बिहार में चुनावी माहौल जैसे-जैसे तेज हो रहा है, वैसे-वैसे आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी बढ़ता जा रहा है। इसी माहौल में चुनाव रणनीतिकार और जन सुराज पार्टी के नेता प्रशांत किशोर ने बिहार सरकार के मंत्री अशोक चौधरी पर भ्रष्टाचार का बड़ा आरोप लगाकर पूरी राजनीति को हिला दिया है। प्रशांत किशोर ने यह भी कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जो सुशासन वाली छवि है, वह अब सवालों में आ गई है।
आखिर क्या है मामला, कैसे अशोक चौधरी घिरे
पूरा विवाद तब शुरू हुआ जब प्रशांत किशोर ने मीडिया के सामने यह दावा किया कि अशोक चौधरी के मंत्रालय में गंभीर अनियमितताएं हुई हैं। वह बोले कि मंत्री बनने के बाद कई अरब रुपये के ठेके सिर्फ चहेतों को दिए गए। प्रशांत किशोर का कहना है कि यह घोटाला बिहार के लोगों के साथ किया गया बहुत बड़ा विश्वासघात है।
प्रशांत किशोर के आरोपों का असर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर
नीतीश कुमार की पहचान बिहार में अच्छे शासन यानी सुशासन के लिए होती रही है। लेकिन प्रशांत किशोर के इन आरोपों ने उनकी छवि पर सीधा वार किया है। जिस समय बिहार विधानसभा चुनाव की घोषणा हो चुकी है, ठीक ऐसे वक्त पर भ्रष्टाचार के आरोप लगना, मुख्यमंत्री के लिए बड़ा झटका है।
अशोक चौधरी और उनकी बेटी सांसद शांभवी चौधरी का जवाब
आरोप लगते ही अशोक चौधरी ने प्रेस कांफ्रेंस बुलाकर सफाई दी। उन्होंने कहा कि प्रशांत किशोर की बातें बेबुनियाद हैं और उनके पास कोई भी सबूत नहीं है। उनकी बेटी सांसद शांभवी चौधरी ने भी आरोपों का खंडन किया और चुनाव से ठीक पहले ऐसी राजनीति को दुर्भाग्यपूर्ण बताया।
विपक्ष को एक और मुद्दा हाथ लगा
बिहार विधानसभा चुनाव से पहले प्रशांत किशोर के आरोपों से विपक्ष को सरकार को घेरने का एक नया मौका मिल गया है। अब राष्ट्रीय जनता दल, कांग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टियां मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और जदयू के मंत्रियों को कटघरे में खड़ा करने लगी हैं।
जनता में बढ़ी राजनीतिक चर्चाएं, सुशासन पर सवाल
बिहार की जनता में अब इस मुद्दे पर खूब चर्चा हो रही है। लोगों का कहना है कि अगर मंत्री पर इतनी बड़ी रकम के घोटाले का संदेह है तो सरकार को इसकी निष्पक्ष जांच करानी चाहिए। आम लोग नीतीश कुमार से जवाब मांग रहे हैं कि उनके राज में कैसे इतने बड़े भ्रष्टाचार के मामले सामने आ रहे हैं।
नीतीश कुमार की मजबूरी, क्यों नहीं ले सकते खुला एक्शन
अंदर की खबर यह है कि नीतीश कुमार के सामने चुनाव से ठीक पहले मंत्री पर सीधा एक्शन लेना आसान नहीं है। इससे उनकी पार्टी में तकरार बढ़ सकती है। दूसरी तरफ अगर वे कुछ नहीं करते, तो सुशासन की छवि पूरी तरह खराब हो सकती है।
प्रशांत किशोर की चुनावी रणनीति और इसके पीछे की सियासत
राजनीतिक जानकार मानते हैं कि प्रशांत किशोर ने यह मुद्दा चुनाव के समय ही उठाकर विरोधियों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। इससे बिहार की राजनीति में नया मोड़ आ गया है। उनका मकसद जनता के बीच खुद की पार्टी को मजबूत विकल्प के तौर पर पेश करना भी बताया जा रहा है।
चुनाव पर असर: किसका फायदा, किसका नुकसान
चुनाव विश्लेषकों का मानना है कि भ्रष्टाचार के मुद्दे पर यदि कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई तो इसका सीधा नुकसान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को हो सकता है। वहीं अगर जांच में कुछ साबित नहीं होता है, तो वह इससे निकल भी सकते हैं। लेकिन चुनाव के समय सियासी माहौल पूरी तरह बदल गया है।
जनता, सरकार और विपक्ष किसका पलड़ा भारी?
आने वाले दिनों में राजनीतिक बयानबाजी और बढ़ेगी। नीतीश कुमार की अगुवाई में सरकार इस संकट को किस तरह संभालेगी, यह उनके राजनीतिक भविष्य के लिए अहम होने वाला है। जनता की नजर अब सरकार के हर कदम पर टिकी है।