Kidnapping:14 दिन तक गैंगरेप, फिर वैश्यावृत्ति में धकेला, 13 साल की बच्ची की कहानी सुन पुलिस भी हैरान

अपहरण के बाद 13 साल की मासूम बच्ची को दरिंदों ने 14 दिन तक लगातार गैंगरेप कर उसकी मासूमियत और बचपन बर्बाद किया, पुलिस भी पूरी घटना से सन्न रह गई।

Kidnapping:14 दिन तक गैंगरेप, फिर वैश्यावृत्ति में धकेला, 13 साल की बच्ची की कहानी सुन पुलिस भी हैरान

उत्तर प्रदेश के बस्ती में कक्षा 6 की छात्रा एक 13 साल की बच्ची के साथ एक ऐसा घिनौना काम हुआ जिसे सुनकर हर किसी के रौंगटे खड़े हो गए समाज के लिए यह घटना किसी गहरे जख्म से कम नहीं। 13 साल की मासूम, जिसकी उम्र अभी खेलने और सपने देखने की है, उसे अपहरण कर दरिंदगी और अमानवीयता के अंधेरे गर्त में धकेल दिया गया। उसकी मासूमियत को रौंद दिया गया और मजबूरी में उसे दलदल जैसा जीवन जीने पर मजबूर कर दिया गया।

 

घटना की शुरुआत

यह दर्दनाक कहानी तब शुरू हुई जब बच्ची अपने घर के पास खेल रही थी। परिवार को अंदाजा भी नहीं था कि यह खेल का समय उसकी जिंदगी को हमेशा-हमेशा के लिए बदल देगा। शातिर अपराधी पहले से ही मौके की ताक में बैठे थे। उन्होंने बच्ची को झांसे में लेकर अपहरण कर लिया।

अपहरण के बाद मासूम को ऐसे जगह पर कैद कर दिया गया, जहां से उसका बाहर निकल पाना नामुमकिन था। अंधेरे कमरे, बंद दरवाजे और चारों तरफ डर का माहौल। रात दर रात बच्ची के साथ लगातार 14 दिन तक दरिंदगी की गई। हर दिन एक नया दर्द, हर रात नई पीड़ा।

 

दरिंदगी के बाद दलदल

14 दिन की जिल्लत झेलने के बाद मासूम को मानव तस्करी और वैश्यावृत्ति के काले धंधे में धकेल दिया गया। यह वो जगह थी जहां से लौटना बेहद मुश्किल था। उसका इस्तेमाल एक ऐसी वस्तु की तरह किया जाने लगा जैसे उसकी कोई भावनाएँ नहीं, कोई आत्मा नहीं।

मासूम की उम्र, उसके सपने, और उसकी बचपन की मासूमियत को समाज के उन गुनाहगारों ने छीन लिया। उसे रोज मजबूर किया जाता, धमकियों के साथ बंधक बनाकर उसकी ज़िन्दगी नीलाम की जाती रही। वह बेबस थी, लेकिन भीतर ही भीतर वह हर रोज़ अपने घर, अपने माता-पिता, और अपनी सुरक्षित जिंदगी की याद में तड़पती रही।

 

पुलिस ने बचाई जान

एक दिन किस्मत ने करवट ली। पुलिस को किसी तरह से सूचना मिली कि एक नाबालिग बच्ची को गलत कामों के लिए कैद कर रखा गया है। कई दिनों तक लगातार छानबीन के बाद पुलिस ने उस जगह पर छापा मारा। दरवाजे तोड़े गए, डर का अड्डा नष्ट किया गया और कई मासूमों को छुड़ाया गया।

जब पुलिसकर्मी मासूम को बाहर लेकर आए, उसकी हालत देखकर हर किसी की आंखों में आंसू आ गए। उसका चेहरा थका हुआ, आंखें डरी-सहमी, और शरीर चोटों से भरा था। अधिकारियों ने जब उसका बयान सुना तो वे खुद भी हैरत में पड़ गए कि एक नन्हीं सी जान ने इतना दर्द कैसे सहा।

यह मामला न केवल एक अपराध की कहानी है, बल्कि समाज के लिए एक आईना है कि हमारी बेटियाँ कितनी असुरक्षित हैं।
 

परिवार का दर्द

बच्ची जब अपने परिवार से मिली तो वहां का माहौल भावनाओं से भर गया। मां ने अपनी बेटी को सीने से लगाकर फूट-फूटकर रोया। पिता की आंखों से बहता आंसुओं का सैलाब इस बात का प्रमाण था कि उन 14 दिनों का दर्द उनके लिए भी किसी नर्क से कम नहीं रहा।

परिवार ने कहा कि अब उनकी जिंदगी कभी पहले जैसी नहीं हो पाएगी। बच्ची के चेहरे पर मुस्कान लौटाने में शायद सालों लग जाएंगे। लेकिन उनका भरोसा है कि कानून ऐसे अपराधियों को कड़ी से कड़ी सजा देगा।

 

समाज और कानून पर सवाल

यह मामला सिर्फ एक परिवार का नहीं बल्कि पूरे समाज का है। जब 13 साल की बच्चियाँ भी सुरक्षित नहीं हैं तो यह सोचना लाजिमी है कि हम कहां खड़े हैं।

अपराधी अक्सर कानून की खामियों का फायदा उठाकर बच निकलते हैं। लेकिन ऐसे डरावने मामलों में कोई नरमी नहीं बरती जानी चाहिए। इसके दोषियों के लिए आजीवन कारावास या कड़ी सजा ही समाज को संदेश दे सकती है।

 

जरूरत है जागरूकता की

इस घटना से हमें एक सबक लेना चाहिए। बच्चों के साथ अपराध केवल पुलिस या सरकार का मुद्दा नहीं, बल्कि हम सबकी जिम्मेदारी है। स्कूल, समाज और परिवार को मिलकर सुरक्षा का वातावरण बनाना होगा।

हमें यह समझना होगा कि केवल कानून से नहीं, बल्कि जागरूकता और सामाजिक जिम्मेदारी से ऐसे अपराधों पर अंकुश लगाया जा सकता है। अपने बच्चों को सुरक्षित रखना, उन पर नजर रखना और उन्हें समझाना हर माता-पिता की प्राथमिक जिम्मेदारी बनती है।

 

अंतिम सवाल

13 साल की एक बच्ची, जो अभी सपनों के पंख लगाकर उड़ान भरना चाहती थी, उसे अपराधियों ने इस हद तक चोट पहुंचाई कि उसकी मासूम दुनिया हमेशा के लिए बिखर गई। आखिर क्यों?

यह सवाल केवल उस बच्ची का नहीं, बल्कि हर बेटी का है। जब तक दोषियों को सख्त से सख्त सजा नहीं मिलेगी और समाज अपनी जिम्मेदारी नहीं समझेगा, तब तक ऐसी दरिंदगी दोहराई जाती रहेगी।