दुनिया भर में बढ़ते ड्रग्स के खतरे के बीच अंतरराष्ट्रीय पुलिस एजेंसी इंटरपोल ने साल 2025 में एक ऐसा कदम उठाया जिसने कई देशों को हिला दिया। इस कदम का नाम रखा गया इंटरपोल का ड्रग्स के खिलाफ ऑपरेशन, जिसे "Lionfish-Mayag III" कहा गया। यह 30 जून से 13 जुलाई तक चला और भारत समेत 18 देशों में एक साथ चलाया गया। इस दौरान करीब 6.5 अरब डॉलर की अवैध ड्रग्स की खेप पकड़ी गई। यह सिर्फ आकड़ों का खेल नहीं था, बल्कि यह संदेश था कि दुनिया अब ड्रग्स तस्करों को खुला मैदान नहीं देने वाली।
ऑपरेशन की शुरुआत और इसका असली मकसद क्यों अहम था
इंटरपोल का यह ऑपरेशन इसलिए खास रहा क्योंकि हाल के वर्षों में ड्रग्स की समस्या सिर्फ किसी एक देश तक सीमित नहीं रही। खासकर सिंथेटिक ड्रग्स की तस्करी ने एशिया और उत्तरी अमेरिका को गहरे संकट में डाल दिया है। इस ऑपरेशन का सीधा उद्देश्य था इस तरह के नेटवर्क को पकड़ना और उनके सप्लाई चैन को तोड़ना। भारत जैसे देशों के लिए यह और भी जरूरी था क्योंकि यहां बड़ी युवा आबादी रहती है, और ड्रग्स का असर सबसे पहले इसी पीढ़ी पर दिखाई देता है।
18 देशों में एक साथ छापे और ड्रग्स माफियाओं पर शिकंजा
यह ऑपरेशन भारत सहित 18 देशों में चलाया गया। इनमें एशियाई देशों से लेकर उत्तरी अमेरिका के बड़े हिस्से शामिल थे। इंटरपोल ने बताया कि तस्करों पर सीधे तौर पर दबाव बनाने के लिए एक ही समय में छापेमारी की गई, ताकि कोई भी गैंग अलर्ट होकर बचने की कोशिश न कर सके। इन छापों के दौरान बड़े-बड़े ड्रग्स लैब सील किए गए और कई देशों की पुलिस ने मिलकर तस्करों को गिरफ्तार किया। यह साफ दिखाता है कि जब देश मिलकर काम करते हैं तो अपराधियों के पास बचने का रास्ता कम हो जाता है।
6.5 अरब डॉलर की ड्रग्स की खेप पकड़ी गई, यह कितनी बड़ी है
अक्सर अरबों की रकम सुनकर लोगों को अंदाजा नहीं होता कि इसका असल मतलब क्या है। इंटरपोल ने बताया कि इस ऑपरेशन में करीब 6.5 अरब डॉलर की अवैध ड्रग्स जब्त की गई। अगर इसे भारतीय रुपये में देखें तो यह लाखों करोड़ में पहुंच जाता है। इतने बड़े स्तर पर ड्रग्स का पकड़ा जाना दिखाता है कि इंटरपोल का यह कदम कितना सफल रहा और अगर यह सामान बाजार में पहुंच जाता तो कितनी जिंदगियां बर्बाद हो सकती थीं।
भारत की भूमिका और यहां मिली सफलता
भारत ने इस ऑपरेशन में सक्रिय भूमिका निभाई। विभिन्न राज्यों की पुलिस और नारकोटिक्स एजेंसियों ने मिलकर छापेमारी की। भारत के कई हिस्सों में सिंथेटिक ड्रग्स के खिलाफ कार्रवाई हुई, जिससे साफ दिखा कि देश इंटरपोल के इस मिशन में पूरी गंभीरता से शामिल था। भारतीय एजेंसियों ने न सिर्फ ड्रग्स पकड़ीं, बल्कि इस नेटवर्क से जुड़े कई आरोपियों को गिरफ्तार भी किया। यह बताता है कि भारत ऐसे अंतरराष्ट्रीय अभियानों का नेतृत्व कर सकता है और उसका योगदान कितना जरूरी है।
युवाओं पर ड्रग्स का बढ़ता असर और चिंता
आज दुनिया के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि ड्रग्स खासतौर पर युवाओं तक तेजी से पहुंच रहे हैं। स्कूल और कॉलेज जाने वाले बच्चे इनकी चपेट में आसानी से आ रहे हैं। सिंथेटिक ड्रग्स का सबसे बड़ा खतरा यह है कि उन्हें बनाना आसान है और तस्कर इन्हें छोटे-छोटे पैकेट में बाज़ार तक पहुँचा देते हैं। यही वजह है कि इंटरपोल के विशेषज्ञ मानते हैं कि अब सिर्फ एक देश की कोशिश काफी नहीं, बल्कि पूरी दुनिया को मिलकर इस चुनौती का सामना करना होगा।
इंटरपोल ने क्यों कहा यह ऑपरेशन एक बड़ा संदेश है
इंटरपोल ने साफ कहा कि यह ऑपरेशन किसी देश या संस्था की जीत नहीं, बल्कि यह अपराधियों को सीधे तौर पर भेजा गया संदेश है। यह संदेश है कि अब दुनिया ड्रग्स की तस्करी को नजरअंदाज नहीं करने वाली, चाहे वह किसी भी कोने में क्यों न छिपी हो। आपसी सहयोग और साझा खुफिया जानकारी ही इस नेटवर्क को तोड़ सकती है।
भविष्य के लिए क्या सबक और चुनौतियां बचीं
इतनी बड़ी कार्रवाई के बाद सवाल उठता है कि आगे क्या होगा। विशेषज्ञ मानते हैं कि तस्कर नई तकनीक का इस्तेमाल करते हैं और लगातार अपने तरीकों को बदलते रहते हैं। इसलिए इस तरह की ऑपरेशन को बार-बार चलाना होगा। साथ ही लोगों को ड्रग्स के नुकसान के बारे में समझाना भी उतना ही जरूरी है। अगर समाज खुद जागरूक होगा तो तस्करों की पूरी रणनीति कमजोर पड़ जाएगी।