मुस्लिम-ध्रुवीकरण से बदल रहा बिहार चुनावी समीकरण, महागठबंधन को उम्मीद और NDA को नई चुनौती
बिहार की राजनीति में इस बार धर्म और वोट का नया समीकरण बनता दिख रहा है। मुस्लिम वोटों की दिशा को देखकर महागठबंधन को उम्मीद और NDA को नई चुनौती मिल रही है। आरजेडी और कांग्रेस को मुस्लिम वोटों पर भरोसा है, जबकि बीजेपी और जेडीयू नए संतुलन की तलाश में जुटे हैं।
बिहार चुनाव: धार्मिक ध्रुवीकरण, महागठबंधन का मुस्लिम वोट पर भरोसा
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- बिहार चुनाव में धार्मिक ध्रुवीकरण तेज़ हुआ है।
- महागठबंधन को 90% से अधिक मुस्लिम वोटों की उम्मीद है।
- आरजेडी और कांग्रेस अल्पसंख्यक इलाकों में सक्रिय हैं।
बिहार चुनावी मैदान में बढ़ा धार्मिक ध्रुवीकरण, महागठबंधन को मुस्लिम वोट पर भरोसा, NDA को नई चुनौती
बिहार की सियासत में फिर धर्म का सवाल उठा
बिहार की हवा में चुनाव की महक घुल चुकी है, और अब बात सिर्फ विकास की नहीं रही। गलियों में, चौक पर, और चाय की दुकानों पर चर्चा एक ही – मुस्लिम-ध्रुवीकरण। महागठबंधन के चेहरे तेजस्वी यादव बार-बार कहते दिखते हैं, “सबको साथ लाना है।” मगर अब राजनीतिक समीकरण कुछ अलग दिख रहे हैं। लोग पूछ रहे हैं – क्या इस बार वोट धर्म की रेखा पर बंटेगा?
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महागठबंधन को है मुस्लिम वोटों पर भरोसा
आरजेडी और कांग्रेस की रैलियों में अब अल्पसंख्यक इलाकों में भीड़ बढ़ी है। नेताओं के भाषणों का लहजा बदला है। कांग्रेस नेता खुले तौर पर बोले – “मुसलमानों ने हमेशा इंसाफ का साथ दिया।” महागठबंधन को भरोसा है कि उन्हें 90% से अधिक मुस्लिम वोट मिलेंगे। एक वरिष्ठ आरजेडी नेता ने कहा, “हम जानते हैं कि यह जनता हमारी अपील समझती है, और हमारे साथ है।” वाकई, यह भरोसा अब पूरा राजनीतिक दांव बन चुका है।
NDA ने खोजा नया रास्ता, मुसलमानों से नहीं, बहुसंख्यकों से उम्मीद
एनडीए खेमे में बेचैनी दिख रही है। भाजपा और जेडीयू दोनों जानते हैं कि मुस्लिम मत शायद उनकी ओर न आए। इसलिए अब फोकस है – महिलाओं, पिछड़े वर्ग और युवाओं पर। नीतीश कुमार और भाजपा साथ मिलकर कहते हैं, “हम सबके विकास के लिए हैं, किसी जाति या धर्म के लिए नहीं।” पर सवाल यही उठता है, क्या ये राजनीति से अधिक रणनीति नहीं लगती? गांव के बुद्धिजीवी कहते हैं, “धर्म से हटकर भी वोट होता है। लेकिन दूसरों के ध्रुवीकरण का असर तो होता ही है।”
तेजस्वी यादव ने सीमांचल को बनाया केंद्र
तेजस्वी की रैलियाँ अब सीमांचल में ज्यादा दिखती हैं। अररिया, किशनगंज, पूर्णिया… ये वो इलाक़े हैं जहाँ मुस्लिम जनसंख्या 60 से 70 प्रतिशत है। तेजस्वी बार-बार कहते हैं – “हम सबके हक़ की बात करेंगे।” उनके भाषणों में मुद्दे वही हैं, जो समाज के निचले तबके को जोड़ते हैं। एक युवा ने कहा, “पहली बार कोई हमसे सीधा बात कर रहा।” शायद यही कारण है कि महागठबंधन का फोकस अब इन इलाकों पर अटक गया है।
कांग्रेस भी कर रही है संतुलन की कोशिश
कांग्रेस ने मुस्लिम प्रत्याशियों को काफी टिकट दिए हैं। पार्टी का दावा है कि यह सामाजिक प्रतिनिधित्व का हिस्सा है। लेकिन भाजपा इस पर तंज कस रही है। भाजपा नेता ने कहा, “यह वोट बैंक की राजनीति है, और कुछ नहीं।” कांग्रेस का जवाब था – “अगर सबको मौका देना राजनीति है, तो हाँ, हम वही कर रहे हैं।” राजनीति के इस मुकाबले में शब्द तलवार की तरह चल रहे हैं।
क्या मुस्लिम-ध्रुवीकरण से हिंदू वोट भी एकजुट होगा?
यह सवाल अब हर चैनल पर, हर रिपोर्ट में गूंज रहा है। अगर मुस्लिम वोट पूरी तरह महागठबंधन को गया, तो क्या इसके जवाब में हिंदू वोट भी एकजुट हो जाएगा? विशेषज्ञों का मानना है — आंशिक रूप से हाँ। लेकिन बिहार उतना सीधा नहीं है। यहाँ मतदाता सोचता है, फिर तय करता है। कई ग्रामीण वोटर बड़े साफ अंदाज में कहते हैं, “हमको रोजगार चाहिए, ना कि धर्म की लड़ाई।” फिर भी चुनाव का असर भावनाओं तक तो पहुँचता ही है।
सीमांचल की सीटें बनीं चुनाव की धड़कन
सीमांचल की 35 सीटें आज बिहार की राजनीति में सबसे अहम बन चुकी हैं। यहाँ अरबों के विकास प्रोजेक्ट रुके पड़े हैं, फिर भी चर्चा सिर्फ वोट की दिशा की होती है। महागठबंधन को पूरा भरोसा है कि इस बार नतीजे उनके पक्ष में झुकेंगे। वहीं NDA ने भी करीब 20 सीटों पर विशेष निगरानी शुरू कर दी है। सभी जानते हैं — यहाँ जिसने बाजी मारी, वही पटना की कुर्सी के करीब जाएगा।
हिंदू वोट का गणित उलझा हुआ है
हिंदू वोट कभी एक नहीं होता। पिछड़ा, सवर्ण, दलित – सबकी सोच अलग है। अगर मुस्लिम वोट महागठबंधन को गया, तो भाजपा के सवर्ण वोट पक्के होंगे। लेकिन जेडीयू और एलजेपी जैसे दलों का वोट कहाँ जाएगा, यह कहना मुश्किल है। एक स्थानीय कार्यकर्ता ने कहा, “नेता तो एकता की बात करता है, पर मोहल्ले का वोट हमेशा बंटा रहता है।” सिर्फ नारों से राजनीति नहीं जीतती, ज़मीनी भरोसे की जरूरत होती है।
एनडीए की उम्मीद महिलाओं और योजनाओं पर टिकी
महिलाओं में एनडीए की पकड़ पहले से मजबूत रही है। “हर घर नल योजना” और “लाडली योजना” जैसे प्रोजेक्ट अब भी असर करते हैं। भाजपा चाहती है कि इन योजनाओं का फायदा दोहराया जाए। नीतीश कुमार अपने भाषणों में कहते हैं, “जिसे मुफ्त में सम्मान मिला, वही साथ देगा।” ये लाइनें सुनकर भीड़ ताली बजाती है, पर दिल में सवाल भी उठते हैं।
मुस्लिम-ध्रुवीकरण से वास्तविक नतीजे क्या होंगे?
अब यही देखने वाला मुद्दा है। अगर मुस्लिम वोट कांग्रेस-आरजेडी के पास गया, तो उनके वोट में 5 से 6 प्रतिशत की बढ़ोतरी संभव है। पर अगर हिंदू वोट जरा भी एकजुट हुआ, तो यह बढ़त तुरंत खत्म हो सकती है। इसलिए इस बार जीत और हार, दोनों का हिसाब धर्म नहीं, बल्कि रणनीति तय करेगी। और बिहार में रणनीति कई बार धर्म से बड़ी होती है।
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