हिमाचल प्रदेश का जिला बिलासपुर शुक्रवार रात तक शांत था। लेकिन भोर होते-होते आसमान में गहराए बादलों ने ऐसा रौद्र रूप धारण किया कि हिमाचल क्लाउडबर्स्ट जैसी भयावह घटना ने इलाके को दहला दिया। कुछ ही मिनटों में तेज़ बारिश ने पूरे कस्बे को जल-कुंभ में बदल दिया। मुख्य बाज़ार से लेकर बाहरी गांवों तक हर सड़क पर मलबा और पत्थरों का अंबार नजर आया। सुबह छह बजे के आसपास लोगों ने देखा कि उनकी कारें कीचड़ में आधी-धँसी पड़ी हैं और घरों के भीतर तक पानी भरा है।
मलबे में फँसे वाहन राहत-दल की मुश्किल लड़ाई
स्थानीय प्रशासन के मुताबिक करीब एक दर्जन कारें और कई दोपहिया वाहन मलबे के नीचे दब गए। बचाव-टीमों ने जेसीबी मशीनें लगाकर सबसे पहले मुख्य सड़क साफ़ करनी शुरू की, ताकि एंबुलेंस और दमकल गाड़ियाँ अंदर पहुँच सकें। लेकिन लगातार गिरती चट्टानों और बारिश के बीच यह काम आसान नहीं था। कई जगह भारी बोल्डर हटाने में घंटों लग गए। हिमाचल क्लाउडबर्स्ट की वजह से निर्माणाधीन पुल का एक हिस्सा भी बह गया, जिससे वैकल्पिक मार्ग बंद हो गया।
ग्रामीण बस्ती में दहशत अचानक घर कांप उठा, हमें लगा भूकंप आ गया
सड़क से तीन किलोमीटर दूर बसे कोठी गांव की सुनीता देवी बताती हैं, “छह बजकर पाँच मिनट पर जोरदार धमाका हुआ। मिट्टी की तेज़ गंध आई और हमारा घर हिलने लगा। हमें लगा भूकंप है, पर बाहर निकले तो चारों तरफ कीचड़ ही कीचड़ था।” गांव के ललित ठाकुर ने अपनी पुरानी जीप पर गिरा पत्थर दिखाते हुए कहा, “जेसीबी नहीं आती तो गाड़ी के साथ हम भी दब जाते।” अब गांव के लोग सामुदायिक भवन में शरण लिए हुए हैं, क्योंकि कच्चे घरों में दरारें पड़ चुकी हैं।
सरकारी अमला हरकत में लेकिन सड़कों का हाल देख बढ़ी चिंता
उपायुक्त बिलासपुर ने जिले में आपदा प्रबंधन नियंत्रण कक्ष 24x7 सक्रिय करने के निर्देश दिए। राहत-दल के साथ-साथ स्वास्थ्य विभाग की टीमें भी सक्रिय हो गईं। कई प्राथमिक स्कूल आज बंद रखे गए, ताकि बच्चों को खतरे वाली सड़कों पर न आना पड़े। वहीं लोक निर्माण विभाग ने 16 से अधिक ग्रामीण सड़कों को “असुरक्षित” घोषित कर दिया। लगातार बारिश से ढलानदार हिस्सों में नए भूस्खलन का खतरा मंडरा रहा है।
बारिश थमी पर डर कायम लोगों की ज़िंदगी कब पटरी पर लौटेगी?
दोपहर तक बारिश कम ज़रूर हुई, पर खतरा टला नहीं। स्थानीय मौसम केंद्र ने अगले 24 घंटे में हिमाचल क्लाउडबर्स्ट जैसी तेज़ बौछारें दोबारा आने की आशंका जताई है। घरों में घुसा पानी निकालना लोगों के लिए बड़ी चुनौती है। फर्नीचर, अनाज भंडार और बिजली के उपकरण खराब हो चुके हैं। दुकानदारों का कहना है कि एक दिन में लाखों का नुकसान हो गया।
मदद के हाथ सेना एनडीआरएफ और स्थानीय युवाओं का संयुक्त मोर्चा
आपदा प्रबंधन की प्राथमिक टीमों के साथ-साथ सेना की इंजीनियर यूनिट और एनडीआरएफ के विशेषज्ञ मौके पर पहुंच गए हैं। उन्होंने ड्रोन से प्रभावित इलाकों का नक्शा तैयार करके संवेदनशील पॉइंट चिन्हित किए। स्थानीय युवाओं ने भी कमान संभाल रखी है। कई युवा स्कूल-कॉलिज बंद होने के बावजूद राहत-दल के साथ पत्थर हटाने और भोजन पैकेट बाँटने में जुटे हैं।
मौसम वैज्ञानिकों की चेतावनी ग्लेशियर पिघलने और मौसमी बदलाव का खतरनाक मेल
भारतीय मौसम विभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिकों का कहना है कि पश्चिमी विक्षोभ और स्थानीय भाप मिलने से बादल फटने की घटनाएँ बढ़ रही हैं। ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं, जिससे वायुमंडलीय नमी अचानक बहुत बढ़ जाती है। परिणामस्वरूप कम क्षेत्र में अत्यधिक वर्षा होती है, जिसे तकनीकी रूप से हिमाचल क्लाउडबर्स्ट की श्रेणी में रखा जाता है। यह स्थिति पर्वतीय इलाकों में खासकर मानसून के आख़िरी चरण में ज्यादा खतरनाक हो जाती है।
पहले भी झेल चुके हैं ऐसे जख्म फिर क्यों नहीं सीखते सबक?
पिछले पाँच साल में सिर्फ बिलासपुर ही नहीं, बल्कि कुल्लू, किन्नौर और चंबा में बादल फटने से 70 से अधिक लोग जान गँवा चुके हैं। विशेषज्ञ बार-बार चेता रहे हैं कि अवैज्ञानिक निर्माण, पेड़ों की अंधाधुंध कटाई और नालों पर कब्ज़े से जोखिम कई गुना बढ़ जाता है। लेकिन पहाड़ी ढलानों पर नए रिसॉर्ट, सड़कों का चौड़ीकरण और रिवरफ्रंट विकास प्रोजेक्ट रुके नहीं हैं।
सरकार की योजना पुनर्स्थापना से लेकर दीर्घकालिक रोकथाम तक
राज्य सरकार ने प्रारंभिक तौर पर दो करोड़ रुपए की राहत राशि जारी की है। साथ ही, भूस्खलन-प्रवण इलाकों की त्वरित मैपिंग कराकर स्थायी रिटेनिंग वॉल बनाने का प्रस्ताव है। विशेषज्ञ यह भी सुझा रहे हैं कि हर गांव में बारिश-मापी यंत्र लगाए जाएँ, ताकि अचानक बढ़ते बादलों का डेटा तत्काल मिल सके। राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के सचिव ने कहा है, तुरंत राहत के साथ दीर्घकालीन सुरक्षा ढाँचा बनाना हमारी प्राथमिकता है।
समुदाय, प्रशासन और विज्ञान का तिकोना सहयोग
बिलासपुर में हिमाचल क्लाउडबर्स्ट की इस आपदा ने एक बार फिर साबित कर दिया कि प्राकृतिक विपदाएँ चेतावनी देकर नहीं आतीं। लेकिन सही योजना, सतर्कता और वैज्ञानिक तरीके अपनाकर नुकसान कम किया जा सकता है। समुदाय-स्तर पर चेतना शिविर, स्कूलों में आपदा-प्रशिक्षण और पर्वतीय भवन-निर्माण मानकों का कड़ाई से पालन ही भविष्य की सुरक्षा की राह है।