भारत और यूरोपीय संघ (European Union) के बीच लंबे समय से जिस फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (India EU FTA) की चर्चा हो रही थी, अब वह अपने अंतिम पड़ाव पर पहुंच गया है। यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन ने हाल ही में कहा है कि इस साल के अंत तक भारत और यूरोप के बीच यह समझौता पूरी तरह से तैयार कर दिया जाएगा। यह समझौता न केवल भारत के लिए व्यापार की नई संभावनाएं खोलेगा बल्कि यह संदेश भी देगा कि वैश्विक व्यापार में भारत की स्थिति लगातार मजबूत हो रही है। इस बीच जब अमेरिका और कुछ यूरोपीय देशों के बीच टैरिफ और व्यापार को लेकर तनातनी बढ़ रही है, भारत और यूरोप के इस कदम से अमेरिका को बड़ा झटका लग सकता है। भारत लंबे समय से ऐसे समझौते की उम्मीद कर रहा था, जिससे भारतीय कंपनियों और किसानों को यूरोपीय बाजारों तक आसान पहुंच मिल सके। अब जब यह समझौता अंतिम चरण में पहुंचा है, तब उम्मीद की जा रही है कि भारतीय वस्त्र, दवाइयां, कृषि उत्पाद और टेक उद्योग को बिना किसी टैरिफ के यूरोप में बड़ा बाजार मिलेगा। वहीं यूरोप भारत के विशाल उपभोक्ता बाजार और तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था में अपनी उपस्थिति मज़बूत कर सकेगा। इस पूरी प्रक्रिया में भारत की छवि एक जिम्मेदार आर्थिक शक्ति के रूप में उभरी है। विशेषज्ञों का कहना है कि भारत ने इस समझौते के लिए कूटनीतिक कौशल और आर्थिक रणनीति का अच्छा संतुलन दिखाया है।
भारत के लिए क्यों अहम है यूरोप के साथ यह समझौता
भारत के लिए India EU FTA किसी वरदान से कम नहीं है। दुनिया भर में बड़े बाजारों की खोज में निकली भारतीय कंपनियों के लिए यूरोप हमेशा से सबसे आकर्षक जगह रहा है। यूरोप में करीब 45 करोड़ उपभोक्ता हैं और यह बाजार उच्च आय वाले लोगों से भरा हुआ है, जहां भारतीय उत्पादों की खासी मांग पाई जाती है। खासकर भारतीय वस्त्र, दवाइयां, आईटी सेवाएं और कृषि उत्पाद यूरोपीय ग्राहकों के बीच लोकप्रिय हैं। अब बिना टैरिफ के इन वस्तुओं का निर्यात करना भारतीय व्यापारियों के लिए सीधा लाभ का सौदा बनने जा रहा है। भारत को यूरोप से मिलने वाला यह फायदा इसलिए भी खास है क्योंकि दुनिया के दूसरे बड़े बाजारों, जैसे कि अमेरिका और चीन के साथ व्यापार में कई तरह की दिक्कतें आती हैं। अमेरिका के साथ टैरिफ विवाद और चीन के साथ बढ़ते तनाव के बीच भारत के पास यूरोप के रूप में एक मजबूत और स्थिर व्यापार भागीदार होगा। यह न केवल भारतीय अर्थव्यवस्था को नई रफ्तार देगा बल्कि देश में लाखों नए रोजगार बनने की संभावना भी बढ़ाएगा। सबसे बड़े सवालों में से एक यह है कि यह समझौता भारतीय किसानों और छोटे उद्योगों के लिए कितना उपयोगी साबित होगा। विशेषज्ञ कहते हैं कि भारतीय कृषि उत्पाद जैसे चाय, कॉफी, मसाले और ऑर्गेनिक चीजें यूरोप में बेहद पसंद की जाती हैं। अब जब उन पर से टैरिफ हट जाएगा तो निर्यात में तेजी आना तय है। भारतीय किसान अपनी उपज सीधे यूरोप तक पहुंचा सकेंगे और उन्हें बेहतर दाम भी मिलेगा।
अमेरिका को क्यों लगेगा बड़ा झटका इस फैसले से
अमेरिका और यूरोप के बीच पिछले कुछ महीनों से व्यापारिक शिकायतें और टकराव बढ़ रहे हैं। कई यूरोपीय देशों ने अमेरिकी उत्पादों पर अतिरिक्त टैरिफ लगाने की बात कही है। इसी बीच भारत और यूरोप का यह नया समझौता अमेरिका की चिंता को और बढ़ा देगा। विशेषज्ञ बताते हैं कि अमेरिका हमेशा चाहता था कि बड़े बाजार केवल उसके लिए खुले रहें। लेकिन यूरोप, एशिया और अफ्रीका में भारत की बढ़ती साख अब अमेरिकी कंपनियों के लिए चुनौती बन गई है। जब भारत और यूरोप के बीच बिना टैरिफ के व्यापार शुरू होगा, तो अमेरिकी कंपनियों को दोनों जगह बाजार में मुकाबला करने में मुश्किल होगी। इस फैसले का असर केवल अर्थव्यवस्था पर ही नहीं बल्कि राजनीति पर भी दिखेगा। भारत अब स्पष्ट रूप से दुनिया में एक स्वतंत्र शक्ति के तौर पर पहचाना जाने लगा है, जो अमेरिका की दबाव भरी नीतियों से हटकर अपने फैसले खुद ले रहा है। यही कारण है कि इस पूरे मामले को अमेरिकी मीडिया "ट्रंप को झटका" की तरह पेश कर रहा है। भारत और यूरोप के बीच यह कदम अमेरिका के लिए उस पारंपरिक धारणा को तोड़ देगा, जिसमें वह खुद को 'दुनिया का सबसे बड़ा व्यापार सहयोगी' मानता रहा है।
भारत और यूरोप दोनों को कैसे होगा फायदा
यह समझौता केवल भारत के लिए ही नहीं, बल्कि यूरोप के लिए भी बड़ा अवसर लेकर आ रहा है। यूरोपीय देश लंबे समय से यह तलाश कर रहे थे कि वे एशिया में किसी भरोसेमंद साथी को चुनें। चीन के साथ बढ़ते व्यापारिक टकराव और महामारी के बाद बदली परिस्थितियों ने यूरोपीय देशों को भारत की ओर देखने पर मजबूर किया। भारत का विशाल बाजार और यहां की जनसंख्या यूरोप के लिए सबसे बड़ा आकर्षण है। यूरोप की लग्जरी वस्तुएं, तकनीकी उत्पाद और ऑटोमोबाइल उद्योग भारत में और मजबूती से अपनी जगह बना पाएंगे। इससे न केवल यूरोप की कंपनियों को फायदा मिलेगा बल्कि भारतीय उपभोक्ताओं को भी बेहतर विकल्प और प्रतिस्पर्धी दाम पर सामान मिलेगा। भारत के आईटी सेक्टर और दवा उद्योग को यूरोप में जब नई पहुंच मिलेगी तो यह वहां के स्वास्थ्य क्षेत्र और डिजिटल परिवर्तन के प्रयासों में अहम भूमिका निभाएगा। वहीं यूरोप अपनी उन्नत तकनीक भारत लाकर ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ जैसे अभियानों को और मजबूत बना सकता है। अर्थशास्त्री मानते हैं कि यह सौदा दोनों तरफ के उद्योगों के लिए एक 'विन-विन' स्थिति है। यही कारण है कि इसे केवल एक साधारण व्यापार समझौते के बजाय एक ऐतिहासिक India EU FTA की तरह देखा जा रहा है।
भारत की वैश्विक छवि को कैसे मिलेगा नया आयाम
भारतीय कूटनीति ने पिछले कुछ सालों में दुनिया को यह दिखाया है कि भारत केवल एक उभरती हुई अर्थव्यवस्था नहीं है, बल्कि एक ऐसा देश है जो अपने हितों के लिए निर्णायक कदम भी उठा सकता है। भारत और यूरोप के बीच होने वाला यह समझौता इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। अब भारत की छवि केवल एक व्यापारिक साझेदार की नहीं बल्कि एक रणनीतिक शक्ति की भी बनेगी। चीन और अमेरिका जैसे दो बड़े देशों के बीच टकराव वाले दौर में भारत का यूरोप के साथ यह कदम बताता है कि भारत अपनी राह खुद तय कर रहा है और उसकी आर्थिक नीति किसी भी दबाव से प्रभावित नहीं हो रही है। वैश्विक स्तर पर यह समझौता भारत की ताकत को और बढ़ा देगा। वर्ल्ड ट्रेड के बड़े मंचों पर भारत की आवाज और अधिक मजबूत सुनी जाएगी। विशेषज्ञों का कहना है कि आने वाले पांच से दस साल में भारत इस समझौते का लाभ उठाकर दुनिया की टॉप तीन अर्थव्यवस्थाओं में शामिल हो सकता है। यह एक ऐसा पल है जब भारत को एक वैश्विक 'गेम चेंजर' की तरह देखा जा रहा है।