संयुक्त राष्ट्र महासभा के मंच पर जब इंडोनेशिया के राष्ट्रपति ने दुनिया से सवाल किया कि हमेशा फिलिस्तीन की आवाज उठाने वाले देश इजरायल की मान्यता क्यों नहीं देते, तो सब चौंक गए। उन्होंने साफ कहा कि शांति तभी आएगी, जब दोनों देशों को आधिकारिक मान्यता मिले और तेल अवीव को पूरी सुरक्षा की गारंटी मिले। यह पहली बार है कि कोई मुस्लिम बहुल देश का नेता वैश्विक मंच पर इजरायल के लिए खुलेआम ऐसी बात कह रहा है। उनकी इस पहल ने इस पुराने विवाद पर नई बहस छेड़ दी है, जिसमें फिलिस्तीन की मान्यता के सवाल पर तमाम देश तो खुलकर खड़े हो जाते हैं, लेकिन इजरायल के अस्तित्व व सुरक्षा पर अक्सर चुप्पी साध लेते हैं।
फिलिस्तीन की मान्यता के सवाल पर दुनिया में बंटवारा क्यों?
फिलिस्तीन को अब तक करीब 139 देश मान्यता दे चुके हैं, लेकिन संयुक्त राष्ट्र और बाकी बड़ी शक्तियां अभी भी एक राय पर नहीं पहुंचीं हैं। लगातार कई मुस्लिम देश फिलिस्तीन का समर्थन करते हैं, लेकिन इजरायल के साथ अपने रिश्तों को लेकर कठोर रहते हैं। मौजूदा समय में ज्यादातर अफ्रीकी और एशियाई देश फिलिस्तीन को देश के रूप में कबूल करते हैं, मगर अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और कई यूरोपीय देश फिलिस्तीन को अभी तक पूरा दर्जा नहीं देते। यह विरोधाभास बनाकर रखता है कि एक तरफ इंसाफ और हुकूक की बातें होती हैं, दूसरी ओर समान हक और सुरक्षा की गारंटी नहीं मिलती।
इजरायल को मान्यता क्यों नहीं देते कुछ देश?
इजरायल एक सच है जिसे लगभग 165 देश पहले ही मान चुके हैं, लेकिन मुस्लिम और कुछ अन्य देश आज भी इसे मान्यता देने से हिचकिचाते हैं। इसके पीछे मुख्य वजह है फिलिस्तीनियों के साथ हो रहा अन्याय और इसरायल की नीतियाँ। साथ ही, कुछ मुल्क अपनी जनता की भावना और पिछले संघर्षों को देखते हुए खुलकर आगे नहीं आना चाहते। कई सरकारें मानती हैं कि जब तक फिलिस्तीन को पूरा हक़ और संप्रभुता नहीं मिलेगी तब तक इजरायल को मान्यता देना तर्कसंगत नहीं होगा। इसका सीधा असर शांति प्रक्रिया पर भी पड़ता है।
क्या आधी-अधूरी मान्यता से कभी शांति आएगी?
शांति तब आती है जब दोनों पक्षों को बराबरी का दर्जा मिले। फिलिस्तीन को तो कुछ देशों ने मान लिया, मगर इजरायल के साथ जब तक खुली बातचीत और सुरक्षा की गारंटी नहीं होगी, वैश्विक स्थिरता मुमकिन नहीं है। इंडोनेशिया के राष्ट्रपति ने सही मुद्दा उठाया है कि अगर सिर्फ एक पक्ष की बात होगी और दूसरे की उपेक्षा, तो शांति स्थायी नहीं हो सकती। आधी-अधूरी मान्यता से लोगों के बीच अविश्वास और तनाव ही बढ़ेगा। दोनों देशों को पूरी तरह स्वीकार करना ही एकमात्र रास्ता है जिससे समाधान निकलेगा।
इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष का इतिहास और उसकी जड़ें
यह विवाद नया नहीं है, बल्कि करीब 100 साल पुराना है। 1947 में संयुक्त राष्ट्र ने जब फिलिस्तीन को यहूदियों और अरबों में बांटने का प्रस्ताव रखा, तभी से दोनों के बीच खींचतान शुरू हो गई। इजरायल एक ओर अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा था, तो फिलिस्तीनियों की जमीन छिनती जा रही थी। 1967 के युद्ध के बाद पश्चिमी किनारे और गाजा पट्टी पर इजरायल ने कब्जा किया, जिससे तनाव और बढ़ गया। आज भी दोनों अपने-अपने अधिकारों के लिए जूझ रहे हैं और अंतरराष्ट्रीय समुदाय में इसी को लेकर बहस जारी है।
संयुक्त राष्ट्र की भूमिका और सीमाएं
संयुक्त राष्ट्र समय-समय पर दोनों पक्षों के बीच मध्यस्थता की कोशिश करता रहा है। 2012 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने फिलिस्तीन को गैर-सदस्य पर्यवेक्षक राज्य का दर्जा दिया, लेकिन वह आज भी पूर्ण सदस्य नहीं बन सका है। कई बार प्रस्ताव पारित हुए, मगर बड़े देश अपने हितों के कारण ठोस फैसला नहीं ले सके। इससे फिलिस्तीन और इजरायल दोनों की उम्मीदें बार-बार टूटती रहती हैं।
मुस्लिम देशों का रुख और बदलती सोच
अब तक ज्यादातर मुस्लिम देश इजरायल के अस्तित्व को मान्यता देने से इंकार कर चुके हैं। पर, पिछले कुछ सालों में संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन, मोरक्को और सूडान जैसे देशों ने इजरायल से रिश्ते बनाने शुरू किए हैं। इंडोनेशिया के राष्ट्रपति का बयान इस सोच में बदलाव का प्रतीक है। वह मानते हैं कि शांति के लिए दोनों पक्षों को बराबरी से देखना जरूरी है, जिससे आम लोगों के जीवन में सुधार आ सके।
क्या दुनिया के बड़े देश समाधान की ओर कदम बढ़ाएंगे?
अमेरिका, रूस, चीन और यूरोपीय संघ जैसे ताकतवर देश शांति प्रक्रिया में अहम भूमिका निभा सकते हैं। लेकिन, अक्सर यह देखा गया है कि कूटनीतिक और आर्थिक हित उनके फैसलों को प्रभावित करते हैं। अगर बड़े देश निष्पक्ष होकर दोनों का समर्थन करें और फिलिस्तीन को भी उतनी ही अहमियत दें जितनी इजरायल को, तो व्यावहारिक समाधान सामने आ सकता है। वरना यह टकराव और लंबा खिंच सकता है।
सभी को समान मान्यता मिले तभी आएगी सच्ची शांति
फिलिस्तीन और इजरायल के बीच चल रहा टकराव तभी खत्म हो सकता है, जब दोनों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पूरी मान्यता मिले। जब तक आधी दुनिया एक पक्ष के साथ और आधी दूसरे के साथ खड़ी रहेगी, तब तक शांति केवल एक सपना बनी रहेगी। इंडोनेशिया के राष्ट्रपति का संयुक्त राष्ट्र में दिया गया ब्यान इस दिशा में एक नई सोच को उभारता है। यह वक्त की जरूरत है कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति में इंसाफ, समानता और सुरक्षा की असली मिसाल पेश हो, जिससे आने वाली पीढ़ियां शांति से रह सकें।