आजकल अदालतों में भगवान के नाम से कई केस देखे और सुने जाते हैं, लेकिन गादरवाड़ा गांव से आई खबर कुछ ऐसी है जो सभी को हैरान कर देती है। यहां खुद 'सिया-राम' की मूर्ति लेकर लोग कलेक्ट्रेट पहुंचे और अपनी समस्या कलेक्टर के सामने रखी। यह घटना किसी कहानी की तरह लगती है, लेकिन यह सच है।
मंदिर माफी की जमीन और रास्ते को लेकर विवाद
ग्राम गादरवाड़ा ब्राह्मणान में भगवान सीतारामजी के मंदिर की जमीन है, जिसे 'मंदिर माफी' का नाम दिया गया है। इस जमीन के रास्ते को कुछ लोगों ने कब्जा कर बंद कर दिया है, जिससे मंदिर के पुजारी और ग्रामीण परेशान हैं। उन्होंने अपनी समस्या कलेक्टर के सामने रखने की ठानी।
ग्रामीणों की मांग क्या है?
ग्रामीण बताते हैं कि गादरवाड़ा ब्राह्मणान से बास-गुढ़लिया सड़क तक जाने वाला कच्चा रास्ता, जो खाता संख्या 21 में है, मालियों की ढाणी के लोगों ने बंद कर रखा है। इस रास्ते पर कब्जा कर लिया गया है। इस वजह से मंदिर की सेवा और पूजा करना भी मुश्किल हो गया है। जिन परिवारों का जीवन इसी पूजा से जुड़ा है वे भी इस समस्या से बहुत प्रभावित हुए हैं।
पुजारी लल्लूराम शर्मा की बात
पुजारी लल्लूराम शर्मा बताते हैं कि बांदीकुई तहसील में कुछ पटवारी लोग लोगों को गुमराह कर रहे हैं और खुद को एसडीएम बताते हैं। इस वजह से जमीन विवाद और लड़ाई-झगड़ा बढ़ गया है। प्रशासन को कई बार शिकायत की गई लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है।
रेलवे लाइन के पास रास्ता भी विवादित
रेलवे के ठेकेदार की मिलीभगत के कारण मालियों की ढाणी के लिए रेलवे लाइन के पास से रास्ता दिया गया है, जिसे लेकर विवाद और गहरा गया है। ग्रामीण चाहते हैं कि गाँव के पास रेलवे फाटक नंबर 164 और 165 के बीच उचित रास्ता दिया जाए।
पुजारियों का आक्रोश और आशंका
मंदिर के पुजारी और ग्रामीण लंबे समय से अधिकारियों के चक्कर काट रहे हैं, लेकिन उनकी कोई सुनवाई नहीं हो रही। वे देर से न्याय पाने की उम्मीद लेकर भगवान की मूर्ति लेकर कलेक्ट्रेट में जनसुनवाई में पहुंचे हैं। उन्होंने चेतावनी दी है कि यदि उनकी समस्या का उचित समाधान नहीं हुआ तो वे आंदोलन और आत्मदाह तक के लिए तैयार हैं।
कलेक्टर की प्रतिक्रिया और आगे की कार्रवाई
कलेक्टर देवेंद्र कुमार ने मामले को गंभीरता से लिया है और जांच के आदेश दिए हैं। उन्होंने आश्वासन दिया है कि जल्द ही इस विवाद का निवारण किया जाएगा।यह मामला सिर्फ सड़क विवाद तक सीमित नहीं है, बल्कि एक विश्वास की कहानी है जो लोगों को अपने धार्मिक स्थलों की रक्षा के लिए मजबूर करती है। जब भगवान की मूर्ति लेकर लोग न्याय के लिए जनसुनवाई में आते हैं तो प्रशासन को इस ओर ध्यान देना चाहिए और जल्दी से सुधार की दिशा में कदम उठाने चाहिए।
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