हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956: बेटी के संपत्ति अधिकारों पर बड़ा बदलाव, जानें पूरा कानून
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 ने बेटियों को संपत्ति में बराबरी का अधिकार दिया है। जानिए कैसे यह कानून बेटी को पिता की संपत्ति में समान हिस्सेदारी का हकदार बनाता है और क्या हैं इसके प्रमुख प्रावधान।
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के तहत बेटी के संपत्ति अधिकार: जानें क्या कहता है कानून
हिंदू कानून (Hindu Law) प्राचीन शास्त्रों से उत्पन्न हुआ है और समय के साथ न्यायिक निर्णयों के माध्यम से विकसित हुआ है। 1956 में जब हिंदू विवाह अधिनियम, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, हिंदू दत्तक और भरण-पोषण अधिनियम, और हिंदू अल्पसंख्यक और अभिभावक अधिनियम पारित किए गए, तब हिंदू परिवारों में संपत्ति, विवाह, और उत्तराधिकार से संबंधित नियमों को विधिक रूप से स्थापित किया गया। इनमें सबसे महत्वपूर्ण कानून है हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 (Hindu Succession Act, 1956), जिसने संपत्ति के उत्तराधिकार और उत्तराधिकारियों के अधिकारों को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया।
व्यक्तिगत संपत्ति में बेटी के अधिकार
कानून के अनुसार, कोई भी हिंदू पुरुष या महिला अपनी स्वयं अर्जित संपत्ति को वसीयत (Will) के माध्यम से अपनी इच्छानुसार किसी को भी दे सकता है। लेकिन यदि कोई व्यक्ति बिना वसीयत के मृत्यु को प्राप्त होता है, तो उसे “अवसीयत रहित मृत्यु (Intestate Death)” कहा जाता है, और उसकी संपत्ति हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के प्रावधानों के तहत कानूनी उत्तराधिकारियों में बाँटी जाती है।
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यदि मां की मृत्यु होती है, तो बेटी को अपने भाई के बराबर हिस्सा मिलता है। पिता को भी उसी अनुपात में हिस्सा प्राप्त होता है जितना बेटा या बेटी को। यदि किसी भाई या बहन की मृत्यु पहले हो गई है, तो उनके बच्चे (कानूनी उत्तराधिकारी) अपने माता-पिता के हिस्से के हकदार होंगे।
इसी तरह, पिता की मृत्यु होने पर बेटी को भाई के समान हिस्सा प्राप्त होता है। मां और दादी को भी वही हिस्सा मिलता है जो बेटे या बेटी को मिलता है। यदि किसी बेटे या बेटी की मृत्यु पहले हो चुकी है, तो उनके बच्चे वही हिस्सा पाएंगे जो उनके माता-पिता को मिलता अगर वे जीवित होते।
संयुक्त परिवार संपत्ति (HUF) में बेटी के अधिकार
हिंदू संयुक्त परिवार (HUF – Hindu Undivided Family) एक विशेष अवधारणा है जिसे हिंदू कानून मान्यता देता है। यह उन लोगों का परिवार होता है जो एक ही पुरुष पूर्वज से वंशानुगत रूप से जुड़े होते हैं। इसमें दो प्रकार के सदस्य होते हैं —
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सहभाजक (Coparceners) — जो जन्म से परिवार में शामिल होते हैं।
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सदस्य (Members) — जो विवाह के माध्यम से परिवार में आते हैं।
2005 के संशोधन (Amendment) से पहले केवल पुरुषों को ही सहभाजक (Coparcener) माना जाता था। लेकिन 09 सितंबर 2005 से बेटियों को भी पुत्रों के समान अधिकार दिए गए हैं। अब बेटी भी सहभाजक मानी जाती है और उसे भी संयुक्त संपत्ति में समान हिस्सा प्राप्त करने, विभाजन की मांग करने और यहां तक कि HUF की कर्ता (Karta) बनने का अधिकार है।
पहले बेटी को केवल अपने पिता की मृत्यु के बाद उसके हिस्से से ही अधिकार मिलता था, लेकिन अब जन्म से ही उसे यह अधिकार प्राप्त है। यदि बेटी की मृत्यु हो जाती है, तो उसका हिस्सा उसके कानूनी उत्तराधिकारियों को मिल जाता है।
ध्यान देने योग्य बात यह है कि बेटी अपनी संयुक्त संपत्ति का हिस्सा जीवित रहते हुए उपहार (Gift) के रूप में नहीं दे सकती, लेकिन वसीयत (Will) के माध्यम से अपनी मृत्यु के बाद वह अपनी संपत्ति किसी को भी दे सकती है। यदि वसीयत नहीं होती, तो उसकी संपत्ति हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 6 के अनुसार उसके कानूनी उत्तराधिकारियों में बाँटी जाएगी।
निष्कर्ष
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 और 2005 संशोधन ने बेटियों को संपत्ति के समान अधिकार देकर समाज में लैंगिक समानता (Gender Equality) की दिशा में बड़ा कदम उठाया है। अब बेटी को अपने पिता की संपत्ति में न केवल बराबरी का हिस्सा मिलता है बल्कि वह संयुक्त परिवार की संपत्ति की साझेदार भी बन गई है। यह बदलाव भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति को और मजबूत बनाता है।
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