Great Nicobar Project : 30 साल की तैयारी और 72 हजार करोड़ की कहानी
ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट आखिर है क्या और क्यों चर्चा में है ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट देश का एक बड़ा और महत्वाकांक्षी इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट है, जिस पर करीब 72 हजार करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है। यह प्रोजेक्ट समुद्री सुरक्षा और व्यापार के लिहाज से बेहद अहम माना जा रहा है। सरकार का कहना है कि इस योजना से भारत को सामरिक फायदा मिलेगा और साथ ही दुनिया भर के व्यापारिक रास्तों पर भारत की पकड़ मजबूत होगी।
लेकिन यह प्रोजेक्ट शुरुआत से ही विवादों में घिरा हुआ है। विपक्ष की कांग्रेस पार्टी लगातार सवाल उठा रही है कि क्या वाकई इस पर इतना बड़ा पैसा खर्च करना सही है और क्या इस योजना के पर्यावरण पर पड़ने वाले असर को पूरी तरह से देखा गया है।
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इतिहास से जुड़े पन्ने खोलते हैं 30 साल पुरानी योजना की कहानी
इस प्रोजेक्ट का सपना कोई नया नहीं है। करीब 30 साल पहले इसकी रूपरेखा तैयार की गई थी। भारत के रणनीतिक विशेषज्ञों ने महसूस किया था कि हिंद महासागर में भारत की मजबूत उपस्थिति जरूरी है। लेकिन आर्थिक और तकनीकी वजहों से यह योजना काफी लंबे समय तक सिर्फ फाइलों में ही अटकी रही। अब जाकर मोदी सरकार ने इसे तेजी से आगे बढ़ाने का फैसला किया है।
ग्रेट निकोबार द्वीप का भौगोलिक महत्व बहुत बड़ा है। यह स्थान अंतरराष्ट्रीय शिपिंग लेन के बेहद करीब है। यहां से दुनिया के कई बड़े समुद्री व्यापारिक मार्ग गुजरते हैं, जिन पर नजर रखना भारत के लिए रणनीतिक दृष्टि से लाभकारी है।
प्रोजेक्ट की लागत और इसमें बनने वाली बड़ी-बड़ी सुविधाएं
ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट पर कुल 72 हजार करोड़ रुपये खर्च होंगे। इस प्रोजेक्ट के तहत कई बड़े काम किए जाएंगे। इसमें एक डीप पोर्ट का निर्माण, हवाई अड्डा, बिजली संयंत्र और आधुनिक शहर बसाने की योजना शामिल है। इस योजना के पूरे होने के बाद ग्रेट निकोबार द्वीप पर न सिर्फ समुद्री सुरक्षा मजबूत होगी बल्कि पर्यटन और व्यापार के नए रास्ते भी खुलेंगे।
सरकार का दावा है कि यह प्रोजेक्ट आने वाले वर्षों में हजारों लोगों को रोजगार देगा और यहां के स्थानीय विकास को भी तेजी से आगे बढ़ाएगा।
कांग्रेस क्यों सरकार पर हमलावर है इस प्रोजेक्ट को लेकर
कांग्रेस लगातार इस योजना को लेकर सरकार पर सवाल खड़ी कर रही है। कांग्रेस का कहना है कि इसके नाम पर सरकार पर्यावरण से खिलवाड़ कर रही है। उनका आरोप है कि इस इलाके में करोड़ों पेड़ों को काटा जाएगा और इससे ग्रेट निकोबार की अनोखी जैव विविधता पर भारी असर पड़ेगा।
इसके अलावा विपक्ष ने यह भी कहा है कि सरकार इस प्रोजेक्ट को जरूरत से ज्यादा तूल दे रही है और इसे राजनीतिक फायदे के लिए इस्तेमाल कर रही है। उनका कहना है कि इतनी भारी-भरकम लागत किसी और जगह लोगों की बुनियादी जरूरतों पर खर्च की जा सकती थी।
पर्यावरण और आदिवासी समाज पर असर की बड़ी चिंता
ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट का सबसे बड़ा विवाद पर्यावरण को लेकर है। यह इलाका जैव विविधता के लिए बेहद संवेदनशील माना जाता है। यहां कई दुर्लभ जीव और पौधे पाए जाते हैं, जो पूरी दुनिया में और कहीं नहीं मिलते। वैज्ञानिकों का मानना है कि इतनी बड़ी परियोजना से इन पर गंभीर असर पड़ेगा।
सिर्फ पेड़-पौधे ही नहीं, इस द्वीप पर कुछ छोटे आदिवासी समुदाय भी रहते हैं। उनकी जीवनशैली और संस्कृति बहुत खास और अलग है। पर्यावरणविदों का कहना है कि इतने बड़े प्रोजेक्ट से इन समुदायों का जीवन भी खतरे में आ जाएगा। वे अपने ही घर में पराए हो सकते हैं।
सरकार का तर्क और भविष्य की तस्वीर
सरकार का कहना है कि विकास और पर्यावरण दोनों को संतुलन में रखकर यह प्रोजेक्ट बनाया जा रहा है। उनका दावा है कि पेड़ों की कटाई का जो नुकसान होगा, उसकी भरपाई दूसरे पर्यावरणीय उपायों से की जाएगी। सरकार यह भी कहती है कि स्थानीय लोगों को इस योजना में शामिल किया जाएगा और उन्हें रोजगार के नए अवसर दिए जाएंगे।
रणनीतिक दृष्टि से देखा जाए तो यह प्रोजेक्ट भारत को हिंद महासागर में बड़ी ताकत के रूप में खड़ा कर सकता है। चीन का बढ़ता प्रभाव इस क्षेत्र में पहले से ही चिंता का कारण है। ऐसे में ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट भारत को एक मजबूत जवाबी कदम के तौर पर प्रस्तुत करता है।
क्या ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट का भविष्य सचमुच उज्ज्वल है
यह कहना अभी मुश्किल है कि इस प्रोजेक्ट से लंबी अवधि में ज्यादा फायदा होगा या नुकसान। लेकिन इतना साफ है कि यह योजना सिर्फ एक निर्माण परियोजना नहीं, बल्कि भारत की रणनीतिक सोच और भविष्य की आकांक्षाओं का हिस्सा है।
कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों के सवाल अपनी जगह हैं और सरकार का तर्क भी अपनी जगह खड़ा है। असली परिणाम शायद आने वाले दशकों में ही समझ में आएगा। फिलहाल इतना जरूर कहा जा सकता है कि ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट भारत की राजनीति, अर्थव्यवस्था और पर्यावरण के बीच संतुलन का इम्तिहान है।
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