Ghazipur Police Station : में अंधेरे में लाठीचार्ज: BJP कार्यकर्ताओं ने बताया अंदर का हाल
उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में स्थित गाजीपुर शनिवार रात अचानक सुर्खियों में आ गया। आरोप है कि गाजीपुर पुलिस ने थाने के भीतर धरना दे रहे BJP कार्यकर्ताओं पर लाइट बंद कर लाठियाँ बरसाईं। पीड़ितों का कहना है कि बिजली काटते ही दरवाज़े बंद कर दिए गए और कोई रास्ता नहीं छोड़ा गया। घटना के बाद से इलाके की सियासत गरमा गई है, सोशल मीडिया पर वीडियो क्लिप शेयर हो रही हैं और जिले की सामान्य सुबह राजनीतिक बहस में बदल चुकी है।
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अचानक बुझी बत्तियाँ, फिर धमकती लाठियाँ: दस मिनट का डरावना सन्नाटा
मौजूद कार्यकर्ताओं के मुताबिक रात करीब साढ़े नौ बजे वे शांति से नारेबाज़ी कर रहे थे। तभी पूरी बिल्डिंग में अंधेरा छा गया। अगले ही पल दो दरवाज़े तेज़ी से बंद किए गए, भीतर मौजूद लगभग पचास लोगों ने खुद को एक कमरे में घिरा पाया। लाइट ग़ायब होते ही लाठियों की आवाज़ गूँजी और अफरातफरी मच गई। कुछ ने मोबाइल का फ्लैश जलाया तो लाठी सीधी टॉर्च पर आ गिरी। प्रत्यक्षदर्शियों का दावा है कि यह सब महज़ दस मिनट चला, लेकिन हर झटके ने उन्हें घंटों जैसा लंबा अहसास कराया। चोटिल कार्यकर्ताओं को उसी रात जिला अस्पताल ले जाया गया, जहाँ कई के सिर में टाँके लगे।
धरने की वजह क्या थी, और कैसे पहुँचे कार्यकर्ता थाने के भीतर
पूरा मामला एक स्थानीय पंचायत सदस्य की गिरफ्तारी से शुरू हुआ था। आरोप है कि पुलिस ने उस सदस्य को बिना नोटिस उठाया, जिस पर पार्टी समर्थक भड़क गए। दोपहर से ही तहसील चौक पर नारेबाज़ी चल रही थी, लेकिन जब कोई अधिकारी सुनवाई को नहीं आया तो कार्यकर्ता शाम को सीधे कोतवाली पहुँच गए। थानेदार ने बातचीत का आश्वासन दिया, बस यहीं से कहानी मोड़ लेती है। कार्यकर्ताओं को भीतर हाल में बैठा दिया गया, चाय भी मिली। वे धरने पर ही बैठ गए और गिरफ्तारी को गैरकानूनी बताते हुए रिहाई की मांग दोहराते रहे। रात होते-होते धैर्य की डोर टूटती दिखी, इधर पुलिस पर ‘ऊपर’ से दबाव बना कि हालात जल्द सामान्य करें।
चश्मदीदों की ज़बानी: पानी तक नहीं, फोन छीने गए, गालियाँ सुननी पड़ीं
रविवार सुबह जब घायल कार्यकर्ता डिस्चार्ज हुए तो अस्पताल के बाहर मीडिया पहले से इंतज़ार कर रही थी। संजय सिंह नाम के एक युवक ने बताया, “हमें पीटने से पहले किसी ने एक बार भी नहीं कहा कि बाहर निकलो या धरना खत्म करो। अंधेरा होने के बाद हम समझ भी नहीं पाए कि कौन कहाँ है।” दूसरी ओर 55 वर्षीय शीला देवी, जो अपने बेटे के समर्थन में पहुँची थीं, ने आरोप लगाया कि पुलिस ने उनका फोन छीना और वीडियो डिलीट कर दिया। उन्होंने रोते हुए कहा, “मैं पानी मांगती रही लेकिन किसी ने एक घूँट तक नहीं दिया।” इन बयानो से हालात की गंभीरता साफ झलकती है।
पुलिस का पक्ष: कानून व्यवस्था बनाए रखी, पर सवाल बरक़रार
गाजीपुर के पुलिस अधीक्षक ने रात दो बजे प्रेस नोट जारी किया। उनका कहना था, “थाने में बिजली गुल होने से अफरा-तफरी मची, हम केवल स्थिति काबू में ला रहे थे। किसी को गंभीर चोट नहीं आई।” जब उनसे पूछा गया कि बिजली अचानक कैसे गई, तो जवाब मिला कि तकनीकी खराबी थी। हालाँकि नागरिक विभाग ने रविवार दोपहर साफ किया कि उस वक्त फीडर में कोई फॉल्ट दर्ज नहीं हुआ। अब साख बचाने को पुलिस सीसीटीवी फुटेज जारी करने की बात कर रही है। लेकिन स्थानीय लोग पूछ रहे हैं—अगर कैमरे चल रहे थे तो लाइट कैसे गई, और फुटेज में लाठियाँ क्यों नहीं दिख रहीं?
राजनीतिक असर: लखनऊ से दिल्ली तक गूंज उठा गाजीपुर, आगे क्या होगा?
घटना ने प्रदेश भर की सियासत को हिला दिया है। BJP के क्षेत्रीय प्रभारी ने ट्वीट कर कहा कि दोषी अधिकारियों पर सख़्त कार्रवाई होनी चाहिए। वहीं विपक्षी दलों को भी बोलने का मौका मिल गया है; समाजवादी पार्टी ने इसे ‘लोकतंत्र पर हमला’ बताया, जबकि कांग्रेस ने न्यायिक जांच की मांग रखी। जानकारों का मानना है कि विधानसभा चुनाव से पहले ऐसी घटनाएँ पार्टी की छवि को चोट पहुँचा सकती हैं। अब निगाहें मुख्यमंत्री कार्यालय पर हैं, जहाँ से शाम तक कोई आधिकारिक बयान आ सकता है। अगर निष्पक्ष जाँच बैठती है तो कई अफसरों की कुर्सी खतरे में पड़ सकती है, वरना विपक्ष आने वाले दिनों में इसी मुद्दे को पूरे प्रदेश में उछालने की तैयारी कर रहा है।
फिलहाल गाजीपुर पुलिस थाने के बाहर सुरक्षा बढ़ा दी गई है। स्थानीय दुकानदारों ने बताया कि सोमवार सुबह तक बाजार खुल गया, पर हर गली-मुहल्ले में बीती रात की चर्चा जारी है। बच्चे स्कूल जा रहे हैं, पर रास्ते में अड़चने वाली बैरिकेडिंग उनसे सवाल करवा रही है—क्या पुलिस सच में हमारी रक्षक है? यही सवाल बड़े लोग भी पूछ रहे हैं, बस शब्द अलग हैं।
घटना के सटीक सच तक पहुँचना अब प्रशासन की जिम्मेदारी है। पीड़ितों को इंसाफ मिलेगा या नहीं, यह तो आने वाला हफ्ता बताएगा, लेकिन इतना तय है कि गाजीपुर के लोग इस रात को जल्द नहीं भूलने वाले। प्रदेश की राजनीति में भी यह कड़वा स्वाद देर तक बना रहेगा, और लोकतंत्र पर भरोसा फिर एक इम्तहान से गुजर रहा है।
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