करवा चौथ इस बार 10 अक्टूबर 2025 को शुक्रवार को आएगा। ये दिन महीनों पहले से ही महिलाओं के लिए खास बन जाता है। करवा चौथ, वो खास व्रत है, जिसमें सुबह से लेकर चाँद निकलने तक महिलाएँ बिना पानी के रहती हैं। सबकी नज़रें बस उस रात के चाँद पर टिक जाती हैं। बहुतों को लगता है ये बस परंपरा है, मगर इसमें छुपा है सूखे खेत में फसल उगने जैसा भरोसा।
करवा चौथ का मुख्य कारण - सिर्फ रस्म नहीं, एक सच्ची भावना
सब सोचते हैं क्यों रखते हैं महिलाएं इतना मुश्किल व्रत? बस यूँ ही नहीं, इसमें छुपा है अपने पति की लंबी उम्र, सुख और सुरक्षा की दुआ। ये व्रत सिर्फ खाना-पीना छोड़ना नहीं है, बल्कि यह तो उन सारे सपनों, उम्मीदों, और विश्वास का नाम है, जो एक औरत अपने घर-परिवार के लिए संजोती है। चाहे किसी गाँव की गली हो या शहर के अपार्टमेंट, हर जगह इसकी आवाज़ सुनाई देती है।
करवा चौथ के पीछे छुपी अनोखी कहानी
अब बात करें करवा चौथ के पीछे के किस्सों की। एक कहानी रानी वीरवती की है। सात भाइयों की लाड़ली थी। पहली बार व्रत रखा, दिन भर भूख-प्यास से बेहाल हो गई। भाइयों को बहन की हालत देखी नहीं गई। उन्होंने मिलकर झूठा चाँद दिखा दिया। भोलापन, बहन ने व्रत तोड़ लिया। तभी बुरी खबर आई, उसके पति की तबीयत बिगड़ गई। मन टूट गया, मगर हार नहीं मानी। सालभर उसने सच्चे मन से पूजा की, भगवान ने फिर से जीवन साथी लौटा दिया। वो लम्हा था, जब विश्वास और प्यार की जीत हुई।
परंपरा और बदले समय में करवा चौथ
राजपूताना के जमाने के दिनों में ये व्रत और भी अहम था। जब पति युद्ध पर जाते थे, तो स्त्रियाँ करवा चौथ मानकर उनकी सलामती की दुआ करती थीं। आजकल भी, लोग जरूर बदल गए मगर भावनाएँ वही हैं। शादीशुदा जोड़े, एक-दूजे के लिए दुआ करते हैं, चाहे वे शहर में हों या गाँव में। सोशल मीडिया पर फोटो डालना आम है, पर घर के बड़े-बुजुर्ग आज भी वही पूजा करते हैं, वही सिन्दूर-चूड़ी पहनते हैं।
पूजा-पाठ, सर्गी और छलनी की रश्मों का मतलब
करवा चौथ शुरू होती है तड़के "सर्गी" से, यानी सूरज उगने से पहले हल्का-फुल्का खाना। अपनी सास के हाथ की सर्गी हर बहू के लिए खास होती है। दिनभर व्रत रहता है, शाम को परिवार और पड़ोस की महिलाएँ इकट्ठा होती हैं। हाथों में मेहंदी, मांग में सिन्दूर, पूजा की थाली में करवा और पूजा करती हैं। कथा सुनी जाती है, जिसमें भगवान शिव, माता पार्वती और गणेश जी की कहानी होती है। रात में चाँद निकलने पर छलनी से चाँद को देखती हैं और फिर पति का चेहरा निहारती हैं। उधर पति मन ही मन दुआ करता है कि उसकी पत्नी खुश रहे।
आज की नई पीढ़ी और करवा चौथ की बदलती छवि
समय के साथ परंपराओं में बदलाव आना तो तय है। आज की लड़कियाँ ज्यादा पढ़ी-लिखी हैं, किसी बात को आंख मूंदकर नहीं मानतीं। मगर करवा चौथ को वे अपने तरीके से मनाती हैं। कुछ जगहों पर पति भी पत्नी के लिए व्रत रखते हैं, ताकि साथ में प्यार मजबूत हो। पहले जैसा रूखा-पन नहीं, अब इसमें भागीदारी और समझ की रस्म जुड़ गई है। गलती हो भी जाती है तो हंसी में बदल जाती है, क्योंकि रिश्ता मजबूत हो, बस यही जरूरी है।
करवा चौथ का आज के समाज में महत्व
खास बात है कि जैसे-जैसे वक्त बदल रहा है, करवा चौथ का रंग-रूप बदला है, मगर मकसद एक ही रहा - प्यार और अपनापन बढ़ाना। मोहल्ले की छतों से लेकर ऑफिस की पार्टी तक, हर जगह यह दिन नज़र आता है। ये व्रत बहुत कुछ सिखाता है, जैसे धैर्य, भरोसा और परिवार की अहमियत। औरत चाहे जैसी भी हो, जब चाँद दिखता है और पति के साथ व्रत तोड़ती है, वह पल उनका हो जाता है, खास और अमिट।
करवा चौथ की मिठास हर रिश्ते को जोड़ती है
करवा चौथ की परंपरा आज भी लोगों के दिल में जगह बनाए हुए है। कोई इसे आस्था के लिए रखता है, कोई रिश्ते की गहराई के लिए, कोई बस खुशियों के लिए। पर असली बात ये है – एक छोटा सा प्रयास, जो रिश्तों को सहेज लेता है। चाँद, छलनी और थाली – सब प्रतीक हैं प्यार और विश्वास के। और यही है करवा चौथ 2025 की असली कहानी, जो नए और पुराने, छोटे-बड़े, सबको जोड़ देती है।