महाराष्ट्र में मराठा बनाम ओबीसी आरक्षण की जंग तेज, क्यों भिड़ रहे हैं दोनों समाज
महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण आंदोलन और ओबीसी विरोधी टकराव तेज़, मनोज जरांगे की कुंबी प्रमाणपत्र की मांग ने राजनीतिक, सामाजिक और कानूनी बहस को नया रूप दिया है।
महाराष्ट्र में आरक्षण को लेकर मराठा और ओबीसी समुदायों के बीच तीव्र टकराव जारी है। मराठा समुदाय वर्षों से आर्थिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े होने के आधार पर 10% आरक्षण की मांग कर रहा है और खुद को ओबीसी श्रेणी में शामिल करने पर अड़ियल है। वहीं, ओबीसी समुदाय इसका विरोध कर रहा है क्योंकि उनका मानना है कि मराठाओं को शामिल करने से उनकी आरक्षण हिस्सेदारी कम हो जाएगी और राजनीतिक ताकत पर भी असर पड़ेगा। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय, सामाजिक संतुलन और राजनीतिक दबाव के कारण यह विवाद और जटिल हो गया है।
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मनोज जरांगे की मुख्य मांग
मनोज जरांगे मराठा आरक्षण आंदोलन का सबसे प्रमुख चेहरा हैं। 2023 में उनकी अनशन की वजह से महाराष्ट्र भर में बड़े स्तर पर विरोध प्रदर्शन हुए। वे 29 अगस्त 2025 से मुंबई के आजाद मैदान में आंदोलन जारी रखे हुए हैं। उनकी मांग है कि मराठा समुदाय को “कुंबी” जाति का प्रमाणपत्र दिया जाए ताकि वे ओबीसी आरक्षण का लाभ संयुक्त जातीयता के आधार पर ले सकें। बॉम्बे हाईकोर्ट ने आंदोलनकारियों से जगह खाली करने को कहा है, लेकिन जरांगे का आंदोलन जारी है।
कुंबी कौन हैं?
कुंबी परंपरागत रूप से कृषक और खेती करने वाले समुदाय हैं। शिवाजी महाराज के समय मराठा सेना में उनका योगदान व्यापक रूप से चर्चित है। हालांकि समय के साथ मराठा और कुंबी अलग-अलग पहचान में बंटने लगे, फिर भी कई मराठा परिवार ब्रिटिश शासन के प्रशासनिक दस्तावेजों में कुंबी श्रेणी में दर्ज थे। इसी आधार पर कई राज्यों ने मराठा समुदाय को कुंबी प्रमाणपत्र देना शुरू किया।
सरकार की भूमिका और उपाय
2023 के आंदोलन के बाद, महाराष्ट्र सरकार ने न्यायमूर्ति संदीप शिंदे की समिति का गठन किया, जिसने लगभग 58 लाख कुंबी परिवारों की पहचान की। इसी आधार पर कुंबी प्रमाणपत्र देने की प्रक्रिया शुरू की गई। सरकार ने इसे मराठा आरक्षण का कानूनी समाधान बनाने की कोशिश की।
विरोध और टकराव
इस पूरे विवाद में वरिष्ठ विपक्षी नेता और मंत्री छगन भुजबल, जो ओबीसी श्रेणी से आते हैं, सबसे बड़े विरोधी हैं। उनका कहना है कि मराठा समुदाय को ओबीसी में शामिल करने से ओबीसी आरक्षण टूट जाएगा और यह सामाजिक अन्याय होगा। उन्होंने स्पष्ट किया कि कई छोटे समुदायों को पहले ही ओबीसी के 27% आरक्षण में स्थान दिया जा चुका है, इसलिए मराठा आरक्षण संभव नहीं है।
इसके अलावा, राष्ट्रीय ओबीसी संगठनों के अध्यक्ष बाबानराव टायवड़े ने भी चेतावनी दी है कि अगर मराठाओं को ओबीसी कोटे में शामिल करने का प्रयास किया गया, तो पूरे ओबीसी समाज में आंदोलन होगा। उन्होंने कहा कि अगर मराठाओं के लिए कोई विशेष व्यवस्था करनी है, तो वह ओबीसी कोटे से अलग होनी चाहिए।
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