गरबा भारत का सबसे प्रसिद्ध पारंपरिक नृत्य है, जिसे नवरात्रि के समय गुजरात, महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश जैसे राज्यों में बड़े उत्साह के साथ किया जाता है। पिछले 100 सालों से यह परंपरा जीवित है। हर साल नवरात्रि में लोग गरबा खेलते हैं, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि गरबा क्यों किया जाता है और इसके पीछे क्या कहानी छुपी है?
इसके साथ ही डांडिया, जो नवरात्रि का एक और लोकप्रिय नृत्य है, उसके पीछे भी एक खास कथा जुड़ी हुई है। मुंबई में रहने वाले गुजरात के रहने वाले जिगर शाह बताते हैं कि उन्होंने यह ज्ञान अपने बुजुर्गों से प्राप्त किया है और यह पारंपरिक नृत्य की गहराई को उजागर करता है।
तीन ताली गरबा की कहानी
नवरात्रि नौ दिन का एक लंबा और पवित्र त्योहार है। जिगर शाह के अनुसार, जब महिषासुर राक्षस ने त्रैलोक्य में अत्याचार करना शुरू किया, तो देवताओं—ब्रह्मा, विष्णु और महेश—ने माता दुर्गा को सहायता के लिए बुलाया।
माता दुर्गा ने महिषासुर के साथ नौ दिनों तक युद्ध किया। दसवें दिन उन्होंने महिषासुर का वध किया, लेकिन उन्हें पूरी तरह शांत होने में एक दिन और लगा। यही कारण है कि दसवां दिन, यानी दशहरा, बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।
ब्रह्मा, विष्णु और महेश की शक्ति से माता दुर्गा ने इस युद्ध में विजय प्राप्त की। इसलिए गरबा में तीन ताली बजाई जाती है। यह गरबा इन तीनों देवताओं को समर्पित होता है और उनके आशीर्वाद का प्रतीक माना जाता है।
गरबा: सिर्फ नृत्य नहीं, बल्कि संस्कृति
गुजरात में गरबा परंपरा अत्यंत पवित्र मानी जाती है। बड़े घेरे के बीच मांडवी रखी जाती है, जिसे पूजा का रूप दिया जाता है। इसके विपरीत मुंबई और अन्य महानगरों में कई बार लोग बीच में चप्पल या अन्य सामान रख देते हैं, जिससे परंपरा कमजोर हो जाती है।
हालांकि, मुंबई में भी ऐसे कई स्थान हैं, जहां मांडवी रखकर गरबा परंपरा को जिंदा रखा जाता है।
डांडिया का महत्व
डांडिया का नृत्य माता दुर्गा और महिषासुर के युद्ध में प्रयुक्त तलवार से जुड़ा हुआ माना जाता है। वहीं कुछ मान्यताओं के अनुसार, इसका संबंध भगवान कृष्ण के रास नृत्य से भी जोड़ा जाता है।
इस प्रकार गरबा और डांडिया केवल नृत्य नहीं हैं, बल्कि भारतीय संस्कृति और धार्मिक मान्यताओं का एक जीवंत प्रतीक हैं।