हाल ही में दिल्ली हाई कोर्ट ने जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी के दिए हुए फैसले को खारिज कर दिया है ऐसा कहा गया है कि 2020 में विश्व विद्यालय प्रशासन ने जामिया के शिक्षक संघ को खारिज करने का आदेश दिया है हाई कोर्ट ने यह फैसला लिया है कि शिक्षकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन बताया गया है और कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति या संस्था का संविधान के अधिकारों के खिलाफ नहीं जाना चाहिए
जामिया प्रशासन के आदेश पर विवाद
एक मामला यह भी सामने आया है कि जामिया प्रशासन ने दो आदेश जारी करके शिक्षक संघ को खत्म कर दिया था, उसके बुरे संघ का दफ्तर भी सील कर दिया था और जो भी पदाधिकारियो को ऑफिस या फंड के इस्तमाल से रोक दिया था, उसके खराब पदाधिकारियो ने कोर्ट का दरवाजा खटखटया, उनको इस फैसले से बड़ी राहत मिली
अब जानते हैं संविधान के अधिकार
हाई कोर्ट के जस्टिस सचिन दत्ता ने सुनवाई करी जिसमें उन्होंने दिए गए आदेशों को रद्द कर दिया और यह भी कहा कि संविधान का अनुच्छेद 19(1)(C) हर एक नागरिक को किसी भी संगठन को मनने या चलाने और जारी रखने का अधिकार भी देता है हाई कोर्ट ने कहा है कि यह अधिकार सिर्फ संगठन संगदठन बनाने तक ही सीमित नहीं बल्कि अपने चुने हुए सदस्यों और नियमों के साथ चलने की भी आजादी देता हैं
हाई कोर्ट के अधिकारी जस्टिस दत्ता ने यह भी कहा था कि अगर किसी संगठन में समस्या या विवाद होता है तो उसका समाधान लोकतांत्रिक प्रक्रिया से ही होना चाहिए, नकी उसे भांग कर देने से होगा
अब जानते हैं रद्द किया गया आदेश
जामिया के प्रशासन ने कहा था कि जामिया मिल्लिया अधिनियम के तहत उन्हें संगठन को विनियमित करने का अधिकार है, लेकिन कोर्ट ने ठुकराते हुए कहा कि कोई भी संस्था या संस्थान संविधान से बड़ा नहीं हो सकता
इसमें कोर्ट के फैसले से जामिया के शिक्षकों में बहुत बड़ी खुशी की लहर दौड़ गई है इसमें कई शिक्षकों ने न्याय और लोकतंत्र की जीत मानी है और अब जामिया के शिक्षक संघ फिर से अपने काम काज में लग चुका है और शिक्षकों की आवाज को मजबूती से रख सकेंगे
जानिये फैसला बना मिसाल
हाई कोर्ट के जस्टिस दत्ताका फैसला, देश भर के विश्व विद्यालय और उनके शिक्षाकों के लिए भी एक मिसाल बना है और बताते हैं कि लोकतांत्रिक और उनके अधिकारों की रक्षा हर हाल में पाएगी


