Jaisalmer: जैसलमेर में टांके का दर्दनाक हादसा, दो मासूम बच्चियों की मौत

जैसलमेर के ग्रामीण इलाके में पानी भरने गई सात साल की बच्ची का पैर फिसलते ही टांके में गिर गई और उसकी जिंदगी कुछ ही मिनटों में खत्म हो गई मामा की 14 साल की बेटी ने साहस दिखाकर तुरंत टांके में डुबकी लगाई लेकिन गहरे पानी में फंसकर खुद की जान भी गंवा बैठी और परिवार पर दुख का पहाड़ टूटा

Jaisalmer: जैसलमेर में टांके का दर्दनाक हादसा, दो मासूम बच्चियों की मौत

राजस्थान के रेतीले इलाके जैसलमेर से एक दिल दहला देने वाली खबर सामने आई है। यहां गांव के एक टांके (पानी का बड़ा गड्ढा या कुंआनुमा तालाब) में पानी भरते समय हुआ हादसा पूरे परिवार पर दुख का पहाड़ बनकर टूटा। टांके से पानी भर रही छोटी बच्ची का पैर फिसल गया और वह गहरे पानी में जा गिरी। उसे बचाने के लिए मामा की बेटी तुरंत कूद गई लेकिन वह भी डूब गई। इस दर्दनाक घटना में दोनों मासूम बच्चियों की मौत हो गई। गांव में मातम पसरा हुआ है और हर कोई स्तब्ध है।

 

गांव में पानी भरते समय मासूम बच्ची का पैर फिसल जाने से हुई शुरुआत

ग्रामीण इलाकों में पानी के लिए लोग अब भी टांकों और तालाबों पर निर्भर रहते हैं। जैसलमेर के इस गांव में भी लड़कियां टांके से पानी भरने पहुंचीं। इसी दौरान सात साल की एक बच्ची का पैर फिसला और वह सीधा पानी में जा गिरी। टांके की गहराई ज्यादा थी और बच्ची तैरना नहीं जानती थी। अचानक चीख-पुकार मच गई लेकिन कोई तुरंत मदद नहीं कर सका।

 

मामा की बेटी ने साहस दिखाकर फौरन छलांग लगाई लेकिन खुद की जान गंवा बैठी

जैसे ही बच्ची गिरी, उसके साथ खड़ी मामा की 14 साल की बेटी ने बिना सोचे कूदकर उसे बचाने की कोशिश की। उसने पानी में हाथ बढ़ाया ताकि सात साल की बच्ची को निकाल सके। लेकिन टांका गहरा होने और पानी फिसलन वाला होने से दोनों फंस गए। नतीजा यह हुआ कि बचाने उतरी लड़की खुद बाहर नहीं निकल पाई और उसकी भी जान चली गई। यह दृश्य देखकर वहां मौजूद लोग बेहद घबराए लेकिन देर हो चुकी थी।

 

गांव वालों ने पानी में कूदकर दोनों बच्चियों को बाहर निकाला लेकिन तब तक देर हो चुकी थी

घटना होते ही गांव के लोग दौड़े और टांके के पास पहुंचे। ग्रामीणों ने जैसे-तैसे पानी में छलांग लगाई और बच्चियों को बाहर निकाला। लेकिन तब तक उनका शरीर ठंडा पड़ चुका था। ग्रामीणों ने उन्हें अस्पताल तक पहुंचाने का प्रयास किया, डॉक्टरों ने दोनों को मृत घोषित कर दिया। इस घटना के बाद पूरे गांव में शोक का माहौल है।

 

जैसलमेर जैसे रेतीले इलाकों में टांके से पानी भरने की मजबूरी

जैसलमेर इलाके में पानी की किल्लत बड़ी समस्या है। गांवों में अब भी टांकों और तालाबों पर आश्रित लोग अपनी जिंदगी गुजारते हैं। बच्चे और महिलाएं रोजाना पानी भरने के लिए टांकों तक जाते हैं। यह हादसा दिखाता है कि पानी भरने जैसी साधारण सी दिनचर्या ग्रामीण परिवारों के लिए कभी-कभी जानलेवा साबित हो जाती है।

 

परिवारों पर टूटा गहरा सदमा और गांव में मातम

दोनों बच्चियों की मौत के बाद परिवारों पर गम का पहाड़ टूट गया। एक बच्ची के मां-बाप बेसुध हो गए जबकि मामा के परिवार का रो-रोकर बुरा हाल है। गांव वालों का कहना है कि यह घाटी उनके जीवन की सबसे दर्दनाक घटनाओं में से एक है। वहां मातम पसरा हुआ है और लोग बच्चियों की याद में बिलख रहे हैं।

 

पानी की समस्या और सुरक्षा प्रबंधों का बड़ा सवाल

यह घटना केवल एक परिवार का नहीं बल्कि पूरे समाज का सवाल खड़ा करती है। क्यों अब भी गांवों में पीने का पानी सुरक्षित रूप में उपलब्ध नहीं है? खुले टांकों और तालाबों से पानी भरते समय सुरक्षात्मक इंतजाम क्यों नहीं किए जाते? लोग कहते हैं कि अगर टांके के आसपास सुरक्षा दीवार या जाली होती तो शायद दोनों मासूमों की जान बच सकती थी।

 

पुलिस और प्रशासन की पहली प्रतिक्रिया

घटना के बाद पुलिस मौके पर पहुंची और जरूरी कार्रवाई की। शवों को पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया और फिर परिजनों को सौंप दिया गया। प्रशासन की ओर से कहा गया है कि भविष्य में ऐसे हादसे रोकने के लिए टांकों और जल स्रोतों पर सेफ्टी उपाय किए जाएंगे।

 

गांव वालों की भावनाएं और घटना के बाद माहौल

गांव के बुजुर्ग और महिलाएं दोनों बच्चियों की मौत पर लगातार रो रहे हैं। उनका कहना है कि इतनी छोटी बच्चियां, जो जीवन का मतलब भी ठीक से नहीं जानती थीं, इस तरह दुनिया से विदा हो गईं। लोग अपने बच्चों को अब ऐसी जगहों पर पानी भरने भेजते समय डर रहे हैं। पूरा माहौल बेहद गमगीन बना हुआ है।

 

नतीजा और सबक जो इस हादसे ने दिया

इस दर्दनाक हादसे ने एक बार फिर जताया है कि जैसलमेर जैसे पानी की कमी वाले क्षेत्रों में खुले टांकों से पानी भरने की मजबूरी कितनी घातक साबित हो सकती है। यह घटना प्रशासन और समाज दोनों के लिए चेतावनी है कि पानी की व्यवस्था बेहतर हो और साथ ही सुरक्षा के इंतजाम पक्के किए जाएं। ताकि किसी और परिवार को इस तरह की त्रासदी का सामना न करना पड़े।