये के इनामी बदमाश रजत को एनकाउंटर में ढेर कर दिया। रजत पर आरोप था कि उसने लाडवा के शराब ठेके और यमुनानगर के शोरूम पर फायरिंग की थी। पुलिस का दावा है कि यह मुठभेड़ असली थी और इसमें आत्मरक्षा में गोली चली, लेकिन आम जनता और परिवार इसे फेक एनकाउंटर बता रहे हैं।
काला राणा की वायरल धमकी और सोशल मीडिया पर हड़कंप
एनकाउंटर के तुरंत बाद ही कुख्यात गैंगस्टर काला राणा का सोशल मीडिया पोस्ट सामने आया। राणा ने सीधा हरियाणा पुलिस को धमकी देते हुए लिखा कि अगर उसके साथी को इस तरह से मारा गया तो जवाब भुगतना पड़ेगा। उसके इस बयान ने न सिर्फ पुलिस बल को अलर्ट कर दिया बल्कि जनता के बीच भी खौफ पैदा कर दिया है। अपराध की दुनिया में ऐसे बयानों का असर गहरा होता है क्योंकि यह सीधा चुनौती देने जैसा है।
फेक एनकाउंटर कैसे होता है और क्यों उठती है शंका
भारत में मुठभेड़ों की लंबी फेहरिस्त रही है। कई बार जब बदमाश पुलिस की गिरफ्त से बच जाते हैं, तो अचानक से एनकाउंटर की खबर आती है। फेक एनकाउंटर की पहचान करना आसान नहीं होता क्योंकि पुलिस हमेशा यह दावा करती है कि गोलीबारी आत्मरक्षा में हुई। लेकिन ऐसे मामलों में कुछ संकेत अक्सर मिलते हैं। अपराधियों की मौत में हमेशा लगभग एक जैसा पैटर्न दिखाई देता है, जैसे गोली सामने से ही लगी हो या मुठभेड़ सुनसान जगह पर हुई हो। यही वजह है कि आम जनता के बीच यह चर्चा बार-बार जोर पकड़ती है कि यह कार्रवाई सच्ची थी या बनाई गई।
पुलिस और अपराधियों के बीच इस खेल का असर आम जनता पर
जब पुलिस किसी गैंगस्टर को मुठभेड़ में मार गिराती है, तो एक तरफ जनता चैन की सांस लेती है कि अपराध कम होगा। लेकिन दूसरी तरफ, यह डर भी रहता है कि कहीं निर्दोष को न मार दिया गया हो। फेक एनकाउंटर की आशंका से आम आदमी न्याय प्रणाली पर सवाल उठाता है। अदालत और मानवाधिकार आयोग बार-बार पुलिस को आगाह करते रहे हैं कि किसी भी गिरफ्तारी या एनकाउंटर में नियमों और कानून की प्रक्रिया का पालन ज़रूरी है।
हरियाणा में बढ़ता अपराध और गैंगस्टरों की दहशत
हरियाणा के अलग-अलग जिलों में पिछले कुछ वर्षों से गैंगवार जैसी घटनाएं लगातार बढ़ी हैं। लॉरेंस बिश्नोई गिरोह और उससे जुड़े शूटर अक्सर कारोबारियों से वसूली करने और न मानने वालों को धमकाने के लिए फायरिंग कर देते हैं। लाडवा और यमुनानगर की ताज़ा वारदात इसका जीता-जागता उदाहरण हैं। ऐसे में पुलिस पर लगातार दबाव होता है कि वह अपराधियों को पकड़कर कार्रवाई करे। लेकिन जब पुलिस कार्रवाई मुठभेड़ के रूप में होती है, तो प्रश्न यही उठते हैं कि क्या यह न्याय संगत तरीका है।
फेक एनकाउंटर का सच समझना इतना मुश्किल क्यों होता है
सबसे बड़ी समस्या यही है कि एनकाउंटर का सच सामने लाना बेहद कठिन है। जब पुलिस कहती है कि बदमाश ने फायरिंग की और जवाबी कार्रवाई में मारा गया, तो गवाह कम ही होते हैं। घटनास्थल पर मौजूद सबूत अक्सर पुलिस के ही कब्जे में होते हैं। ऐसे में सच सामने आना आसानी से मुमकिन नहीं होता। यही कारण है कि ज्यादातर मामलों में परिवार न्यायालय की शरण लेते हैं और जांच आयोग बैठाया जाता है। लेकिन तब तक मामला थम चुका होता है और जनता असमंजस में ही रहती है।
लॉरेंस गैंग और काला राणा की धमकी का भविष्य पर असर
काला राणा जैसे गैंगस्टर जब पुलिस को खुलेआम चुनौती देते हैं, तो इसका असर सीधा प्रशासन की छवि पर पड़ता है। जनता को लगता है कि अपराधी अब सोशल मीडिया का सहारा लेकर दबाव बनाने लगे हैं। यदि यह सिलसिला बढ़ा, तो पुलिस पर कार्रवाई का बोझ और ज्यादा बढ़ जाएगा। दूसरी ओर, गैंगस्टर यह समझते हैं कि एनकाउंटर का डर उनके नेटवर्क को कमज़ोर करता है। यही वजह है कि वे धमकी और प्रचार का सहारा लेकर अपनी मौजूदगी दिखाने की कोशिश करते हैं।
फेक एनकाउंटर पर समाज की नज़र और न्याय की उम्मीद
भारतीय समाज में जनता हमेशा न्याय की उम्मीद करती है। कोई भी व्यक्ति चुपके से यह नहीं चाहता कि पुलिस कानून हाथ में ले और अदालत को दरकिनार किया जाए। लेकिन जब बदमाश खुलेआम गोलियां चलाते हैं और आम लोगों की जान खतरे में डालते हैं, तो एक बड़ा हिस्सा पुलिस की कार्रवाई का समर्थन भी करता है। इस दुविधा में फंसे समाज को पूरी पारदर्शिता और भरोसा चाहिए। यदि पुलिस ईमानदारी से जांच और सबूत पेश करे तो फेक एनकाउंटर जैसी चर्चाओं को रोका जा सकता है।
कानून और न्याय ही असली रास्ता
कुरुक्षेत्र और यमुनानगर की ताज़ा घटना ने एक बार फिर सबको सोचने पर मजबूर किया है कि क्या अपराध से निपटने का यही तरीका होगा। लॉरेंस गैंग और उसके गुर्गे जितनी धमकियाँ दें, पुलिस को उतना ही कानून का पालन करते हुए आगे बढ़ना होगा। समाज तभी विश्वास करेगा जब मुठभेड़ के मामलों में पूरी पारदर्शी जांच होगी। फेक एनकाउंटर का सच चाहे जो भी हो, अंत में जीत लोकतांत्रिक व्यवस्था और कानून की होनी चाहिए।