Nepal : की जेलों से भागे कैदी भारत की सीमा पर बढ़े, SSB ने अब तक 35 दबोचे

नेपाल की जेलों से भागे कई कैदी लगातार भारत की सीमा में प्रवेश की कोशिश कर रहे हैं, एसएसबी ने अब तक 35 फरार कैदियों को पकड़ा, संख्या और बढ़ रही है

Nepal :  की जेलों से भागे कैदी भारत की सीमा पर बढ़े, SSB ने अब तक 35 दबोचे

सीमा सुरक्षा बल (एसएसबी) की चौकसी के बीच भारत-नेपाल सीमा पर हलचल तेज़ है। पिछले कुछ दिनों में नेपाल की जेलों से फरार कैदी लगातार भारतीय ज़मीन की तरफ भागने की कोशिश कर रहे हैं। ताज़ा आँकड़ों के मुताबिक एसएसबी ने सिर्फ़ 48 घंटों में 35 कैदियों को पकड़ लिया, लेकिन अधिकारियों का कहना है कि असली संख्या इससे कहीं ज़्यादा हो सकती है। घटनाक्रम ने सीमावर्ती गाँवों में डर का माहौल बना दिया है और प्रशासन को चौबीसों घंटे गश्त बढ़ानी पड़ी है।

 

सीमा पर चौकन्नी एसएसबी: दो दिनों में 35 कैदी दबोचे जाने के बावजूद लगातार बढ़ रहा दबाव

शुक्रवार की रात से लेकर रविवार की सुबह तक एसएसबी के जवानों ने पिलर नंबर 264 से 268 के बीच 35 संदिग्धों को पकड़ा। पूछताछ में पता चला कि सभी कैदी नेपाल की अलग-अलग जेलों से भागे थे और भारत में छिपने की फिराक़ में थे। एसएसबी के कमांडेंट राजेश सिंह ने बताया कि गश्त के दौरान दूर से आती हल्की रोशनी और संदिग्ध हरकतों पर जवानों ने घेरा बनाया और इन्हें दबोच लिया। उनका कहना है कि सीमा पर बाड़ न होने वाले हिस्सों का फायदा उठाकर और रात के अँधेरे में यह गिरोह सरहद पार करने की कोशिश करता है। अभी भी कई संदिग्ध झुंडों में जंगल के रास्ते घुसपैठ की जुगत लगा रहे हैं।

खुफिया रिपोर्ट बताती हैं कि नेपाल की जेलों में एक साथ कई सज़ायाफ़्ता अपराधियों द्वारा किया गया हालिया दंगा इन फरारियों की बड़ी वजह है। जेल प्रबंधन घटना के बाद अस्त-व्यस्त है, जिसके चलते गिनती में गड़बड़ी हुई और दर्जनों कैदी निकल भागे। नेपाली पुलिस ने अपने स्तर पर सर्च-ऑपरेशन शुरू किया है, मगर स्थानीय भौगोलिक चुनौतियों के चलते उन्हें भी सफलता पूरी नहीं मिल पा रही।

 

नेपाल की जेलों से भागने का लगा नया रास्ता, भारत में घुसपैठ का पैटर्न समझिए

पहले कैदी मुख्यतः तराई के खुले इलाकों से भागते थे, पर इस बार रूट बदला गया है। गिरोह के सरगना ने जंगल, सूखी नदी की धाराओं और बंजर खेतों का इस्तेमाल करके एक घुमावदार रास्ता चुना। जानकार मानते हैं कि इस बदलाव का मक़सद एसएसबी की नज़र से बचना था। यही नहीं, कैदियों ने मोबाइल फ़ोन का कम से कम प्रयोग किया ताकि कोई लोकेशन ट्रैक न हो सके। पकड़े गए लोगों के पास से सस्ते नेपाली सिम और कुछ सीम पार कराने वाले दलालों के फोन नंबर मिले हैं। पूछताछ में खुलासा हुआ कि हर फरार क़ैदी से दलालों ने पाँच से दस हज़ार नेपाली रुपये की वसूली की।

सरहद पार कराने वाले ये दलाल दोनों तरफ़ के भू-भाग और खेतों को अच्छी तरह जानते हैं। वे अपनी पहचान छिपाने के लिए हर दो-तीन किलोमीटर पर वाहन बदलते हैं और अक्सर रात के तीन से पाँच बजे के बीच जंगल के घने हिस्से में रुककर आगे की प्लानिंग करते हैं। इन सबका मक़सद है पुलिस पेट्रोलिंग टाइम-टेबल को चकमा देना।

 

ग्रामीणों की कहानी: अचानक अजनबी चेहरे, कुत्तों का भौंकना और रात भर की बेचैनी

सीमा से सटे सोनौली, खजुरिया और जोगिया गाँव के लोगों से बात करने पर पता चलता है कि पिछले हफ्ते रात के समय अजनबी लोगों की हलचल बढ़ी है। कई घरों के बाहर पहरा देने वाले कुत्तों ने असामान्य रूप से ज़ोर-ज़ोर से भौंकना शुरू किया। किसान रामदीन यादव कहते हैं, “हमने पहली बार देखा कि देर रात किसी ने हमारे खेत की मेड़ तोड़ी और अंदर आया। सुबह पता चला कि वहाँ ताज़ा पैरों के निशान थे।” इसी तरह सरपंच शांति देवी बताती हैं कि गाँव के सामुदायिक भवन के पीछे खाली पड़े कमरे में किसी ने जलती हुई मोमबत्ती छोड़ी हुई थी।

इन संकेतों ने ग्रामीणों को सतर्क कर दिया। बच्चों को शाम होते ही घर में रहने के निर्देश दिए गए हैं और विद्यालयों ने भी आधे दिन की कक्षाएँ लगानी शुरू कर दी हैं। कई किसानों ने अपने खेतों में अस्थायी लाइट लगा दी है, ताकि दूर से आने-जाने वाले पर नज़र रखी जा सके। हालाँकि सीमावर्ती उदासीन इलाक़ों में बिजली कटौती आम बात है, इसलिए ग्रामीण पेट्रोमैक्स और सौर लैंप का सहारा ले रहे हैं।

 

पुलिस–नेपाल समन्वय क्यों ज़रूरी, और अब तक कागज़ी काम में अटका ऑपरेशन

दोनों देशों के अधिकारियों के बीच वार्ताएँ शुरू तो हो गई हैं, लेकिन कागज़ी प्रक्रिया तेज़ नहीं होने के कारण कई अड़चनें बनी हुई हैं। नेपाल पुलिस को हर गिरफ्तार कैदी के बारे में फ़ोन पर सूचना मिलती है, पर उन्हें आधिकारिक तौर पर दाख़िल-खारिज का दस्तावेज़ चाहिए होता है। बिना उस कागज़ के भारतीय पुलिस कैदी हस्तांतरण नहीं कर सकती। यही वजह है कि पकड़े गए कई कैदियों को फिलहाल सीमा चौकी पर ही अस्थायी सेल में रखा गया है।

भारत के गृह मंत्रालय ने राज्य सरकार को विशेष गाइडलाइन भेजी है, जिसमें कहा गया है कि नेपाल से भागकर आने वाले हर व्यक्ति का आपराधिक बैकग्राउंड चेक ज़रूरी है। इसके लिए पासपोर्ट और वीज़ा नियमों से इतर, एक त्वरित वेरिफिकेशन फॉर्म तैयार किया गया है। नेपाल की जेल से फरार अपराधियों के नाम, फोटो और केस नंबर साझा करने के बाद ही उन्हें वापस भेजा जाएगा। अधिकारी मानते हैं कि पेपरवर्क तेज़ करने के लिए दोनों देशों को साझा डिजिटल पोर्टल की सख्त जरूरत है।

 

बच्चों से बुजुर्ग तक, सीमांत गाँवों में डर और अफ़वाहों का दौर

पिछले तीन दिनों में सोशल मीडिया पर तरह-तरह की कहानियाँ फैल रही हैं। कहीं कहा जा रहा है कि फरार कैदी हथियारबंद हैं और कहीं दावा किया जा रहा कि वे सिर्फ़ कपड़े और खाना लेने गाँव में घुसते हैं। इस असमंजस में सबसे ज़्यादा परेशान स्कूल जाने वाले बच्चे और बुजुर्ग हैं। दसवीं में पढ़ने वाली कविता ने बताया, “माँ ने कहा शाम सात के बाद बाहर मत निकलना। हमें लगा कि कोई बड़ी वारदात हो गई है।”

अधिकारियों ने स्थिति स्पष्ट करने के लिए माइक से अनाउंसमेंट शुरू कर दी है। हर दो घंटे में पुलिस की गाड़ी गाँवों से गुजरती है और लोगों से अपील करती है कि अफ़वाहों पर ध्यान न दें। साथ ही कोई भी संदिग्ध दिखे तो तुरंत स्थानीय थाना या एसएसबी चौकी को सूचना दें। सेना और पुलिस ने साझा हेल्पलाइन नंबर भी जारी किया है।

 

 चौकसी बढ़ाने के पाँच ठोस कदम जिन पर काम शुरू हो चुका है

पहला, सीमा के संवेदनशील हिस्सों में अतिरिक्त फ्लड-लाइट लगाने का काम शुरू है। दूसरा, एसएसबी के जवानों की मोबाइल पेट्रोलिंग यूनिट रात भर सक्रिय रहेगी। तीसरा, ड्रोन से निगरानी बढ़ाई जा रही है ताकि घने जंगलों में भी गतिविधि पकड़ी जा सके। चौथा, नेपाली पुलिस के साथ साझा व्हाट्सऐप ग्रुप बनाकर तुरंत तस्वीरें और जानकारी भेजी जा रही है। पाँचवां और अहम कदम है सीमांत गाँवों के यूथ वॉलंटियर की मदद लेना; ये युवा खेत-मेड़ों पर नज़र रखते हैं और ज़रा-सी हरकत होते ही चौकी पर संदेश भेजते हैं। अधिकारियों को भरोसा है कि इन उपायों से फरार कैदियों पर शिकंजा कसना आसान होगा।

अंत में यह समझना ज़रूरी है कि किसी भी सीमा क्षेत्र की सुरक्षा महज़ सरकारी एजेंसियों की ज़िम्मेदारी नहीं होती। स्थानीय लोग, किसान, छात्र और व्यापारी भी निगरानी के अहम कड़ी होते हैं। जब नागरिक और सुरक्षाबल एक साथ खड़े होते हैं तभी ऐसी घटनाओं पर लगाम लग पाती है। आने वाले दिनों में अगर नेपाल की जेलें अपने भीतर की सुरक्षा चेन को मज़बूत कर लें तो इस तरह की भगदड़ और उससे उपजी घुसपैठ पर स्थायी रोक लगाई जा सकती है। फिलहाल सरहद पर तैनात जवान पूरी मुस्तैदी से डटे हुए हैं और हर संदिग्ध पर पैनी निगाह रखे हुए हैं।

 

नेपाल की जेलों से भागे कैदी भारत क्यों आ रहे हैं?
नेपाली जेलों से भागने के बाद अपराधी भारत की खुली सीमा का फायदा उठाकर यहाँ छिपने की कोशिश करते हैं, क्योंकि निगरानी वाले इलाक़ों से बचना आसान लगता है।
अब तक कितने फरार कैदी पकड़े गए हैं?
सीमा सुरक्षा बल (एसएसबी) ने अब तक 35 फरार कैदियों को भारत-नेपाल सीमा पर पकड़ने की पुष्टि की है।
क्या और कैदी भी सीमा पार करने की कोशिश कर रहे हैं?
हाँ, अधिकारियों का कहना है कि और भी फरार कैदी सीमा की तरफ बढ़ रहे हैं और संख्या लगातार बढ़ रही है।
स्थानीय ग्रामीणों पर इसका क्या असर हो रहा है?
सीमावर्ती गाँवों के लोग डरे और सतर्क हैं। बच्चों को देर शाम बाहर जाने से रोका जा रहा है और खेतों में लोग पहरा दे रहे हैं।
प्रशासन स्थिति को कैसे संभाल रहा है?
एसएसबी ने गश्त और निगरानी बढ़ा दी है। नेपाल पुलिस से समन्वय किया जा रहा है और पकड़े गए कैदियों को दस्तावेज की प्रक्रिया पूरी होने तक अस्थायी सेल में रखा जा रहा है।