सीधी बात कहूं तो मालेगांव के मंच पर ये लाइन सुनते ही थोड़ा अटका जैसा लगा। दिल में एक अजीब सा खिंचाव। ऐसा लगा जैसे कोई पुरानी आदत फिर से सामने आ गई हो। नेता बोलता गया भीड़ सुनती रही और माहौल में हल्की सी गर्मी फैल गई
ये बात मजाक थी या इशारा पता नहीं। पर लोग ऐसे वाक्य को हल्के में नहीं लेते। एक बार बोल दिया तो बस वो चिपक जाता है दिमाग में। खासकर मालेगांव जैसी जगह जहां हर छोटी बात का अपना वजन बन जाता है
एक दो छोटे किस्से याद आ गए
पहला किस्सा कुछ साल पुराना। पुणे में एक संकरी गली के अंदर मीटिंग थी। candidate ने अपने मैनेजर को कहा पैसा हम दे देंगे मूड तुम लोग बना देना। उस दिन पहली बार समझ आया कि नेता लोग फंड शब्द को कितनी तसल्ली के साथ बोलते हैं। आज का बयान सुनकर वही पुरानी आवाज कान में वापस आ गई
दूसरा किस्सा विदर्भ का। एक बूढ़ा आदमी था। उसने मुझे बस इतना कहा जब नेता पैसे की ताकत का जिक्र ज्यादा करे ना बेटा समझ लेना कि उसे जनता पर भरोसा थोड़ा कम है। उसकी ये लाइन आज फिर याद आई। पता नहीं क्यों पर फिट बैठ गई
अब बात असली मुद्दे की
Opposition इसे धमकी कह रहा है। और हां इसमें थोड़ी कड़वाहट तो है ही। ऐसा वाक्य आम लोगों को ये सोचने पर मजबूर करता है कि कहीं नेता पैसे को वोट से ऊपर तो नहीं रख रहे। ये सोच धीरे धीरे भरोसे में दरार डाल देती है
और यहां एक बात साफ दिखती है कि बयान सिर्फ बयान नहीं। ये मन की हालत भी दिखाता है। कभी कभी नेता mic पर वो बोल जाते हैं जो मन में छुपाकर रखना चाहिए था
अंदर की परत
चुनावी मौसम में ज़ुबान फिसल भी जाती है और कभी जानबूझकर भी। पर ये वाली लाइन थोड़ी सी कच्ची थी। जैसे कोई अपनी ताकत का इशारा कर रहा हो और उम्मीद कर रहा हो कि जनता समझ जाएगी कि कौन कितना मजबूत है
आखिर में बस इतना
मालेगांव के लोग बड़ी तेज समझ रखते हैं। यहां public हर बात अपने हिसाब से तौलती है। फंड की बात से चुनाव नहीं पलटते। हवा मोहल्ला और जनता का मूड ही असली खेल बदलता है
शायद ये बात अभी तो चर्चा बनेगी ही। पर इसका असर आगे भी दिखने वाला है। नेता बदलते रहते हैं पर जनता का हिसाब नहीं बदलता


