Nitisa Katara Hatya एक मां की न्याय की लड़ाई
एक मां की पीड़ा और न्याय की तलाश की लंबी लड़ाई मैं नीलम कतारा हूं। बीस से अधिक वर्षों से मैं एक ऐसे दर्द के साथ जी रही हूं जिसे शब्दों में बयां करना आसान नहीं है। मेरे बेटे नितीश कतारा की हत्या 2002 में हुई थी। यह केवल एक हत्या नहीं थी, बल्कि एक ऐसी घटना थी जिसने हमारी पूरी दुनिया बदल दी। एक मां के लिए अपने बेटे को खोना सबसे बड़ा आघात होता है, लेकिन जब वह बेटा समाज के दबंग और सत्ता के नशे में चूर लोगों की वजह से मारा जाए, तो यह पीड़ा और भी गहरी हो जाती है। इन वर्षों में मैंने केवल न्याय पाने की कोशिश की है। अदालतों के चक्कर काटे, हर सुनवाई में उम्मीद और चिंता के बीच बैठी रही। हर तारीख मेरे दिल में एक सवाल लेकर आती – क्या आज मुझे अपने बेटे के लिए इंसाफ मिलेगा? और हर बार फैसले ने मेरे जख्मों को नया रूप दिया।
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फैसले से क्यों नहीं मिली संतुष्टि और क्यों है यह अधूरा
हाल ही में आए अदालत के फैसले में दोषियों को सजा तो सुनाई गई है, लेकिन यह सजा मेरे दिल को तसल्ली नहीं दे पाई। मुझे लगता है कि सजा अपराध की गंभीरता के हिसाब से पर्याप्त नहीं है। यह केवल मेरी निजी भावना नहीं है, बल्कि समाज के लिए भी एक सवाल है। क्या यह न्याय है कि किसी की जान इतनी बेरहमी से ले ली जाए और उसके बाद दोषियों को ऐसे फैसले के साथ जीने दिया जाए, जिसमें उनका डर और दबदबा अब भी बाकी रहे? नितीश की हत्या केवल एक व्यक्ति की हत्या नहीं थी, यह समाज में फैले उस सोच की हत्या थी जो मानती है कि ताकत और सत्ता के सामने कानून बौना है। मैं मानती हूं कि अगर न्याय व्यवस्था दोषियों को कठोरतम सजा नहीं देती, तो यह संदेश जाता है कि आपराधिक ताकतें हमेशा कानून से ऊपर हैं। यही वजह है कि मैंने पुनर्विचार याचिका दाखिल करने का निर्णय लिया है।
पुनर्विचार याचिका क्यों जरूरी है और इससे क्या उम्मीद है
मैंने यह रास्ता आसान समझकर नहीं चुना। हर सुनवाई मेरे पुराने जख्मों को कुरेद देती है। लेकिन अगर मैं चुप रहूं तो इसका मतलब यह होगा कि मैं अपने बेटे के खून से समझौता कर रही हूं। पुनर्विचार याचिका दाखिल करना मेरे लिए सिर्फ एक कानूनी प्रक्रिया नहीं है, यह मेरे बेटे की याद में उठाया गया एक कदम है। मुझे उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में फिर से सुनेगा और अपराधियों को ऐसी सजा देगा जो आने वाली पीढ़ियों के लिए एक संदेश बने। न्याय केवल मेरे लिए नहीं है। यह हर उस मां के लिए है जो सोचती है कि उसका बच्चा सुरक्षित है। अगर ऐसे मामलों में अपराधियों को कड़ी सजा नहीं मिलेगी, तो अपराधियों का हौसला और बढ़ेगा। यही डर मुझे चैन से बैठने नहीं देता।
नितीश की यादें और वह दर्द जो कभी नहीं मिटेगा
मेरे बेटे नितीश कतारा की यादें आज भी मेरे साथ हैं। उसकी हंसी, उसकी बातें और उसके सपने आज भी मेरी आंखों में ताजा हैं। वह एक साधारण लड़का नहीं था, उसके बड़े सपने थे। वह समाज में अपनी पहचान बनाना चाहता था। लेकिन कुछ लोगों की संकीर्ण सोच और अहंकार ने उसकी जिंदगी छीन ली। हर मां अपने बेटे के लिए उज्ज्वल भविष्य का सपना देखती है। लेकिन मेरी आंखों के सामने मेरे बेटे की लाश आई। यह दर्द न कभी कम हुआ और न ही होगा। लेकिन अगर मैं न्याय के लिए आखिरी सांस तक लड़ती रहूं, तो शायद मैं अपने बेटे की आत्मा को सुकून दे सकूं।
समाज और कानून से मेरी अपील
मैं जानती हूं कि कानून की अपनी सीमाएं हैं। लेकिन जब समाज और कानून मिलकर खड़े होते हैं, तभी अपराधियों के हौसले टूटते हैं। मैं समाज से अपील करती हूं कि वे इस मामले को केवल कतारा परिवार का मामला न समझें। यह हर उस परिवार का मामला है जिसके बच्चे कल को ऐसे ही हालात का शिकार हो सकते हैं। कानून से मेरी गुहार है कि वह ऐसे मामलों में सिर्फ तकनीकी नहीं, बल्कि नैतिक दृष्टिकोण से भी सोचे। अगर दोषियों को जीवन भर का कठोर दंड नहीं दिया जाएगा, तो वे लोग जेल से बाहर आकर फिर से समाज के लिए खतरा बन सकते हैं। न्याय में देरी पहले ही हो चुकी है। अब जरूरत है एक ऐसे फैसले की जो अपराध और अपराधियों के खिलाफ स्पष्ट और सख्त संदेश दे।
एक मां की जंग और इंसाफ की अंतिम उम्मीद
बीते दो दशकों में मैंने जितना सहा है, शायद किसी भी मां को सहना न पड़े। लेकिन मेरी जंग अभी खत्म नहीं हुई है। मैंने अपने बेटे के लिए, उसके सपनों के लिए और न्याय की उम्मीद में यह लड़ाई जारी रखी है। पुनर्विचार याचिका दाखिल करना इस संघर्ष की अगली कड़ी है। मुझे पता है कि यह रास्ता कठिन होगा, लेकिन मेरे पास पीछे हटने का विकल्प नहीं है। क्योंकि अगर मैं पीछे हट जाऊं, तो यह अपराधियों के सामने हार मानने जैसा होगा। आज मैं सिर्फ एक मां नहीं हूं, बल्कि उन सभी पीड़ित परिवारों की आवाज हूं जिनके बच्चों की जान अपराधियों ने छीन ली। अगर मेरा संघर्ष किसी और परिवार को न्याय दिला सके, तो मुझे लगेगा कि नितीश का बलिदान व्यर्थ नहीं गया।
न्याय की आस और बेटे की आत्मा के लिए संकल्प
न्याय पाना आसान नहीं है। खासकर तब, जब सामने ताकतवर और प्रभावशाली लोग हों। लेकिन मुझे भरोसा है कि सच हमेशा जीतता है। मैं अपने बेटे की आत्मा को यह वादा कर चुकी हूं कि जब तक सांस है, तब तक न्याय की लड़ाई लड़ती रहूंगी। यह केवल मेरा व्यक्तिगत संघर्ष नहीं है। यह समाज की आत्मा का संघर्ष है। अगर हम ऐसे मामलों में न्याय नहीं पाएंगे, तो हमारी आने वाली पीढ़ियां कानून और व्यवस्था से विश्वास खो देंगी। मेरे लिए यह लड़ाई कभी खत्म नहीं होगी, जब तक कि मेरे बेटे की हत्या करने वालों को ऐसी सजा न मिले जो इंसाफ का सच्चा रूप हो। यही वजह है कि मैंने फैसला किया है कि मैं पुनर्विचार याचिका दाखिल करूंगी और आखिरी दम तक इंसाफ की आस में खड़ी रहूंगी।
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