Lucknow : मिट्टी में मिली मुख्तार अंसारी की डालीबाग हवेली, अब गरीबों के लिए बनेंगे 72 फ्लैट

लखनऊ की डालीबाग हवेली, जो कभी मुख्तार अंसारी के रसूख की पहचान थी, अब मलबे में बदल गई है, जहां गरीब परिवारों के लिए 72 नए फ्लैट बनने की तैयारी हो रही है।

Lucknow : मिट्टी में मिली मुख्तार अंसारी की डालीबाग हवेली, अब गरीबों के लिए बनेंगे 72 फ्लैट

लखनऊ का डालीबाग इलाका हमेशा से शांत और हरे–भरे माहौल के लिए जाना जाता था. यहीं खड़ी थी मुख्तार अंसारी की डालीबाग वाली कोठी, जिसकी ऊँची दीवारें और चौड़ा दरवाज़ा दूर से ही रौब दिखाते थे. एक समय यह इमारत ताक़त और रुतबे की पहचान मानी जाती थी, लेकिन 2025 की गर्मियों में सबकुछ बदल गया. राज्य सरकार ने लंबे कानूनी संघर्ष के बाद इसे अवैध कब्ज़ा बताते हुए ज़मीनदोज़ करने का आदेश दिया. देखते ही देखते जेसीबी गरजी, सिर पर चमकती धूप थी, और इमारत जो कभी रसूख का प्रतीक थी, मिट्टी में मिल गई. लोगों ने नई शुरुआत की उम्मीद से इस ढहते ढांचे को देखा, तो किसी ने इसे बीते दौर का अंत कहा.

 

तीन दशक पुराना विवाद: इंच–इंच ज़मीन पर बढ़ता तनाव और प्रशासन की चुनौतियाँ

यह विवाद अचानक नहीं भड़का. लगभग तीस साल पहले जब अंसारी परिवार ने यह ज़मीन खरीदी, तभी से इसके काग़ज़ों पर सवाल उठते रहे. पड़ोस के प्लॉट मालिकों ने कई बार आरोप लगाया कि उनकी ज़मीन काटकर इस कोठी में मिला ली गई. फाइलों में मामला घूमता रहा—तहसील, जिला अदालत, हाई कोर्ट, फिर राजस्व परिषद. हर सुनवाई के बाद नई तारीख मिलती रही, लेकिन विवाद सुलझा नहीं. meanwhile, शहर में सियासत बदली, अफसर बदले, पर यह फ़ाइल जस की तस बनी रही. आखिरकार राज्य सरकार ने विशेष जांच दल बनाकर सारे पट्टे और रजिस्ट्री की जाँच करवाई. रिपोर्ट में कहा गया कि कोठी का बड़ा हिस्सा सरकारी न्यास की जमीन पर है. यही वह बिन्दु था, जिसने प्रशासन को विध्वंस का हौसला दिया.

 

ढहाने का दिन: सुबह सात बजे की दस्तक, दोपहर तक बस धूल का ढेर

23 जुलाई की सुबह इलाके के लोग रोज़ की तरह टहलने निकले ही थे कि पुलिस वैन और पीएसी की गाड़ियों का काफ़िला डालीबाग पहुँचा. सुरक्षा घेरा बना, आसपास की सड़कों पर बैरिकेड लगा दिए गए. अधिकारियों ने मकान के केयरटेकर को नोटिस की कॉपी थमाई और जेसीबी मशीनें अंदर घुस गईं. पहली चोट छत की मेहराब पर पड़ी. पत्थर, प्लास्टर और लोहे की सलाखें टूटकर गिरीं तो धूल का गुबार आसमान छूने लगा. दोपहर तक वही हवेली, जिसके अंदर मायानगरी जैसा इंटीरियर बताया जाता था, मलबे के छोटे–बड़े टीले में बदल चुकी थी. शाम होते–होते जिला प्रशासन ने प्रेस नोट जारी कर कहा—“अवैध निर्माण पूरी तरह गिरा दिया गया है; स्थल को सरकारी कब्ज़े में ले लिया गया है.”

 

सरकारी पक्ष: गरीबों के लिए 72 फ्लैट का ब्लूप्रिंट और तय समयसीमा

विध्वंस से तुरंत बाद प्रदेश आवास विकास परिषद ने परियोजना का खाका सार्वजनिक किया. कुल 72 फ्लैट तैयार होंगे—दो कमरों, रसोई और स्नानघर वाले. हर फ्लैट लगभग 45 वर्ग मीटर में होगा, ताकि कम आय वर्ग के परिवार आराम से रह सकें. योजना का नाम “समग्र आश्रय” रखा गया है. अधिकारियों का दावा है कि छह महीने के भीतर टेंडर जारी होंगे और सोलह महीने में पहली मंज़िल खड़ी हो जाएगी. खर्च का बड़ा हिस्सा राज्य और केंद्र की संयुक्त हाउसिंग योजना से आएगा. आवेदन प्रक्रिया ऑनलाइन होगी और लाभार्थियों का चयन लॉटरी से तय होगा, ताकि पारदर्शिता बनी रहे.

 

पड़ोसियों की यादें: डर, राहत और नई उम्मीदें एक ही सांस में

डालीबाग की संकरी गलियों में बुजुर्ग बताते हैं कि कभी इस कोठी के बाहर हथियारबंद लोग खड़े रहते थे. राहगीर नज़र उठा कर भी नहीं देखते थे. आज जब दीवारें टूट गईं, तो कुछ चेहरों पर राहत है. “कम से कम अब बच्चों को खेलने के लिए खुली जगह दिखेगी,” 65 साल की माया देवी ने कहा. वहीं, किराए पर रह रहे कुछ परिवारों को चिंता है कि निर्माण के दौरान शोर–शराबा बढ़ेगा. स्कूल जा रहे बच्चे बताते हैं कि उन्हें अब रास्ता घुमाकर नहीं जाना पड़ेगा. एक इमारत के ध्वस्त होने से डर और उम्मीद दोनों हवा में तैर रहे हैं.

 

कानूनी पहलू: अदालतों में उठे सवाल और आने वाले मोड़

हालाँकि इमारत गिर चुकी, कानूनी लड़ाई ख़त्म नहीं हुई. अंसारी पक्ष के वकीलों ने उच्च न्यायालय में रिट याचिका दायर कर कहा कि विध्वंस आदेश में निर्धारित अपील अवधि पूरी होने से पहले कार्रवाई हुई. प्रशासन का जवाब है कि नोटिस 30 दिन पहले तामील हो गया था और मकान खाली भी करा लिया गया था, इसलिए रोक लगाने का कोई आधार नहीं बचा. सुनवाई अगले महीने तय है. जानकार मानते हैं कि संभावना कम ही है कि न्यायालय निर्माण कार्य पर रोक लगाए, क्योंकि ज़मीन अब राज्य के नाम दर्ज हो चुकी है. फिर भी अंतिम फैसला अदालत की मेज़ पर ही होगा.

 

राजनीतिक गूँज: विरोधी दलों के आरोप, सरकार का पलटवार

विपक्ष ने इसे “राजनीतिक बदले की कार्रवाई” कहा. एक वरिष्ठ नेता ने मीडिया से कहा, “सरकार महज़ अपनी छवि चमकाने के लिए मकान गिरा रही है, जबकि शहर में सैकड़ों अवैध इमारतें खड़ी हैं.” जवाब में शहरी विकास मंत्री ने प्रेस कांफ्रेंस की और फाइलें लहराकर कहा, “सरकार ने नियम तोड़ने वालों पर हमेशा कार्रवाई की है, चाहे वे कितने भी ताक़तवर क्यों न हों.” इस बहस के बीच आम लोगों के लिए अहम सवाल यही है कि क्या वाक़ई गरीब परिवारों को वादा किया गया घर समय पर मिलेगा?

 

स्थानीय अर्थव्यवस्था पर असर: रोज़गार से लेकर किराए तक बदलता गणित

जहाँ एक ओर 72 फ्लैट का निर्माण स्थानीय मज़दूरों के लिए रोजगार लाएगा, वहीं आसपास के किराएदारों को डर है कि नई इमारत बनने के बाद ज़मीन की कीमतें बढ़ेंगी. हाल ही में पास वाले अपार्टमेंट में दो कमरों का किराया पाँच हज़ार से बढ़कर साढ़े छह हज़ार हो गया. रियल एस्टेट एजेंट अभिषेक सिंह कहते हैं, “सरकारी योजना पूरी होते ही यह इलाका अफोर्डेबल से मिड–रेंज कैटेगरी में शिफ्ट हो जाएगा.” यानी फायदे और नुकसान दोनों हैं; किसी को काम मिलेगा, तो किसी की जेब पर बोझ बढ़ेगा.

 

 निर्माण कैलेंडर, निगरानी तंत्र और नागरिकों की भूमिका

राज्य संपदा विभाग ने तीन–स्तरीय निगरानी तंत्र बनाया है. पहला, हर पंद्रह दिन पर साइट निरीक्षण; दूसरा, ऑनलाइन पोर्टल पर फोटो और प्रगति रिपोर्ट; और तीसरा, स्थानीय निवासियों की शिकायत सुनने के लिए हेल्पलाइन. यदि सब कुछ तय समय पर चला, तो 2027 की पहली तिमाही में 72 फ्लैट की चाबियाँ लाभार्थियों को सौंपी जा सकती हैं. नागरिक संगठन भी सक्रिय हैं. उन्होंने तय किया है कि हर महीने एक खुली बैठक करेंगे, जहाँ अधिकारी, ठेकेदार और स्थानीय लोग साथ बैठकर काम का हाल जान सकें. यही पारदर्शिता इस परियोजना की असली कसौटी होगी.

इस तरह मुख्तार अंसारी की डालीबाग वाली कोठी का अध्याय तो खत्म हो गया, लेकिन लखनऊ वालों के लिए नई कहानी शुरू होने वाली है—एक ऐसी कहानी, जिसमें राजनैतिक रस्साकशी कम और आम आदमी के अपने घर का सपना ज़्यादा अहम होगा. अब सबकी निगाहें निर्माण की रफ्तार पर टिकी हैं. क्या यह योजना समय पर पूरी होगी? क्या वास्तव में उन परिवारों को छत मिलेगी, जिनके पास आज सिर ढँकने की पक्की जगह नहीं? जवाब अगले दो साल में मिल जाएगा, पर फिलहाल शहर में उम्मीद का पौधा लग चुका है.

मुख्तार अंसारी की डालीबाग हवेली क्यों गिराई गई?
प्रशासन ने जांच के बाद पाया कि हवेली का निर्माण अवैध जमीन पर हुआ था, इसलिए इसे गिराकर सरकारी कब्जे में ले लिया गया।
डालीबाग हवेली की जगह क्या बनाया जाएगा?
यहां गरीब और मध्यम वर्ग के लिए 72 फ्लैट बनाए जाएंगे, जिनमें परिवारों को सस्ती दरों पर घर मिल सकेगा।
फ्लैट बनाने की योजना कब शुरू होगी?
सरकार ने कहा है कि छह महीने में निर्माण कार्य शुरू किया जाएगा और लगभग सोलह महीने में पहला फ्लैट तैयार होगा।
इन फ्लैट का फायदा किन लोगों को मिलेगा?
लाभार्थियों का चयन गरीब और जरूरतमंद परिवारों में से लॉटरी प्रणाली के जरिए किया जाएगा ताकि प्रक्रिया पारदर्शी बने।
क्या इस फैसले को अदालत में चुनौती दी गई है?
हाँ, अंसारी पक्ष ने अदालत में याचिका दाखिल की है, लेकिन फिलहाल स्थल राज्य सरकार के कब्जे में है और निर्माण की तैयारी जारी है।