कभी-कभी एक देश की राजनीति उसकी फौज से ज़्यादा नहीं, बल्कि उसी की छाया में चलती है। पाकिस्तान इसका जीता-जागता उदाहरण है। वहां का हर बड़ा फैसला, हर नई दिशा — कहीं न कहीं आर्मी हेडक्वार्टर से ही तय होता है। और अब तो हाल यह है कि खुद संसद में ऐसा कानून पेश हो गया है जिससे सेना प्रमुख आसिम मुनीर को और ज़्यादा अधिकार मिल जाएंगे।
पाकिस्तान में संसद का नया दांव
हाल ही में पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में एक बिल पेश हुआ — ‘CDF (Chief of Defence Force)’ कानून। यह नया पद बनेगा, और माना जा रहा है कि मौजूदा आर्मी चीफ जनरल आसिम मुनीर को ही इस पद की कमान सौंपी जाएगी। यानी अब वो न सिर्फ आर्मी के बल्कि तीनों सेनाओं के सुप्रीम बॉस बन जाएंगे। सीधे शब्दों में कहें, तो अब पाकिस्तान की फौज का “सुपर बॉस” तय हो गया है।

‘हमें कई सबक सिखाए’ – इस लाइन का मतलब
आसिम मुनीर ने हाल ही में एक भाषण में कहा — “हमें पिछले कुछ सालों ने कई सबक सिखाए हैं।” इस बयान के पीछे कई परतें हैं। एक तो यह इशारा है कि देश में राजनीतिक अस्थिरता और सेना के बीच खींचतान ने फौज की इमेज को चोट पहुंचाई है। दूसरा, यह अपने पुराने नेताओं को एक सख्त संदेश भी है — कि अब सेना फिर से नियंत्रण में है।
पाकिस्तान की सियासत का असली कंट्रोल रूम
मैंने खुद कई बार देखा है कि पाकिस्तान की सियासी बहसों में सबसे ज़्यादा चर्चा प्रधानमंत्री या विपक्ष की नहीं, बल्कि GHQ (जनरल हेडक्वार्टर) की होती है। इस बार भी वही कहानी दोहराई जा रही है। ‘CDF’ पद बनाकर अब सेना की ताकत को और आधिकारिक रूप दिया जा रहा है। इससे लोकतंत्र के नाम पर चल रही दिखावटी आज़ादी और कमज़ोर हो जाएगी।
एक बार इस्लामाबाद में एक पुराने पत्रकार ने मुझसे कहा था, “यहां सत्ता कभी प्रधानमंत्री की नहीं होती, हमेशा Rawalpindi की होती है।” उस वक़्त यह बात आधी मज़ाक जैसी लगी थी, लेकिन अब वही बात पूरी तरह सच साबित हो रही है।
आसिम मुनीर की रणनीति – साइलेंट लेकिन स्ट्रॉन्ग
आसिम मुनीर बाकी जनरलों की तरह कैमरों के सामने बोलने वाले इंसान नहीं हैं। वो शांत रहते हैं, लेकिन उनके फैसले गहरे असर छोड़ते हैं। IMF से ले कर आंतरिक आतंकवाद तक — हर मुद्दे पर उनका अप्रत्यक्ष असर साफ दिखता है। अब CDF के रूप में वो शायद पाकिस्तान के इतिहास के सबसे प्रभावशाली सैन्य अधिकारी बन जाएंगे।

भारत को इससे क्या सबक लेना चाहिए?
सीधी बात, भारत को इस पूरे घटनाक्रम से यह याद रखना चाहिए कि लोकतंत्र तभी मज़बूत होता है जब सेना अपनी सीमाओं में रहे। पाकिस्तान की हालत एक आईना है — जहां सेना “रक्षक” से “शासक” बन गई। यह वही गलती है जिसने देश को बार-बार पीछे धकेला।
आखिरी राय
आसिम मुनीर का CDF बनना पाकिस्तान की राजनीति में एक निर्णायक मोड़ है। लोकतंत्र और संविधान के नाम पर एक बार फिर वही पुराना “फौजी राज” लौट आया है — बस इस बार एक नए नाम और नए पद के साथ। और जैसा कि मुनीर ने खुद कहा — “हमें कई सबक सिखाए...” शायद अब यह सबक बाकी दुनिया को भी समझने चाहिए।


