आजकल सोशल मीडिया पर हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले का एक सरकारी स्कूल चर्चा में है। वजह है एक चेक जिसे उस स्कूल के प्रिंसिपल ने बनाया। इस चेक की फोटो इंटरनेट पर तेजी से वायरल हो रही है। फोटो सामने आते ही लोग तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं। कुछ लोग इसे मजाक बना रहे हैं तो कुछ लोग इसे शिक्षा व्यवस्था की गंभीर समस्या मान रहे हैं। यह मामला इसलिए खास है क्योंकि यह सीधे उन बच्चों से जुड़ा है जो इसी प्रिंसिपल से पढ़ाई कर रहे हैं।
चेक में लिखी स्पेलिंग से हुआ बवाल
इस चेक पर लिखे गए अमाउंट की स्पेलिंग देखकर हर कोई हैरान रह गया। राशि की जगह गलत और हास्यास्पद अंग्रेजी लिखी गई थी। आमतौर पर बैंकिंग और वित्तीय लेन-देन में स्पेलिंग की सटीकता बहुत जरूरी होती है। लेकिन जब एक स्कूल का प्रिंसिपल इस तरह की गलती कर दे तो सवाल उठना स्वाभाविक है। लोग पूछ रहे हैं कि अगर प्रिंसिपल ही इस स्तर पर अंग्रेजी नहीं जानते तो बच्चों को क्या पढ़ाते होंगे।
हिमाचल प्रदेश के सिरमौर इलाके में एक सरकारी स्कूल के प्रिंसिपल ने एक चेक बनाया है, ये बच्चों को क्या पढ़ाते होंगे ?? pic.twitter.com/tQV2yGZQZc
— बैरिस्टर चढ्ढा (घटस्फोट विशेषज्ञ )...😎📚 (Parody) (@rana_indrjeet) September 29, 2025
लोगों की प्रतिक्रियाएं और शिक्षा पर सवाल
सोशल मीडिया पर इस मामले को लेकर बड़ी संख्या में लोग अपनी राय दे रहे हैं। किसी ने कहा कि अगर यही हाल रहा तो बच्चों का भविष्य अंधकारमय हो जाएगा। वहीं कुछ लोग सरकार की शिक्षा व्यवस्था पर सवाल उठा रहे हैं। उनका कहना है कि सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की भर्ती और उनके प्रशिक्षण की जांच होनी चाहिए। इस चेक की फोटो ने देशभर में सरकारी शिक्षा की गुणवत्ता पर चर्चा छेड़ दी है।
सरकारी स्कूलों की हालत पर गहरी चिंता
यह पहली बार नहीं है जब सरकारी स्कूलों की कमजोरियों की चर्चा हुई हो। हिमाचल प्रदेश समेत कई राज्यों में सरकारी स्कूलों की स्थिति लंबे समय से सवालों के घेरे में है। पढ़ाई का स्तर, शिक्षकों की क्षमता और बच्चों के परिणाम अक्सर चर्चा का विषय रहते हैं। अब जब प्रिंसिपल का यह चेक सामने आया है तो यह समस्या और भी गंभीर लगने लगी है। इसने यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या बच्चे सच में अच्छे शिक्षकों से शिक्षा पा रहे हैं या सिर्फ औपचारिकता निभाई जा रही है।
गांव और छोटे कस्बों की शिक्षा की सच्चाई
गांवों और छोटे कस्बों में सरकारी स्कूल ही बच्चों की पढ़ाई का मुख्य आधार होते हैं। वहीं बच्चों के माता-पिता उम्मीद लगाकर उन्हें पढ़ने भेजते हैं। लेकिन जब यही स्कूल गुणवत्ता पर खरे नहीं उतरते तो बच्चों का भविष्य खतरे में पड़ जाता है। निजी स्कूलों में पढ़ाना हर किसी के बस की बात नहीं है क्योंकि वहां फीस काफी ज्यादा होती है। ऐसे में सरकारी स्कूलों की जिम्मेदारी और बढ़ जाती है।
प्रशासन और शिक्षा विभाग की जिम्मेदारी
इस मामले ने शिक्षा विभाग और प्रशासन की जिम्मेदारियों को भी उजागर किया है। सवाल उठता है कि आखिर शिक्षकों की योग्यता की जांच किस स्तर पर होती है। जब एक स्कूल का मुखिया यानी प्रिंसिपल ही मूलभूत गलतियां कर रहा है तो बाकी स्टाफ से क्या उम्मीद की जाए। शिक्षा विभाग को इस घटना से सबक लेना चाहिए और ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए।
बच्चों के भविष्य पर पड़ने वाला असर
सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों की संख्या बहुत अधिक है। अगर उन्हें सही शिक्षा नहीं मिलेगी तो यह सीधे उनके भविष्य पर असर डालेगा। गलत तरीके से पढ़ाई का असर उनके करियर और जीवन पर लंबे समय तक दिखाई देगा। यही वजह है कि इस वायरल चेक ने एक मजाक से ज्यादा चिंता पैदा कर दी है। बच्चे वही सीखते हैं जो शिक्षक उन्हें सिखाते हैं और अगर शिक्षक ही कमजोर होंगे तो बच्चे कैसे आगे बढ़ेंगे।
लोगों की उम्मीदें और सुधार की आवश्यकता
लोगों की उम्मीद है कि सरकार और शिक्षा विभाग इस मामले को गंभीरता से ले। सिर्फ एक घटना पर हंसकर आगे बढ़ जाने से समस्या हल नहीं होगी। जरूरी है कि शिक्षकों के लिए समय-समय पर प्रशिक्षण आयोजित किया जाए। साथ ही बच्चों की पढ़ाई का स्तर जांचने के लिए नियमित परीक्षाएं और मूल्यांकन भी होना चाहिए। जब तक इस दिशा में ठोस कदम नहीं उठाए जाएंगे तब तक ऐसी घटनाएं दोहराई जाती रहेंगी।