ghar khareedane ka sapana hua mahanga , 10 में से 8 भारतीय परेशान, लेकिन मुंबई का हाल है अलग

लगातार बढ़ती महंगाई, ब्याज दरों में उछाल और शहरी इलाकों में जमीन की कमी ने भारतीयों के लिए घर खरीदना कठिन बना दिया है, जबकि मुंबई की स्थिति कुछ अलग दिखती है।

ghar khareedane ka sapana hua mahanga , 10 में से 8 भारतीय परेशान, लेकिन मुंबई का हाल है अलग

कभी कहा जाता था कि हर भारतीय का अपना सपना होता है – एक छोटा-सा घर, जिसमें वह अपने परिवार के साथ सुरक्षित और सुखी जीवन जी सके। लेकिन हाल के वर्षों में यह सपना धीरे-धीरे दूर होता जा रहा है। मंहगाई, लगातार बढ़ती ब्याज दरें और जमीन-निर्माण की बढ़ती लागत ने हालात और मुश्किल कर दिए हैं। आज भी करोड़ों लोग कड़ी मेहनत के बावजूद अपने नाम का घर लेने का सपना देखने तक ही सीमित होकर रह गए हैं।

10 में से 8 भारतीय परेशान क्यों?

हालिया सर्वे और रिपोर्ट्स से पता चलता है कि लगभग 10 में से 8 भारतीयों के लिए घर खरीदना पहले की तुलना में बेहद कठिन हो गया है। इसके पीछे प्रमुख कारण हैं: बैंकों द्वारा लगातार बढ़ाई जा रही गृह-ऋण ब्याज दरें निर्माण सामग्री जैसे सीमेंट, सरिया और लकड़ी की बढ़ती कीमतें शहरी क्षेत्रों में जमीन की कमी और बढ़ती डिमांड मध्यमवर्गीय वेतन में वृद्धि की धीमी दर सरकारी योजनाओं का जमीनी स्तर पर सही प्रकार से न पहुँच पाना

इन सब वजहों से घर खरीदने का सपना अब सिर्फ अमीर वर्ग या ऊँची आय वालों तक केंद्रित होता जा रहा है। साधारण नौकरीपेशा परिवार आज भी EMI और किराए में जूझता है।

 

मुंबई – एक अलग कहानी

जहाँ दिल्ली, बेंगलुरु, चेन्नई और अन्य बड़े शहरों में घर खरीदना और कठिन होता दिख रहा है, वहीं मुंबई का माहौल थोड़ा अलग दिशा में जा रहा है। यहाँ रियल एस्टेट हमेशा महंगा रहा है, लेकिन दिलचस्प बात यह है कि लोगों के बीच घर खरीदने की रुचि घटने के बजाय और बढ़ गई है।

मुंबई में अपार्टमेंट्स और फ्लैट्स की बिक्री पिछले कुछ सालों में तेज हुई है। कमाई के अवसर, विकसित इन्फ्रास्ट्रक्चर और लगातार मेट्रो-प्रोजेक्ट्स ने इस शहर को घर खरीदारों के लिए आकर्षक बनाए रखा है। इसके अलावा, यहाँ निवेशक भी संपत्ति को लंबे समय तक सुरक्षित विकल्प मानते हैं।

 

लोगों की मुश्किलें और हकीकत

भले ही कुछ शहरों में घर खरीदने की रफ्तार बनी हुई है, लेकिन औसतन भारतीयों के लिए यह सफर कठिन है। नौकरीपेशा लोगों की स्थिति सबसे ज्यादा प्रभावित होती है। औसत सैलरी का बड़ा हिस्सा किराए और रोजमर्रा के खर्चों में चला जाता है। EMI की ऊँची रकम भरना और बैंक लोन चुकाना हर किसी की पहुंच से बाहर होता जा रहा है।

बहुत से युवा अब किराए पर रहकर ही बसने को मजबूर हैं। शादीशुदा जोड़े भी घर खरीदने का सपना 5-10 साल तक टालने लगे हैं। ग्रामीण इलाकों से शहरों की ओर पलायन भी हाउसिंग सेक्टर में दबाव बढ़ा रहा है।

 

सरकारी पहल और योजनाएँ

सरकार ने “प्रधानमंत्री आवास योजना” जैसी कई पहलें की हैं, जिनका मकसद हर परिवार को घर उपलब्ध कराना है। लेकिन इन योजनाओं में राशि की सीमा, निर्माण में देरी और वास्तविक जरूरतमंद तक न पहुँच पाने जैसी चुनौतियाँ नजर आती हैं।

यदि सही तरीके से इसे लागू किया जाए तो एक नए वर्ग को घर का मालिक बनाने का सपना सच हो सकता है। लेकिन वास्तविकता यह है कि शहरी महानगरों में महंगाई और प्रॉपर्टी रेट इतने अधिक हैं कि योजनाएँ केवल पेपर पर सुंदर दिखती हैं।

 

भविष्य की राह

विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले 5 से 10 सालों में भारत में आवासीय संपत्ति और भी महंगी होगी। जनसंख्या वृद्धि, शहरीकरण और तेजी से बढ़ती मांग के कारण कीमतों में कमी की संभावना कम है। हालांकि, तकनीक और स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट्स कहीं न कहीं राहत दे सकते हैं।

रियल एस्टेट कंपनियाँ यदि मध्यमवर्गीय परिवारों को ध्यान में रखकर छोटे आकार और सुलभ दरों पर प्रोजेक्ट तैयार करें, तो स्थिति में धीरे-धीरे बदलाव संभव है। यह जरूरी है कि घर सिर्फ स्टेटस सिंबल न बने, बल्कि हर परिवार की बुनियादी जरूरत के रूप में सुलभ हो।