कभी कभी राजनीति का माहौल मुझे बिल्कुल वैसा लगता है जैसे कोई पुरानी डीज़ल SUV अचानक टर्बो में आ जाए हवा तेज, पर दिशा गड़बड़। इस बार ये हवा एरिक ट्रम्प की उस अजीब सी बात से उठी जिसमें उन्होंने आदित्य सुरेश ममदानी को “इंडियन नहीं” बताया। मेहदी हसन ने जो पलटवार किया, वो एकदम उसी तरह का था जैसे किसी पत्रकार को रात में हाई-बीम टॉर्च पकड़ा दो साफ, सीधा और बिना घुमाव।
सीधी बात कहूँ तो, ये सिर्फ एक ट्वीट की बात नहीं थी
पहचान (identity) को लेकर इस तरह की बहसें नई नहीं हैं। लेकिन जब कोई इतनी सहजता से बोल दे कि फलाना-individual भारतीय नहीं, सिर्फ इसलिए क्योंकि उसका नाम या उसका राजनीतिक स्टैंड आपके हिसाब से फिट नहीं बैठता तो थोड़ा अजीब लगता है। मेहदी हसन का जवाब इसलिए दमदार लगा, क्योंकि उसमें शोर कम और समझ ज्यादा थी।
और हाँ, एक बात और। ये पूरा मामला मुझे उस दिन की याद दिलाता है जब मैं टाटा नेक्सन EV का टेस्ट ड्राइव लेने गया था। सेल्स एडवाइज़र ने दस मिनट तक रेंज और टॉर्क की कविताएँ सुनाईं, पर जब मैंने असली रेंज पूछी तो उसकी आवाज़ थोड़ी धीमी पड़ गई। राजनीति में भी वही सीन दावा कुछ, हकीकत कुछ और।
मेहदी हसन ने जिस सलीके से मामला पलटा, वो किसी मास्टरस्ट्रोक से कम नहीं
उन्होंने एरिक ट्रम्प को साफ कहा कि ममदानी इंडियन हैं क्योंकि पहचान नाम, सरनेम या किसी को पसंद आने पर निर्भर नहीं करती। पहचान जड़ों, माहौल और अपनापन से बनती है। और मेहदी ने ये बात बिल्कुल ऐसे रखी जैसे कोई पुराना दोस्त कह रहा हो बिना ड्रामा, बिना भारी-भरकम शब्दों के।
इससे मुझे एक और किस्सा याद आ रहा है। दिल्ली के एक लॉन्च इवेंट में मैं एक महँगी SUV के पास खड़ा था। एक दर्शक बोला ये कार इंडियन लगती ही नहीं।" कंपनी के टेक्निकल हेड हँसकर बोले "सर, पहचान दिखावे का नहीं, कहानी का हिस्सा होती है।" उस समय बात हल्की सी लगी थी, पर आज के इस मामले में वही लाइन असली कीमत दिखाती है।
एरिक ट्रम्प की बात में गड़बड़ कहाँ थी?
सच कहूँ तो लगता है उन्होंने बैकग्राउंड चेक करने की ज़रूरत ही नहीं समझी। ऐसा होता है जब लोग कार के ब्रॉशर का सिर्फ हैडलाइन पढ़कर मान लेते हैं “इसमें ADAS होगा ही होगा।” अरे भाई, कभी पूरा पन्ना भी पढ़ लिया करो।ममदानी के मामले में भी वही हुआ जानकारी अधूरी, दावा पूरा। मेहदी हसन ने बस उस गैप को सलीके से उजागर किया।
इंटरनेट का रिएक्शन भी पूरा मसालेदार थाकिसी ने मीम बनाए। किसी ने एरिक की बात पर तंज मारा। किसी ने मेहदी को सलाम दिया। माहौल बिल्कुल वैसा लग रहा था जैसे ऑटो फोरम में “हैरीयर बनाम हेक्टर” का पुराना झगड़ा फिर चालू हो गया हो। हर आदमी अपनी ही तरफ का एक्सपर्ट।
मेरी नजर में सबसे अहम बात
राष्ट्रीय पहचान कोई नंबर प्लेट नहीं है कि आप चाहें तो एक क्लिक में बदल दें। ये अपनापन, जड़ें और जीवन के अनुभवों से बनती है। इसलिए जब कोई सार्वजनिक चेहरा इस पर उंगली उठाता है, तो बात सिर्फ बयान नहीं रहती एक तरह की चूक बन जाती है।मेहदी हसन ने उसी चूक को पकड़ा बिना इसे सनसनी बनाकर, पर पूरी स्पष्टता के साथ।
अंत में, एक छोटा सा ब्लॉगर स्टाइल निरीक्षण
ये पूरा मामला एक याद दिलाता है कि बिना समझे बयान दे देना वैसा ही है जैसे किसी इलेक्ट्रिक कार की “क्लेम्ड रेंज” को आँख बंद करके मान लेना। कोई भी बात वजन तभी रखती है जब उसे समझकर कहा जाए। एरिक ट्रम्प ने शायद वह कदम छोड़ दिया, और मेहदी हसन ने वही गलती सही जगह पकड़ ली।
बस, मेरी तरफ से इतना ही। अगर आप भी आजकल की पॉलिटिक्स में ये अजीब सा “ऑटोमोबाइल मार्केटिंग वाला ओवरकॉनफिडेंस” देखकर खीझ उठते हैंतो फिर हम दोनों एक ही क्लब में हैं।


