Icy cold : में क्यों नन्हें बच्चों को खुले में सुलाते हैं माता-पिता?
सर्दियों की बर्फीली ठंड में जब तापमान माइनस तक चला जाता है, तब भी यूरोप के कई देशों में माता-पिता अपने नन्हें बच्चों को घर के अंदर नहीं बल्कि खुले आसमान के नीचे सुलाते हैं. यह परंपरा वहां के लोगों की रोज़मर्रा की जीवनशैली का हिस्सा है. उनका विश्वास है कि ठंडी और ताज़ी हवा बच्चों की सेहत मजबूत करती है, इम्यूनिटी बढ़ाती है और उन्हें गहरी नींद पाने में मदद करती है, जिससे उनका विकास बेहतर होता है.
दुनिया के कई देशों में सर्दियों के महीनों में तापमान इतना नीचे चला जाता है कि बर्फ जमने लगती है, हवा हड्डियों तक चीर देती है और इंसान का घर से बाहर निकलना मुश्किल हो जाता है. ऐसे माहौल में हमारे यहां तो बड़े-बुजुर्ग भी घर से बाहर निकलने से कतराते हैं. लेकिन सोचिए, ऐसे देशों में माता-पिता अपने छोटे बच्चों को, जिनकी उम्र सिर्फ चार से छह महीने की होती है, खुले आसमान के नीचे सुला देते हैं. सवाल उठता है कि जब इतनी बर्फीली ठंड हो, माइनस में टेम्प्रेचर गिरा हो, तब आखिर माता-पिता ऐसा क्यों करते हैं?
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कड़ाके की ठंड में खुले आसमान के नीचे सोते नन्हें बच्चे क्या है यह परंपरा
यूरोप के कई देशों, खासकर फिनलैंड, नॉर्वे, डेनमार्क और स्वीडन जैसे नॉर्डिक क्षेत्रों में यह परंपरा लंबे समय से चली आ रही है कि बच्चे को दिन के वक्त खुले में सुलाया जाता है. वहां के माता-पिता का मानना है कि ठंडी और ताज़ी हवा में सोने से बच्चों की सेहत बेहतर होती है. वहां की संस्कृति और स्वास्थ्य संबंधी सोच इस विचार पर आधारित है कि अगर बच्चे को छोटी उम्र से ही प्रकृति के संपर्क में रखा जाएगा, तो उसका शरीर ज्यादा मजबूत बनेगा.
ठंडी हवा से बच्चों की सेहत क्यों बेहतर मानी जाती है
स्थानीय डॉक्टर और वैज्ञानिकों का मानना है कि बाहर की ठंडी हवा बच्चों को बीमारियों से लड़ने में और सक्षम बनाती है. वहां यह धारणा गहरी है कि घर के भीतर ज्यादा गर्माहट और बंद माहौल बच्चों को जल्दी संक्रमण की चपेट में ले लेता है. लेकिन प्राकृतिक ठंडक उन्हें हर सीजन के हिसाब से एडजस्ट करना सिखाती है. माता-पिता मानते हैं कि जब बच्चे बर्फीली ठंड के मौसम में खुले वातावरण में सोते हैं, तो वे मजबूत इम्यूनिटी विकसित कर पाते हैं.
माइनस तापमान में भी बच्चे बाहर क्यों सोते हैं क्या है वैज्ञानिक कारण
कई शोधों में यह दर्ज है कि ठंडी हवा में बच्चे का सोना उसकी नींद की गुणवत्ता को बेहतर बना देता है. बच्चों को गहरी और लंबी नींद आती है, जिससे उनके मस्तिष्क और शरीर का विकास तेज होता है. नॉर्डिक माता-पिता का विश्वास है कि इस आदत से उनका बच्चा मानसिक तौर पर भी अधिक स्थिर होता है. हालांकि वहां माता-पिता बेहद सावधानी रखते हैं—बच्चों को मोटे और गर्म कपड़ों में लपेटा जाता है, खास कंबल और कवर का इस्तेमाल किया जाता है, ताकि ठंड सीधे शरीर को नुकसान न पहुंचाए.
हमारे नजरिए से अजीब लेकिन उनके लिए आम जीवन शैली
भारत जैसे देशों में जहां सर्दियां भी जीवनशैली को बदल देती हैं, वहां यह सोच अजीब लग सकती है कि कोई माता-पिता अपने छोटे बच्चे को बर्फबारी वाली ठंड में बाहर सुलाए. लेकिन जिन देशों का तापमान अक्सर माइनस टेम्प्रेचर तक जाता है, उनके लिए यह साधारण जीवनशैली का हिस्सा है. वहां पार्कों और घरों के बाहर आपको बच्चों की खास गाड़ियों में सोते हुए अनेक शिशु दिख जाएंगे. माता-पिता उन्हें वहां आराम से छोड़कर अपने कामकाज में भी जुट जाते हैं.
क्या बच्चे सुरक्षित रहते हैं बाहर सोते वक्त जानिए माता-पिता का नजरिया
माता-पिता का मानना है कि बच्चा बाहर सोते वक्त पूरी तरह सुरक्षित रहता है, क्योंकि उन देशों में कानून व्यवस्था और सामाजिक वातावरण काफी सुरक्षित है. वहां पड़ोसियों को बच्चों की देखभाल को लेकर जागरूकता भी ज्यादा है. कोई भी अनजान बच्चा सड़क या पार्क में लावारिस नहीं छोड़ा जाता, बल्कि समाज मिलकर उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी उठाता है. ऊपर से वैज्ञानिक और डॉक्टर लगातार ऐसे शोध साझा करते रहते हैं जो बताते हैं कि ठंडी हवा बच्चों के लिए कितनी फायदेमंद है.
क्यों हमें लगता है यह अजीब, जबकि वहां यह सामान्य है
हमारे देश में ठंड का मतलब होता है बंद कमरे, गर्म रजाई और हीटर. यहां के सामाजिक और सांस्कृतिक हालात अलग हैं. ऐसे माहौल में यह कल्पना करना कि कोई पांच महीने का बच्चा माइनस में खुले में सो रहा होगा, अजीब लगता है. लेकिन संस्कृति और माहौल के फर्क को समझना जरूरी है. वे माता-पिता इसे मजबूरी नहीं बल्कि बच्चों की सेहत के लिए जरूरी अभ्यास मानते हैं. यही वजह है कि वहां यह पीढ़ियों से होती आ रही परंपरा आज भी कायम है.
क्या ऐसी आदत भारत जैसे देशों में हो सकती है
यहां सवाल भी यही उठता है कि अगर नॉर्डिक देशों में यह स्वास्थ्यवर्धक परंपरा है, तो क्या हम भी इसे अपनाएं? इसका सीधा सा जवाब है कि हर जगह की जलवायु अलग होती है. भारत में प्रदूषण का स्तर ज्यादा है और सामाजिक ढांचा भी अलग तरह का है. यहां खुले में छोटे बच्चों को सुलाना उनके स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है. लेकिन यह जानना रोचक है कि पूरी दुनिया में जीवन शैली कितनी विविध है और लोग अपने बच्चों की परवरिश कितने अलग तरीकों से करते हैं.
बच्चों की परवरिश में प्राकृतिक वातावरण का महत्व
इस पूरी परंपरा से एक बात साफ होती है कि बच्चे की परवरिश में प्रकृति की भूमिका बेहद अहम है. चाहे हम भारत में हों या नॉर्डिक देशों में, अगर बच्चे को ताजी हवा, प्राकृतिक माहौल और स्वस्थ दिनचर्या दी जाए, तो उसका शारीरिक और मानसिक विकास मजबूत होता है. वहां के माता-पिता इसे गंभीरता से मानते हैं और बर्फीली ठंड के बीच भी अपने बच्चों को जुटाकर खुले में सुलाने से हिचकिचाते नहीं.
ठंड में खुली हवा में सोना परंपरा से ज्यादा सोच है
बर्फ से ढकी सड़कों वाले देशों में जब कोई बच्चा स्ट्रॉलर में सोता हुआ दिखे, तो वहां के माता-पिता उसे सामान्य मानते हैं. हमारे यहां यह शायद कभी सामान्य न लगे, लेकिन यह जानना जरूरी है कि इस परंपरा के पीछे कोई अंधविश्वास नहीं, बल्कि स्वास्थ्य और प्रकृति के प्रति विश्वास की सोच है. यही सोच बच्चों को लेकर वहां की पीढ़ियों को मजबूत बनाती आई है.
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