कभी-कभी खबरें सिर्फ घटनाएं नहीं होतीं, बल्कि झटका होती हैं — ऐसा झटका जो एक पूरे शहर की नींद उड़ा देता है। लाल किले के बाहर हुआ धमाका भी कुछ वैसा ही था। ऊपर से देखने में एक सामान्य कार ब्लास्ट, पर असल में यह कहानी कहीं गहरी थी। और इसका सिरा जा रहा था दिल्ली से कुछ किलोमीटर दूर, फरीदाबाद की उस बिल्डिंग तक, जिसे अब लोग ‘आतंक की फैक्ट्री’ कह रहे हैं।
एक शहर, एक साजिश — और बहुत से सवाल
मैंने अपने पत्रकारिता के शुरुआती दिनों में कई बड़े हादसे देखे हैं — मानेसर फैक्ट्री विस्फोट से लेकर दिल्ली के बटला हाउस एनकाउंटर तक। लेकिन इस बार जो बात मुझे भीतर तक हिला गई, वो थी इस साजिश की बारीकी। हर चीज़ सोच-समझकर की गई थी। कार की नंबर प्लेट नकली थी, ईंधन पाइप में बदलाव था और टाइमिंग डिवाइस इतना सटीक कि सेकंड का फर्क भी नहीं पड़ा।
अब यह सामने आ रहा है कि धमाके के लिए जो विस्फोटक इस्तेमाल हुआ, वो फरीदाबाद की एक बंद पड़ी प्रिंटिंग यूनिट में तैयार किया गया था। पुलिस और NIA ने उस जगह से भारी मात्रा में रसायन, सर्किट बोर्ड और वायर बरामद किए हैं। सोचिए, वही इलाका जहां रोज़ लोग दूध-सब्ज़ी लेने जाते हैं, वहां बम तैयार हो रहे थे — यह बात अपने आप में डरा देने वाली है।

फरीदाबाद का चेहरा अब शक में
मैं कई बार फरीदाबाद गया हूं — एक समय ये शहर NCR का शांत हिस्सा माना जाता था। लेकिन अब यहां के लोग खुद कह रहे हैं कि “हमने कभी सोचा भी नहीं था कि हमारे बगल में कोई ऐसा काम चल रहा होगा।” एक स्थानीय दुकानदार ने मुझसे कहा, “साहब, वो कमरे में हमेशा खिड़कियां बंद रहती थीं... पर कभी शक नहीं किया।”
यानी ये सिर्फ एक अपराध नहीं था, ये भरोसे का भी कत्ल था। सरकारें चाहे कितनी भी चौकसी बरतें, जब साजिश अंदर से रची जाती है, तब कोई दीवार सुरक्षा नहीं देती। और यही वजह है कि NIA जांच अब पूरे नेटवर्क पर केंद्रित है — कौन फंडिंग कर रहा था, किसने लॉजिस्टिक्स दिए, और आखिर ये धमाका किसी बड़े प्लान का हिस्सा तो नहीं?
लाल किला — प्रतीक से निशाना बना
लाल किला सिर्फ एक ऐतिहासिक धरोहर नहीं है, यह भारत की आत्मा है। उस पर हमला मतलब पूरे देश को डराने की कोशिश। और यह बात NIA भी मान रही है कि जगह का चुनाव प्रतीकात्मक था। यहां संदेश साफ़ था — डर फैलाना और भरोसे को तोड़ना।
लेकिन एक बात भी साफ है — दिल्ली अब वो शहर नहीं जो चुप रहे। लोग सोशल मीडिया पर सवाल पूछ रहे हैं, फोटो शेयर कर रहे हैं, और प्रशासन पर दबाव बना रहे हैं कि “इस बार जवाब चाहिए, और पूरा चाहिए।”
सरकार और सिस्टम की अग्नि परीक्षा
दिल्ली पुलिस और NIA अब चौबीसों घंटे काम में लगी हैं। मैंने खुद कुछ अफसरों से बात की, जो बिना रुके तीन दिन से फील्ड में हैं। उनमें से एक ने कहा, “यह हमला सिर्फ एक जगह नहीं, हमारे सिस्टम की कमजोरी पर है।” और सही कहा उसने। क्योंकि ये वो वक्त है जब हर एजेंसी की साख दांव पर है।
दिल्ली की सड़कों पर डर, लेकिन उम्मीद भी
धमाके के बाद का माहौल आज भी लोगों के दिमाग में ताज़ा है। लोग अब रात को निकलने से डर रहे हैं, बच्चे स्कूल जाने में घबराते हैं। लेकिन इसके बावजूद, जो चीज़ इस शहर को जिंदा रखती है — वो है इसकी हिम्मत।
एक रिक्शा चालक ने मुझसे कहा, “साहब, डर तो है, पर काम बंद नहीं कर सकते। ज़िंदगी चलती रहती है।” बस यही दिल्ली की पहचान है। गिरती है, उठती है, फिर चल पड़ती है।
अंतिम बात – साजिश जितनी बड़ी थी, जवाब उतना सटीक होना चाहिए
मेरी नज़र में यह केस सिर्फ एक धमाका नहीं, बल्कि एक चेतावनी है कि हमारे शहरों की सुरक्षा पर फिर से सोचने का वक्त आ गया है। अगर फरीदाबाद जैसी जगह पर भी ‘आतंक की फैक्ट्री’ चल सकती है, तो हमें यह मान लेना चाहिए कि खतरा हमेशा हमारे सोच से थोड़ा करीब होता है।
और यही समय है जब देश को केवल जांच नहीं, बल्कि जवाब चाहिए — सटीक, साफ़ और भरोसेमंद। क्योंकि हर बार सिर्फ ‘कड़ी निंदा’ से देश नहीं चलता।


