गहलोत की एंट्री और तेजस्वी-सहनी की ताजपोशी : 24 घंटे में ऐसे लागू हुआ महागठबंधन का RJD फॉर्मूला

बिहार की सियासत में 24 घंटे में हुआ एक बड़ा राजनीतिक मोड़। गहलोत की एंट्री और तेजस्वी-सहनी की ताजपोशी के साथ महागठबंधन ने नया समीकरण बना दिया है। आरजेडी के दबदबे और कांग्रेस की सहमति से तैयार हुआ ये फॉर्मूला अब बिहार चुनाव का पूरा परिदृश्य बदल सकता है। जानिए कैसे तेजस्वी-सहनी की ताजपोशी ने विपक्ष में नई जान डाली।

गहलोत की एंट्री और तेजस्वी-सहनी की ताजपोशी : 24 घंटे में ऐसे लागू हुआ महागठबंधन का RJD फॉर्मूला

गहलोत की एंट्री और तेजस्वी-सहनी की ताजपोशी: 24 घंटे में कैसे चल गया RJD फॉर्मूला

 

बिहार की राजनीति फिर से आसमान पर है। एक दिन में जो बदलाव हुआ, उसने सबको हैरान कर दिया। तेजस्वी यादव को महागठबंधन का मुख्यमंत्री उम्मीदवार और मुकेश सहनी को डिप्टी सीएम फेस घोषित कर दिया गया। इस खबर ने सियासी गलियारों में हलचल मचा दी। अब सब पूछ रहे हैं – आखिर 24 घंटे में इतना बड़ा फैसला कैसे हो गया?

 

गहलोत की एंट्री से बदली हवा

कांग्रेस दिल्ली में उलझी थी, निर्णय टल रहा था। तभी राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को दिल्ली भेजा गया। वे जैसे ही पहुंचे, बैठक का माहौल बदल गया। कहा जाता है कि गहलोत ने सबको शांत किया। “समय निकल रहा है,” उन्होंने कहा। और फिर सबने हामी भर दी। कुछ ही घंटों में तेजस्वी यादव को सीएम फेस तय कर दिया गया। राजनीति में ऐसा कम ही होता है जब फैसला इस रफ्तार से हो।

 

आरजेडी फॉर्मूला फिर काम आया

आरजेडी का पुराना तरीका है, "नेतृत्व हमारा, समर्थन सबका।" यही ‘RJD फॉर्मूला’ इस बार फिर चला। तेजस्वी यादव ने कांग्रेस को समझाया – अगर चेहरा तय नहीं होगा, तो जनता तक संदेश नहीं जाएगा। और यही हुआ। कांग्रेस ने मान लिया। अब यह कहना गलत नहीं होगा कि आरजेडी ने एक बार फिर अपने हिसाब से समीकरण सेट कर दिए हैं।

 

तेजस्वी यादव – अब सिर्फ नाम नहीं, ब्रांड

कुछ साल पहले तक उन्हें ‘लालू का बेटा’ कहा जाता था, पर अब बात बदल गई है। तेजस्वी यादव खुद एक चेहरा बन गए हैं। उनके भाषणों में युवाओं की बातें होती हैं, बेरोजगारी का दर्द, शिक्षा की उम्मीद। यही वजह है कि आज उनका नाम बिहार के हर कोने में चर्चा का विषय है। अब वे केवल आरजेडी के नेता नहीं, बल्कि उस पीढ़ी का भरोसा हैं जो बदलाव चाहती है।

 

मुकेश सहनी की ताजपोशी और नया संतुलन

इस घोषणा का दूसरा बड़ा पहलू मुकेश सहनी हैं। मल्लाह समाज से आते हैं, जिनकी पकड़ उत्तर बिहार में गहरी है। उन्हें उपमुख्यमंत्री पद का फेस बनाकर तेजस्वी यादव ने मजबूत दांव खेला। इससे गठबंधन को सामाजिक संतुलन मिलेगा। यानि एक ओर यादव-मुस्लिम समीकरण और दूसरी ओर मल्लाह-पिछड़ा वर्ग का साथ। यह खेल सीधा सटीक लगता है।

 

कांग्रेस को मिला राहत का पल

कई महीनों से कांग्रेस में असमंजस था। नेतृत्व तय नहीं हो पा रहा था। पर अब सब स्पष्ट है – आरजेडी आगे, कांग्रेस साथ। गहलोत की भूमिका यहां निर्णायक रही। उन्होंने कांग्रेस को यह समझाया कि बिहार की सियासत भावना पर चलती है, समीकरणों पर नहीं। और जब जनता को चेहरा मिल गया, तो कांग्रेस खुद राहत महसूस कर रही है।

 

महागठबंधन का बदला मिजाज

जो गठबंधन पिछले कुछ महीनों से बिखरा नजर आ रहा था, वह अचानक एकजुट दिखा। सब एक मंच पर खड़े हुए। तेजस्वी यादव मुस्कुराते हुए बोले, “अब मिशन बिहार शुरू होता है।” और भीड़ ने तालियां बजाईं। यह एक दृश्य था जिसमें विपक्षी ताकत फिर एक मंच पर दिखाई दी। अब पहली बार ऐसा लग रहा है कि महागठबंधन वाकई चुनाव के मूड में आ गया है।

 

नीतीश कुमार को मिली नई चुनौती

अब मुश्किलें बढ़ गई हैं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए। पहले तक मुकाबला अनिश्चित था। पर अब मैदान साफ है। एक ओर नीतीश, दूसरी ओर तेजस्वी यादव। यही तुलना अब हर चर्चा का केंद्र बनेगी। लोग कह रहे हैं – “अब खेल बराबरी का है।” यह वही फ्रेम है जिसकी कमी पिछले चुनाव में महसूस हुई थी।

 

24 घंटे की कहानी जिसमें सब हुआ

यह सब इतनी तेजी से हुआ कि नेताओं को भी यकीन नहीं हुआ। सुबह तक कांग्रेस बैठकों में थी, शाम तक घोषणा हो चुकी थी। गहलोत की दो बैठकों और तेजस्वी के डटे रहने ने समीकरण पलट दिया। देर रात दिल्ली से पटना तक संदेश पहुंचा और सुबह तेजस्वी यादव और मुकेश सहनी मंच पर साथ दिखे। यह 24 घंटे बिहार की राजनीति के इतिहास में लिखे जाएंगे।

 

आरजेडी फॉर्मूले की ताकत

आरजेडी फॉर्मूले का असल मतलब सिर्फ नेता तय करना नहीं है। यह संदेश देना है कि गठबंधन तभी चलता है जब एक दिशा हो। तेजस्वी यादव ने यह समझ लिया है। वे बार-बार कहते हैं, “एक यात्रा एक नेतृत्व से ही पूरी होती है।” उनकी यही राजनीतिक समझ शायद पिता लालू से मिली सीख है, जिसे अब वे अपने अंदाज में जी रहे हैं।

 

कहानी यहीं खत्म नहीं, अब असली परीक्षा बाकी

दृश्य अभी बन रहा है, खेल बाकी है। चुनावी मैदान में अभी रणनीति और प्रचार की बारी है। लेकिन इतना साफ है कि तेजस्वी यादव ने गठबंधन की कहानी फिर लिख दी है। जो पहले बिखरा था, अब वह एक कंधे पर चलने को तैयार है। गहलोत की भूमिका katalyst रही, लेकिन फैसले की असली ताकत तेजस्वी और उनकी समझ दिखी।