Haridwar ArdhKumbh 2027 shahi snaan : पहली बार शाही स्नान से गंगा तट पर नया इतिहास बनेगा
दो साल बाद 2027 में गंगा घाटों पर फिर से आस्था का विराट मेला सजने वाला है। हरिद्वार का अर्धकुंभ हमेशा से धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण रहा है, लेकिन आने वाला अर्धकुंभ कई मायनों में ऐतिहासिक साबित होने जा रहा है। कारण है एक बड़ा परिवर्तन। इस बार पहली बार साधु-संन्यासियों, वैरागियों और उदासीन अखाड़ों के शाही स्नान होंगे, ठीक उसी भव्यता और शौर्य के साथ जैसे पूर्णकुंभ में हुआ करता है। यह नई परंपरा हरिद्वार को विशेष बनाएगी और श्रद्धालुओं के लिए भी यह अद्वितीय अनुभव होगा।
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अखाड़ा परिषद का बड़ा निर्णय
अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने राज्य सरकार के प्रस्ताव पर सहमति जताते हुए घोषणा कर दी है कि 2027 के हरिद्वार अर्धकुंभ में तीन शाही स्नान होंगे। वर्षों से चली आ रही परंपरा में यह बदलाव अपने आप में एक ऐतिहासिक कदम है। अब साधु-संन्यासी और अखाड़े न केवल सामान्य स्नान पर्व में शामिल होंगे, बल्कि शाही स्नानों की भव्य परंपरा को भी निभाएंगे। अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष और निरंजनी अखाड़ा के सचिव श्रीमहंत रविंद्र पुरी ने कहा कि अमृत स्नान कुंभ की आत्मा है और अब अर्धकुंभ में भी यही आत्मा समाहित होगी।
तिथियों की घोषणा और तैयारियां
अखाड़ा परिषद ने तीन अमृत स्नानों की तिथियों पर अपनी मुहर लगा दी है। हालांकि सरकार इन्हें प्रशासनिक दृष्टि से कुछ समय बाद आधिकारिक रूप से घोषित करेगी ताकि उसी के अनुसार सुरक्षा और व्यवस्थाएं सुनिश्चित की जा सकें। परिषद की ओर से तैयारियों को अंतिम रूप दिया जा रहा है। यह निर्णय होने के बाद अब पूरा हरिद्वार अर्धकुंभ के भव्य आयोजन की तैयारी में जुट जाएगा। घाटों पर सुविधाओं को बेहतर करने से लेकर साधु-संन्यासियों के आवास और छावनी व्यवस्था तक की रूपरेखा बनाई जा रही है।
हरिद्वार अर्धकुंभ की पुरानी परंपरा
अब तक हरिद्वार में अर्धकुंभ का आयोजन केवल श्रद्धालु जनता के स्नान पर्व तक ही सीमित रहता था। प्रयागराज और हरिद्वार, यही दो स्थान ऐसे हैं जहां अर्धकुंभ मनाया जाता है। प्रयागराज में यह पर्व हमेशा कुंभ और पूर्णकुंभ जैसी ही भव्यता रखता आया है। लेकिन हरिद्वार में परंपरागत रूप से साधु-संन्यासियों के अखाड़ों की भागीदारी नहीं होती थी और न ही नगर प्रवेश और छावनी की सजावट होती थी। यही कारण रहा कि हरिद्वार का अर्धकुंभ अब तक सामान्य श्रद्धालु स्नान पर्व माना जाता था।
इस बार क्यों होगा बदलाव
2027 में यह बदलाव इसलिए भी संभव हुआ है क्योंकि उस वर्ष नासिक के त्र्यंबकेश्वर में सिंहस्थ का आयोजन जुलाई-अगस्त में होगा, जबकि हरिद्वार का अर्धकुंभ मार्च-अप्रैल में तय है। इससे साधु-संन्यासियों और अखाड़ों की उपस्थिति हरिद्वार में सुनिश्चित हो सकेगी। अतीत में कई बार ऐसा हुआ कि जब उज्जैन या नासिक में सिंहस्थ और हरिद्वार का अर्धकुंभ एक ही साल में पास-पास के महीनों में आते थे, तो सभी अखाड़ों की भागीदारी हरिद्वार में नहीं हो पाती थी। उस स्थिति में न अखाड़े की स्थापना होती थी और न ही नगर प्रवेश और शाही स्नान का आयोजन। लेकिन इस बार समय का ऐसा संगम बना है कि अखाड़े हरिद्वार में पूरे वैभव के साथ डेरा डालेंगे।
शाही स्नान का महत्व
कुंभ की पहचान ही शाही स्नान की परंपरा से होती है। साधु-संन्यासी अखाड़ों की टोलियां पूरी शान और अनुशासन के साथ नगाड़े और शंखनाद की ध्वनि के बीच गंगा में उतरती हैं। यह दृश्य न केवल श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केन्द्र होता है, बल्कि अखाड़ों के गौरव और वैभव का भी परिचायक है। अब हरिद्वार अर्धकुंभ में यह दृश्य पहली बार दिखाई देगा। लाखों श्रद्धालु इस अनोखे अवसर के साक्षी बनेंगे, जब गंगा के किनारे इतिहास नई परंपरा की शुरुआत करेगा।
सरकार और प्रशासन की चुनौतियां
इतना बड़ा आयोजन केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि प्रशासनिक दृष्टि से भी चुनौतीपूर्ण होता है। लाखों श्रद्धालुओं की सुरक्षा, स्नान के दौरान व्यवस्था, यातायात का प्रबंधन, और साधु-संन्यासियों की छावनी व्यवस्था सब कुछ सुनियोजित ढंग से करना होगा। सरकार आधिकारिक रूप से जैसे ही स्नान की तिथियां घोषित करेगी, वैसे ही व्यवस्थाओं पर काम तेज होगा। घाटों पर सुरक्षा घेरा, पार्किंग व्यवस्था, मेडिकल सुविधाएं, जल आपूर्ति और स्वच्छता जैसे मुद्दे बड़े पैमाने पर हल करने की ज़रूरत पड़ेगी। इसके साथ ही अखाड़ों के नागा संन्यासियों और अन्य संप्रदायों की परेड और यातायात नियंत्रण भी बड़ा दायित्व होगा।
हरिद्वार की धार्मिक और सांस्कृतिक छवि
हरिद्वार गंगा के तट पर बसा वह नगर है जिसकी पहचान सदियों से आस्था और संत परंपरा से जुड़ी रही है। कुंभ और अर्धकुंभ यहां कभी केवल धार्मिक आयोजन भर नहीं रहे, बल्कि यह सांस्कृतिक धरोहर भी हैं। जब-जब गंगा किनारे लाखों-करोड़ों की भीड़ स्नान के लिए जुटती है, तब यह केवल आस्था नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक धड़कन का प्रतीक बन जाती है। इसीलिए 2027 का अर्धकुंभ केवल भक्तों के स्नान तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि साधु-संन्यासियों के शाही स्नान इसे ऐतिहासिक बना देंगे।
नई परंपरा की शुरुआत
इतिहास गवाह रहेगा कि 2027 के हरिद्वार अर्धकुंभ से नई परंपरा की शुरुआत हुई। जहां अब तक यह केवल जनता के लिए स्नान पर्व था, वहीं पहली बार इसे अखाड़ों के शाही स्नान से सजाया जाएगा। यह निर्णय न केवल अखाड़ा परिषद के लिए, बल्कि श्रद्धालुओं और हरिद्वार के लिए भी गौरव का क्षण होगा। आने वाली पीढ़ियां इसे याद करेंगी कि कैसे आस्था के इस महापर्व ने अपने स्वरूप में विस्तार पाया और हरिद्वार के इतिहास में नया अध्याय लिखा।
आस्था का महासंगम
जब गंगा किनारे लाखों लोग डुबकी लगाएंगे और उसके बीच अखाड़ों का शाही जुलूस निकलेगा, तब हरिद्वार तपोभूमि की तरह जीवंत हो उठेगा। श्रद्धालु, पर्यटक, साधु-संन्यासी और अखाड़े सभी मिलकर उस ऐतिहासिक पल के गवाह बनेंगे, जब अर्धकुंभ पहली बार पूर्णकुंभ की तरह अपने वैभव के शिखर पर नजर आएगा। गंगा की धारा भी मानो उस क्षण को अपनी लहरों में सहेज कर आगे बढ़ा देगी।
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