ग्रहण और पितृपक्ष का अद्भुत मेल, जानें क्या है खास

122 वर्षों बाद पितृपक्ष में लगने वाले दो ग्रहण धार्मिक और ज्योतिषीय दृष्टि से बेहद खास माने जा रहे हैं। यह संयोग भारत के लिए शुभ और विश्व में उथल-पुथल लाने वाला साबित होगा।

ग्रहण और पितृपक्ष का अद्भुत मेल, जानें क्या है खास

122 साल बाद पितृपक्ष में लगेंगे दो ग्रहण: भारत के लिए शुभ संकेत, ज्योतिर्विदों ने बताए भविष्य के संकेत

सनातन धर्म में पितृपक्ष का महत्व अपार है। इस काल को पितरों का स्मरण और तर्पण करने का पावन पर्व कहा जाता है। इस बार का पितृपक्ष खास होने वाला है, क्योंकि 122 वर्ष बाद पहली बार इसके आरंभ और समापन दोनों अवसरों पर ग्रहण लग रहा है। धार्मिक दृष्टि से यह बेहद दुर्लभ संयोग है।

पितृपक्ष 2025 में दो ग्रहणों का संयोग

7 सितंबर 2025 → चंद्रग्रहण के साथ पितृपक्ष का शुभारंभ।

21 सितंबर 2025 → सूर्यग्रहण के दिन पितृपक्ष का विसर्जन।

चंद्रग्रहण का समय और विवरण

आरंभ (स्पर्श): रात 8:58 बजे

मध्यकाल: रात 11:41 बजे

मोक्ष (समापन): तड़के 2:25 बजे

नक्षत्र एवं राशि: शतभिषा नक्षत्र और कुंभ राशि।

दृश्य स्थान: भारत सहित एशिया, ऑस्ट्रेलिया, यूरोप, अंटार्कटिका और कई महासागरीय क्षेत्रों में।

सूर्यग्रहण का विवरण

तिथि: 21 सितंबर 2025

भारत में प्रभाव: दृश्य नहीं होगा, इसलिए यहां इसका असर नगण्य रहेगा।

ज्योतिषीय प्रभाव और भविष्यफल

ज्योतिर्विदों के अनुसार ग्रहण का पितृपक्ष पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा। बल्कि यह भारत के लिए शुभ संकेत लेकर आएगा।

भारत पर प्रभाव

सकारात्मक पहलू:

आर्थिक क्षेत्र में मजबूती

विज्ञान और शोध के क्षेत्र में नए कीर्तिमान

सैन्य और कूटनीति में प्रगति

चुनौतियाँ:

आंतरिक राजनीति में कटुता और टकराव

सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच सामंजस्य का अभाव

विश्व पर प्रभाव

वैश्विक स्तर पर राजनीतिक उथल-पुथल

कई देशों में अशांति और अस्थिरता

प्राकृतिक आपदाओं और जलवायु परिवर्तन के संकेत

ऐतिहासिक दृष्टि: 1903 का दुर्लभ संयोग

इतिहास गवाह है कि 1903 में भी पितृपक्ष के दौरान ऐसा ही संयोग बना था।

तब चंद्रग्रहण भारत में दृश्य नहीं था।

सूर्यग्रहण का प्रभाव उस समय भारत पर देखा गया था।

इस बार स्थिति उलटी है – सूर्यग्रहण का असर भारत में नहीं होगा, जिससे भारत को शुभ परिणाम प्राप्त होंगे।

सूतक काल: नियम और पालन

धार्मिक शास्त्रों के अनुसार ग्रहण काल में सूतक का विशेष महत्व है।

चंद्रग्रहण का सूतक: 9 घंटे पूर्व आरंभ होता है।

सूर्यग्रहण का सूतक: 12 घंटे पूर्व आरंभ होता है।

क्या करें?

मंत्र जाप, ध्यान और पूजा-पाठ।

दान-पुण्य और श्राद्ध कर्म।

पवित्र नदियों या जल में स्नान।

क्या न करें?

सामान्य भोजन का सेवन।

किसी भी प्रकार का शुभ कार्य।

झूठ बोलना, अपशब्द कहना और विवाद करना।

इस बार का पितृपक्ष केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि ज्योतिषीय दृष्टि से भी अत्यंत विशेष है। 122 वर्षों बाद बना यह संयोग भारत को नई दिशा देने वाला माना जा रहा है। विश्व स्तर पर उथल-पुथल और संघर्ष के बीच भारत आर्थिक, वैज्ञानिक और सैन्य शक्ति के रूप में उभरेगा।पितृपक्ष का मुख्य संदेश यही है कि पूर्वजों को स्मरण कर उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त की जाए और उनके आशीर्वाद से जीवन में प्रगति के नए द्वार खोले जाएं।

पितृपक्ष 2025 में कितने ग्रहण लगेंगे?
इस बार 122 साल बाद पितृपक्ष के दौरान दो ग्रहण लग रहे हैं – 7 सितंबर को चंद्रग्रहण और 21 सितंबर को सूर्यग्रहण।
क्या सूर्यग्रहण भारत में दिखाई देगा?
नहीं, 21 सितंबर 2025 का सूर्यग्रहण भारत में दृश्य नहीं होगा। इसका असर भारत पर नगण्य रहेगा।
चंद्रग्रहण कब और कहां दिखाई देगा?
चंद्रग्रहण 7 सितंबर 2025 की रात 8:58 बजे से शुरू होगा और तड़के 2:25 बजे तक चलेगा। यह भारत सहित एशिया, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया और अंटार्कटिका में दिखाई देगा।
ग्रहण का पितृपक्ष पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार ग्रहण का पितृपक्ष पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा। बल्कि भारत के लिए यह समय शुभ रहेगा।
भारत पर इन ग्रहणों का क्या असर होगा?
भारत आर्थिक, वैज्ञानिक, सैन्य और कूटनीतिक क्षेत्र में मजबूत होगा। हालांकि, आंतरिक राजनीति में टकराव और विपक्ष-सरकार के बीच सामंजस्य की कमी देखी जा सकती है।
विश्व स्तर पर क्या प्रभाव देखने को मिलेंगे?
विश्व में राजनीतिक अस्थिरता, अशांति और प्राकृतिक आपदाओं की संभावना बढ़ सकती है। कई देशों में उथल-पुथल की स्थिति भी बन सकती है।
सूतक काल कब लगता है?
चंद्रग्रहण से 9 घंटे पहले और सूर्यग्रहण से 12 घंटे पहले सूतक आरंभ हो जाता है। इस दौरान भोजन, शुभ कार्य और वर्जित गतिविधियां नहीं करनी चाहिए।
ग्रहण के दौरान क्या करना चाहिए?
इस समय मंत्र जाप, ध्यान, दान-पुण्य, स्नान और पूजा-पाठ करना अत्यंत फलदायी माना जाता है।
ग्रहण के दौरान क्या नहीं करना चाहिए?
सामान्य भोजन, शुभ कार्य, अपशब्द, झूठ बोलना और विवाद करने से बचना चाहिए।
पिछली बार पितृपक्ष में दो ग्रहण कब लगे थे?
वर्ष 1903 में पितृपक्ष के दौरान ऐसा दुर्लभ संयोग बना था। उस समय सूर्यग्रहण भारत में प्रभावी रहा था।