Nobel Peace Prize 2025: ट्रंप सबसे चर्चित, लेकिन कमेटी की पसंद क्या होगी?
डोनाल्ड ट्रंप का नाम इस साल नॉबेल शांति पुरस्कार की चर्चा में सबसे आगे है। अपने “शांतिदूत” बयान और अब्राहम समझौते जैसे प्रयासों का हवाला देकर उन्होंने माहौल बनाया है। अमेरिका से लेकर पाकिस्तान तक, कई नेताओं ने ट्रंप की सिफारिश की है। लेकिन आलोचक कहते हैं कि राजनीति और प्रचार इस दावेदारी में हावी हैं। सवाल यही है—क्या शांति का पुरस्कार ट्रंप की छवि को नया मोड़ देगा या फिर किसी और नाम की होगी जीत?
नोबेल शांति पुरस्कार: ट्रंप की दावेदारी पर गरमाई बहस
खबर का सार AI ने दिया · News Team ने रिव्यु किया
- 10 अक्टूबर को ओस्लो में नोबेल शांति पुरस्कार विजेता का एलान होगा।
- इस साल 338 उम्मीदवार हैं, जिनमें 244 व्यक्ति और 94 संगठन शामिल हैं।
- अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की दावेदारी को लेकर सबसे ज्यादा चर्चा है।
10 अक्टूबर की सुबह दुनिया की नजर ओस्लो शहर पर होगी, जहां से हर साल की तरह इस बार भी नॉबेल शांति पुरस्कार के विजेता का नाम घोषित होगा। बड़ी बात है, नाम का एलान होते ही सोशल मीडिया और न्यूज चैनलों पर हलचल मच जाएगी। लोगों में तरह-तरह की कहानियां राष्ट्रीय चर्चा बन जाएंगी। कई लोग तो अब भी सोच रहे हैं—क्या इस बार कुछ नया होने वाला है?
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लंबी हैं दावेदारों की कतार, लेकिन ट्रंप सबसे ज्यादा चर्चा में क्यों?
नॉबेल शांति पुरस्कार के लिए 2025 में 338 उम्मीदवारों के नाम आए हैं, जिनमें 244 लोग और 94 संगठन शामिल हैं। नाम तो बहुत हैं, पर सबसे ज्यादा बहस अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को लेकर हो रही है। ट्रंप ने पिछले साल खुद को 'शांतिदूत' बताते हुए इस सम्मान के लिए लगातार माहौल बनाया। कुछ बड़े नेताओं ने तो उनकी खुलेआम सिफारिश तक कर दी। अमेरिका में तो कुछ सांसद भी उनके पक्ष में सामने आए। लेकिन बातें, नामांकन और वोटों का खेल आसान नहीं होता। सही है, ट्रंप के नाम पर चर्चा बहुत है।
ट्रंप की दावेदारी की वजह और उनका खुद का बयान
डोनाल्ड ट्रंप लगातार मानते रहे हैं कि उन्होंने दुनिया में शांति के प्रयास किए हैं। साल 2020 के अब्राहम समझौते और कई देशों के बीच सुलह-सफाई कराने के चर्चे उनके समर्थक बार-बार उठाते हैं। ट्रंप खुद भी यह बोल चुके हैं कि अगर उन्हें शांति पुरस्कार नहीं मिला तो यह अमेरिका के लिए 'अपमान' जैसा होगा। वैसे, सच बताओ, जितना नाम ट्रंप ने खुद का प्रचार करके कमाया है, शायद ही किसी और ने किया हो। इस बार उनकी उम्मीद भी थोड़ी तेज लग रही है।
बाकी दावेदार – कौन-कौन कर रहे शांति के लिए कोशिशें?
अब सवाल यह उठता है कि ट्रंप के अलावा आखिर और कौन हैं इस दौड़ में आगे? सूची में ऐसे नाम हैं, जो सच में शांति के बड़े काम कर रहे हैं। मिसाल के तौर पर, सूडान के इमरजेंसी रेस्पॉन्स रूम, ये संगठन युद्ध और भूख में फंसे लोगों के लिए लगातार मदद कर रहे हैं। यूलिया नवाल्नाया—जो रूस के विपक्षी नेता की पत्नी हैं, उनका नाम भी बार-बार चर्चा में आता है। कहानियां हर कोने से आती हैं। संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंतोनियो गुटेरेस और फिलिस्तीनी शरणार्थियों की एजेंसी UNRWA भी इस बार नामों में आगे हैं। पुराने नाम, नई कहानियां—हर साल कुछ न कुछ नया हो रहा।
हां, राजनीति भी जमकर हो रही है इस सम्मान को लेकर
नॉबेल शांति पुरस्कार के अतीत में देखा जाए तो इसमें अकसर राजनीति भी देखने को मिलती है। जीत किसे मिलेगी—यह कई बार राजनीति, चर्चा, मीडिया और सार्वजनिक माहौल पर भी निर्भर करता है। ट्रंप की उम्मीदवारी को लेकर कई देशों की प्रतिक्रिया सामने आई है। पाकिस्तान ने भी ट्रंप का नाम आगे बढ़ाया। यहां तक कि कुछ यूरोपीय नेताओं ने भी उनकी सिफारिश की। सोशल मीडिया पर कई अफवाहें भी आईं कि ट्रंप की नामांकन रद्द हो चुका है, लेकिन यह सब महज चर्चाएं हैं। नॉबेल पुरस्कार कमेटी नामांकन की असली जानकारी 50 साल तक गोपनीय रखती है, यह बात बहुत कम लोगों को पता है।
संगठन भी दौड़ में, अकेले नेता ही सब कुछ नहीं
कहानी सिर्फ नेताओं की नहीं, इस बार कई संगठन भी दावेदार हैं। संयुक्त राष्ट्र के कई हिस्से, पत्रकार सुरक्षा से जुड़े संगठन, चुनाव निगरानी संस्थाएं—ये सब नाम सूची में हैं। खासकर पत्रकारों की सुरक्षा और युद्धग्रस्त इलाकों में राहत पहुंचाने वाले संगठनों को ज्यादा तवज्जो मिल रही है। कई बार, संगठन विनम्र ढंग से बहुत बड़ा बदलाव ले आते हैं, लेकिन चर्चा हमेशा नेताओं के आसपास घूम जाती है।
क्या वाकई ट्रंप को मिल जाएगा नॉबेल पीस प्राइज?
सवाल बड़ा है, जवाब समय ही देगा। ट्रंप अपने कार्यकाल में कई तरह के शांति प्रयासों का दावा कर चुके हैं, लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि वो टक्कर में जरूर हैं, पर कमेटी की पसंद कुछ और भी हो सकती है। अनुभव कहता है कि डिप्लोमेसी, मानवाधिकार, लोकतंत्र, और बड़ी मानवीय कोशिशों को अक्सर इस अवॉर्ड के वक्त ज्यादा अहमियत दी जाती है। ट्रंप के खिलाफ भी माहौल और समीकरण हैं, ये किसी से छुपा नहीं है।
कुछ अनदेखे नाम और चर्चित चेहरे
इस साल चर्चा है अकेले बड़े नेताओं पर ही नहीं, ह्यूमन राइट्स, युद्धविरोधी संस्थाएं, और ग्रासरूट वर्कर भी चर्चा में हैं। मलेशिया के प्रधानमंत्री अनवर इब्राहिम, पाकिस्तान के इमरान खान, अमेरिकी बिजनसमैन एलन मस्क जैसी हस्तियां भी नामांकन में हैं। हर किसी की वजह अलग-अलग, लेकिन आशा और उम्मीद एक ही—शांति।
घोषणा का रोमांच—रवायत और नई बातें
घोषणा का दिन हमेशा खास होता है। ओस्लो शहर में प्रेस कॉन्फ्रेंस, लाइव रिपोर्टिंग, और मीडिया का जमावड़ा। जैसे ही नाम घोषित होता है, दुनिया देखती है किसने सबसे बड़ा योगदान दिया है। अनाउंसमेंट के वक्त नॉर्वे की परंपराएं और आयोजनों की अपनी खूबसूरती है। ओस्लो में कबूतरों की उड़ान, जय-जयकार, और रंग-बिरंगा माहौल सबका दिल जीत लेता है।
नॉबेल पुरस्कार—इतिहास से लेकर भविष्य तक
अल्फ्रेड नॉबेल के सपनों से निकला यह पुरस्कार 120 साल से ज्यादा समय से दुनिया में शांति, भाईचारे और आशा का संदेश देता आया है। कई लोग कहते हैं, यह एक मैडल या पैसे से कहीं ज्यादा है। जिस व्यक्ति या संगठन को यह सम्मान मिलता है, उनकी जिम्मेदारी भी बढ़ जाती है। पुरानी कहावत है—सम्मान के साथ बड़ा बोझ भी आता है।
अब आगे क्या—कुछ सवाल और अनुमान
नामों की चर्चा जारी है, लेकिन कल सबको जवाब मिल जाएगा। क्या ट्रंप यह गौरव अपने नाम कर पाएंगे या कोई नया नाम सबसे आगे निकल जाएगा? क्या एक संगठन सबपर भारी पड़ेगा? जब तब तक ऐलान नहीं होता, तब तक सबकुछ अंदाजा है। आने वाली सुबह ओस्लो की गलियों से निकलकर दुनिया की खबर बन जाएगी।
अंत में, इंतजार बस एक नाम के खुलने का
शांति, उम्मीद, प्रयास—यही तीन शब्द इस साल के नॉबेल शांति पुरस्कार को बयां करते हैं। हर किसी को अपने तरीके से उम्मीद है। ट्रंप हों या कोई और, जिसका भी नाम आए, दुनिया को उम्मीद है कि उनसे शांति और भाईचारा और मजबूत हो। शायद इसीलिए, यह पुरस्कार सबसे खास माने जाते हैं। अब कुछ घंटे और, फिर खुल जाएगा राज।
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