उत्तराखंड की प्रसिद्ध चारधाम परियोजना बीते कुछ वर्षों से लगातार विवादों में रही है। यह परियोजना मुख्य रूप से देश के चार प्रमुख धार्मिक स्थलों - यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ - को चौड़ी और मजबूत सड़क के ज़रिए जोड़ने के लिए बनाई गई थी। सरकार का कहना है कि इससे तीर्थयात्रियों को सहूलियत मिलेगी और सुरक्षा भी मजबूत होगी। हालांकि, परियोजना में सड़कों के चौड़ीकरण को लेकर कई बार सवाल उठे हैं, खासकर पर्यावरण और स्थानीय लोगों पर पड़ने वाले प्रभावों को लेकर।
क्यों लिखा मुरली मनोहर जोशी ने सीजेआई को पत्र?
मुरली मनोहर जोशी देश के जाने माने राजनेता और भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं। हाल ही में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को एक पत्र लिखा है जिसमें उन्होंने चारधाम परियोजना के तहत हो रहे सड़क चौड़ीकरण के आदेश पर पुनर्विचार की ज़रूरत बताई है। अपने पत्र में जोशी ने हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड की हाल की प्राकृतिक आपदाओं का ज़िक्र किया और कहा कि ऐसी परियोजनाएँ पहाड़ों की नाजुकता को नजरअंदाज कर सकती हैं।
क्या लिखा गया पत्र में, जानिए विस्तार से
पत्र में कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने हालिया आदेश में सड़क चौड़ीकरण को इजाज़त दी, लेकिन इसका सीधा असर पहाड़ी इलाकों पर पड़ सकता है। जोशी समेत अन्य प्रमुख हस्तियों ने लिखा कि बड़े स्तर पर सड़क चौड़ी करने से भागीरथी इको सेंसिटिव ज़ोन और अन्य क्षेत्रों में पर्यावरण तथा नदी तंत्र को भारी नुकसान हो सकता है। पत्र में बताया गया कि अगर अब भी सही कदम नहीं उठाए गए तो पूरे उत्तर भारत में आपदाओं का खतरा बढ़ सकता है।
सड़क चौड़ीकरण की इजाजत क्यों दी गई थी?
सुप्रीम कोर्ट ने 2021 में केंद्र सरकार की दलीलों पर सुनवाई करते हुए चारधाम परियोजना के तहत सड़कों को चौड़ा करने की मंजूरी दी थी। सरकार ने अपनी ओर से कहा कि यह इलाका चीन की सीमा से लगा हुआ है, ऐसे में राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए चौड़ी और मजबूत सड़कों की ज़रूरत है। इसके मद्देनजर कोर्ट ने 10 मीटर तक सड़क की चौड़ाई की मंजूरी दी। हालांकि, 2020 में कोर्ट ने 5.5 मीटर चौड़ाई को ही मंजूरी दी थी।
क्या हैं स्थानीय लोगों और विशेषज्ञों की चिंताएँ?
स्थानीय लोग और कई विशेषज्ञ मानते हैं कि सड़क चौड़ीकरण से भारी भूस्खलन, नदी तंत्र में गड़बड़ी और जंगलों का नुकसान हो रहा है। पत्र में यह भी कहा गया कि हाल की भारी बारिश और भू-स्खलन की घटनाएँ साफ इशारा करती हैं कि इन पहाड़ी इलाकों का पर्यावरण बेहद संवेदनशील है, और जरा सी लापरवाही बड़ी तबाही की वजह बन सकती है।
इनसाइड स्टोरी : पत्र के पीछे किसका समर्थन?
मुरली मनोहर जोशी और डॉ. कर्ण सिंह के इस पत्र को कई अन्य प्रमुख लोगों का भी समर्थन मिला है। इनमें प्रसिद्ध इतिहासकार, लेखक, पूर्व सांसद और वैज्ञानिक शामिल हैं, जिन्होंने भी इस परियोजना में हो रही तेज़ रफ्तार को रोकने और स्थानीय पारिस्थितिकी की रक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट से अपील की है।
पर्यावरण की चिंता और राष्ट्रीय सुरक्षा के बीच संतुलन जरूरी
अदालत में केंद्र सरकार ने सुरक्षा का तर्क दिया था और बताया था कि सीमावर्ती इलाकों में सेना तक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए चौड़ी सड़कें जरूरी हैं। वहीं, दूसरी ओर वरिष्ठ नेताओं और विशेषज्ञों ने लगातार पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने की मांग की है ताकि पहाड़ों के जीवन और आजीविका की रक्षा हो सके।
क्या आगे फिर से विचार करेगा सुप्रीम कोर्ट?
मुरली मनोहर जोशी और अन्य लोगों की ओर से आए समर्थन से जाहिर है कि यह मामला यहीं खत्म नहीं होगा। संभव है कि सुप्रीम कोर्ट फिर से मामले को सुने और नया आदेश दे। स्थानीय लोगों को उम्मीद है कि अदालत पर्यावरण हित को ध्यान में रखते हुए कोई संतुलित फैसला करेगी जिससे ना केवल तीर्थयात्रियों की सुरक्षा, बल्कि हिमालय क्षेत्र का भविष्य भी सुरक्षित हो सके।
चारधाम परियोजना पर खुली बहस जरूरी
चारधाम परियोजना हिंदुओं की आस्था, देश की सुरक्षा और विकास का प्रतीक जरूर है, लेकिन इसका रास्ता सिर्फ चौड़ी सड़कें ही नहीं हैं। इसमें स्थानीय समाज, पर्यावरण और तकनीकी विशेषज्ञों की भूमिका सबसे अहम है। मुरली मनोहर जोशी का सीजेआई को लिखा गया पत्र हमें इस विषय पर सोचने के लिए प्रेरित करता है कि विकास और सुरक्षा के साथ-साथ प्रकृति की रक्षा भी उतनी ही जरूरी है।