सितंबर 2025 में दिल्ली के मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज (MAMC) को जुड़वां बच्चों के भ्रूण का दान मिलने की खबर ने मेडिकल साइंस के क्षेत्र में नई चर्चा शुरू कर दी है। यह दान मिश्रा दंपति ने किया, जिनकी पहचान राजधानी के एक धार्मिक और साधारण परिवार से है। उनके द्वारा किए गए इस कदम ने विज्ञान और संवेदना, दोनों के बीच सेतु का काम किया है।
मिश्रा दंपति कौन हैं और क्यों लिया इतना बड़ा फैसला?
मिश्रा दंपति दिल्ली के घनी बस्ती में रहते हैं। दोनों ही धार्मिक पृष्ठभूमि से आते हैं और समाज में पंडित के नाम से जाने जाते हैं। उनके जीवन में धर्म का स्थान महत्वपूर्ण है, लेकिन वह विज्ञान को भी उतना ही जरूरी मानते हैं। निजी बातचीत में पिता ने बताया, “हम पंडित हैं, धर्म का पालन करते हैं, लेकिन विज्ञान भी जरूरी है। बच्चों का भ्रूण दान कर हम चाहते हैं कि किसी का भला हो।” उनका यह फैसला भावनाओं से भरा होने के साथ-साथ समाज के लिए उदाहरण भी है।
कैसे हुई जुड़वां भ्रूण की दान प्रक्रिया पूरी?
मिश्रा दंपति का गर्भकाल सहज नहीं था। डॉक्टरों ने स्कैनिंग के दौरान देखा कि जुड़वां भ्रूण के विकास में गंभीर दिक्कतें हैं, जिनमें दोनों बच्चों का जीवित रहना असंभव लग रहा था। परिवार ने मिलकर डॉक्टरों से सलाह ली। दिल्ली के मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज में भ्रूण विज्ञान विभाग के वरिष्ठ डॉक्टरों की मदद से मिश्रा दंपति ने दान का निर्णय लिया। इस तरह उनका जुड़वां भ्रूण मेडिकल कॉलेज की एनॉटमी लैब में आ गया, जहां भविष्य में मेडिकल छात्र और विशेषज्ञ इसका अध्ययन करेंगे।
भ्रूणदान से मेडिकल साइंस को क्या मिलेगा लाभ?
भविष्य के डॉक्टरों के लिए जुड़वां भ्रूण के नमूने अनमोल हैं। मेडिकल साइंस में भ्रूण विकास को समझना बेहद जरूरी है। जुड़वां भ्रूण में क्या समस्याएं आती हैं, शरीर की संरचना कैसे बनती है, और विकृति की पहचान कैसे की जाए—इन सभी सवालों के जवाब कॉलेज की लैब में भ्रूण के अध्ययन से मिल सकते हैं। मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज के एनॉटमी विभाग के प्रोफेसर कहते हैं, “ऐसे नमूने मेडिकल स्टडी के लिए दुर्लभ होते हैं। इस दान के कारण विद्यार्थियों को असली स्थितियों को समझने में मदद मिलेगी।”
धर्म और विज्ञान के बीच जंग नहीं, बल्कि सहयोग की मिसाल
इस मामले में मिश्रा दंपति ने यह दिखाया कि धर्म और विज्ञान एक दुसरे के विरोधी नहीं हैं। परिवार ने माना कि धर्म का स्थान हमेशा ऊपर है, लेकिन मनुष्य को विज्ञान से मिलने वाले लाभ को भी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। उनका कहना है, “अगर कोई बच्चा जीवित नहीं रह सकता, तो उस बच्चे के शरीर से दूसरे बच्चों का फायदा जरूर होना चाहिए। ये मानवता और विज्ञान, दोनों के लिए सही है।” इस दृष्टिकोण ने मेडिकल कॉलेज को भी सामाजिक रूप से सकारात्मक संदेश दिया है।
पहले भी हुआ है भ्रूण का दान, लेकिन जुड़वां भ्रूण से उम्मीदें ज्यादा
सितंबर माह में ही एम्स दिल्ली की वंदना जैन ने भी अपना भ्रूण Anatomy विभाग को दान किया था। मगर जुड़वां भ्रूण का दान अपने आप में खास है, क्योंकि मेडिकल स्टूडेंट्स के लिए दो बच्चों के शरीर की तुलना करके सीखने का अवसर मिलेगा। ऐसे दान से मेडिकल स्टडी, रिसर्च और रिसर्चर्स को ठोस उदाहरण मिलते हैं, जिससे भविष्य में बच्चों के इलाज में मदद मिल सकती है।
मिश्रा परिवार की भावनाएं और आगे की सोच
मिश्रा दंपति का कहना है कि उनके बच्चे तो इस दुनिया में नहीं आए, लेकिन उनका शरीर दूसरों के जीवन संवार सकता है। उन्होंने बताया, “हमारा दु:ख कम नहीं है, लेकिन अगर हमारे बच्चों की वजह से डॉक्टर और स्टूडेंट्स सीखेंगे, तो हमें सुकून मिलेगा।” उन्होंने यह भी अपील की कि जरूरत पड़े तो लोग भ्रूण और अंगदान जैसे बड़े फैसले लेने की सोच रखें।
समाज को संदेश विज्ञान का साथ भी जरूरी है
इस दान से यह संदेश मिलता है कि धर्म और मान्यताएं हमारे जीवन का हिस्सा हैं, पर विज्ञान भी उतना ही जरूरी है। जुड़वां भ्रूण दान की घटना से समाज में जागरूकता बढ़ेगी और लोग मेडिकल साइंस के लिए नया नजरिया अपना सकते हैं। जिन परिवारों को मेडिकल समस्या की वजह से भ्रूण खोना पड़ता है, उनके लिए मिश्रा दंपति की कहानी उम्मीद और हिम्मत दे सकती है।
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