फ्रांस में सरकार के खर्चों में कटौती और बजट सुधारों को लेकर लोगों का गुस्सा अब सड़कों पर साफ नजर आ रहा है। अमेरिका के बाद अब फ्रांस में भी शटडाउन जैसी स्थिति पैदा हो गई है। लगातार विरोध और हड़तालों ने राजधानी पेरिस से लेकर छोटे कस्बों तक का माहौल बदल दिया है। इस आंदोलन में आम कामगारों के साथ रिटायर्ड लोग, छात्र और सामाजिक संगठन भी शामिल हो गए हैं। लोगों का कहना है कि यह कदम देश की जनता पर सीधा बोझ डालता है और इसका सबसे ज्यादा असर गरीब और मध्यम वर्ग पर पड़ेगा। विरोध प्रदर्शन का असर इतना व्यापक रहा कि दुनिया के सबसे मशहूर पर्यटन स्थलों में से एक आइफल टॉवर तक बंद कर दिया गया।
फ्रांस के शहरों में विरोध की आवाज
करीब 200 से अधिक शहरों में हजारों लोग सड़कों पर उतर आए। हर जगह लोग नारे लगा रहे थे और सरकार से खर्चों में कटौती वापस लेने की मांग कर रहे थे। पेरिस, लियोन, मार्से और टूलूज़ जैसे बड़े शहरों में तो रेल और बस सेवाओं पर भी असर पड़ा। कई जगह स्कूल बंद रहे और सार्वजनिक दफ्तरों का कामकाज भी रुक गया। यह विरोध केवल किसी एक वर्ग तक सीमित नहीं रहा बल्कि इसमें समाज के हर हिस्से के लोग शामिल हुए।
कामगारों और छात्रों की भूमिका
इस हड़ताल में सबसे बड़ी संख्या कामगारों और छात्रों की रही। फैक्ट्री में काम करने वाले मजदूर, बैंक और दफ्तरों के कर्मचारी, अस्पतालों के स्टाफ से लेकर ट्रांसपोर्ट सेक्टर के ड्राइवर तक सबने अपनी आवाज उठाई। छात्र संगठनों ने भी खुलकर इस आंदोलन का समर्थन किया। उनका कहना है कि अगर खर्चों में कटौती जारी रही तो भविष्य की पढ़ाई और नौकरियों पर सीधा असर पड़ेगा।
रिटायर्ड लोग क्यों हैं नाराज
रिटायर्ड लोगों का मानना है कि सरकार के फैसलों का सीधा असर उनकी पेंशन और चिकित्सा सुविधाओं पर पड़ेगा। वह पहले से ही महंगाई और बढ़ते खर्चों से परेशान हैं। अब अगर मदद की बजाय और बोझ डाला जाएगा तो उनका जीवन मुश्किल हो जाएगा। इसी वजह से बड़ी संख्या में बुजुर्ग भी अपने घरों से निकलकर प्रदर्शन में शामिल हुए।
पेरिस का आइफल टॉवर बंद होने का असर
हड़ताल का सबसे बड़ा असर पेरिस में देखने को मिला। यहां पर्यटकों के लिए बड़ा झटका तब लगा जब आइफल टॉवर बंद कर दिया गया। हर साल लाखों लोग इसे देखने आते हैं और पेरिस की पहचान माने जाने वाले इस स्थल पर ताला लगना अपने आप में बड़ी खबर है। पर्यटकों को टिकट रद्द करने पड़े और हजारों लोगों की योजनाएं बिगड़ गईं। यह दिखाता है कि विरोध आंदोलन कितना बड़ा रूप ले चुका है।
अमीरों पर टैक्स बढ़ाने की मांग
विरोध करने वाले लोगों का कहना है कि अगर सरकार को पैसे की जरूरत है तो इसका हल गरीबों और मध्यम वर्ग से नहीं बल्कि अमीरों से निकाला जाए। उनकी साफ मांग है कि खर्चों में कटौती करने के बजाय अमीर वर्ग और बड़ी कंपनियों पर टैक्स बढ़ाया जाए। लोगों का आरोप है कि सरकार आम जनता के लिए मुश्किलें बढ़ा रही है जबकि बड़ी पूंजीपतियों को छूट दे रही है।
सरकार का रुख और जनता की उम्मीदें
फ्रांस की सरकार का कहना है कि देश की आर्थिक हालत को सुधारने के लिए यह कदम जरूरी है। सरकार का तर्क है कि अगर खर्चों पर नियंत्रण नहीं किया गया तो आने वाले वर्षों में स्थिति और बिगड़ सकती है। लेकिन जनता का कहना है कि यह बोझ उनकी जेब पर डालने का कोई समाधान नहीं है। लोग उम्मीद कर रहे हैं कि सरकार उनकी बात सुनेगी और ऐसा रास्ता निकालेगी जिसमें आम आदमी को राहत मिले।
आगे क्या होगा
फ्रांस में यह हड़ताल और विरोध अब एक बड़ी राजनीतिक चुनौती बन चुका है। अगर सरकार ने जल्द कोई कदम नहीं उठाया तो यह आंदोलन और भड़क सकता है। विशेषज्ञ मानते हैं कि लंबे समय तक विरोध जारी रहा तो इसका असर सिर्फ फ्रांस ही नहीं बल्कि यूरोप की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ सकता है। पर्यटन, व्यापार और निवेश पर इसका सीधा असर देखा जा सकता है। फिलहाल जनता यही चाहती है कि सरकार उनकी आवाज सुने और जल्द ही कोई ठोस समाधान निकाले।
फ्रांस में शटडाउन जैसे हालात ने यह साबित कर दिया है कि जनता की ताकत कितनी बड़ी होती है। जब कामगार, छात्र, बुजुर्ग और आम लोग एक साथ खड़े हो जाते हैं तो सबसे मजबूत सत्ता भी उन्हें अनदेखा नहीं कर सकती।