Prayagraj Karchana : का दर्द सहपाठियों ने छीन ली 12वीं के छात्र की साँसें, छोटे भाई की गोद में बड़े भाई का शव
सुबहे स्कूल जाने वाला लड़का शाम को ताबूत में लौटा, पूरा करछना सदमे में प्रयागराज के करछना कस्बे में बुधवार की शाम जब एम्बुलेंस का सायरन गूँजा तो किसी ने नहीं सोचा था कि अंदर वही किशोर है जो सुबह हँसता-मुस्कराता स्कूल निकला था। करछना छात्र हत्या की खबर मानो बिजली की तरह फैल गई। पिता दुकान बंद कर सीधे घर पहुँचे, माँ की रुलाई उस सड़क तक सुनी गई जहाँ एम्बुलेंस खड़ी थी। सारा मोहल्ला स्तब्ध, आँखें नम और जुबान पर एक ही सवाल—क्यों?
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कक्षा में बैठा शांत छात्र कैसे बन गया हिंसा का निशाना, गवाहों ने सुनाई दहलाने वाली दास्ताँ
घटना पिछले पीरियड के बाद खेल मैदान के पास हुई। गवाह बताते हैं कि दो सहपाठी किसी पुराने मज़ाक को लेकर उलझ पड़े। पीड़ित छात्र बीच-बचाव करने पहुँचा तो वही दोनों उस पर ही टूट पड़े। एक ने क्रिकेट का स्टंप उठाया, दूसरे ने लोहे की रॉड। दस सेकंड में तीन वार, सिर पर गहरी चोट, बच्चा गिरते ही बेहोश हुआ। किसी ने सोचा तक नहीं था कि यह मज़ाक जानलेवा बन जाएगा। करछना छात्र हत्या का यह रूप स्कूल इतिहास के पन्नों पर काला धब्बा बन गया।
छोटे भाई की गोद में अंतिम साँसें, अस्पताल के गलियारे में पड़ी किताबें और खून से सना यूनिफार्म
छोटा भाई उसी स्कूल में निचली कक्षा में पढ़ता है। बड़े भैया के गिरने की खबर मिली तो वह दौड़ता हुआ मैदान पहुँचा। दोस्त उसे चिल्लाते हुए बोले, “भैया को उठाओ।” लड़का रोता-काँपता भाई का सिर गोद में रखे रहा। एम्बुलेंस आई, पर रास्ते में ही धड़कन रुक गई। अस्पताल के गलियारे में जब डॉक्टर ने “नो पल्स” कहा, भाई ने किताबें फेंक दीं। यूनिफार्म पर खून के छींटे थे, जो आज भी धोने पर उतर नहीं रहे।
पुलिस जांच में सामने आई शुरुआती वजहें, दोस्ती की दरार ने ले ली जान
थाना करछना की पुलिस ने रातों-रात दोनों आरोपित सहपाठियों को हिरासत में ले लिया। पूछताछ में एक कारण उभरा—मोबाइल गेम में हुआ झगड़ा, जो पिछले हफ्ते से चल रहा था। स्कूल स्टाफ ने माना कि उनके बीच पहले भी कहा-सुनी होती रही, पर किसी ने अंदेशा नहीं लगाया कि बात इतनी आगे जाएगी। पुलिस ने हत्या का मुकदमा दर्ज करते हुए लोहे की रॉड और स्टंप बरामद कर लिए हैं। करछना छात्र हत्या के कारणों की तह में जाने के लिए साइबर सेल भी गेम चैट खंगाल रही है।
गाँव की गलियों में पसरा सन्नाटा, माता-पिता की पुकार सुन रो पड़े पड़ोसी
अंत्येष्टि वाले दिन गाँव के रास्ते पर बच्चों की किलकारियाँ गायब थीं। हर घर का दरवाज़ा आधा बंद, हर चेहरे पर डर। पिता ने बेटे की पुरानी साइकिल कंधे पर उठा कर श्मशान तक ले गए, मानो कह रहे हों—अब इसे कौन चलाएगा। माँ ने राख में हाथ डाल कर बेटे का नाम पुकारा, “अभी तो तुझसे इंजीनियर बनना सुनती थी।” पड़ोसियों के आँसू थम नहीं रहे थे।
स्कूल प्रबंधन पर उठे सवाल, सुरक्षा के दावे हुए तार-तार
स्कूल ने दाखिले के समय अभिभावकों को आश्वासन दिया था कि परिसर पूरी तरह सुरक्षित है। पर सीसीटीवी उसी दिन खराब निकला, मैदान पर कोई शिक्षक ड्यूटी पर नहीं था। प्रबंधक ने प्रेस को बताया कि “हम सदमे में हैं,” पर अभिभावक बोले—सिर्फ दुख जताने से क्या होगा? पाँच सौ से ज़्यादा विद्यार्थियों के स्कूल में यदि सुरक्षा उपाय न हों तो ऐसी घटनाएँ रोकना मुश्किल है। करछना छात्र हत्या ने शिक्षा संस्थानों की जवाबदेही पर बड़ा प्रश्नचिह्न लगा दिया है।
मनोवैज्ञानिकों की सलाह—क्रोध पर काबू और संवाद बढ़ाएँ, वरना दबा गुस्सा बन सकता है विस्फोट
बाल मनोविज्ञानी डॉ. सीमा मिश्रा कहती हैं, “किशोरावस्था में हार्मोनल बदलाव के कारण भावनाएँ तेज होती हैं। घर और स्कूल को मिलकर बच्चों को संवाद का मौक़ा देना चाहिए।” वह सुझाती हैं कि अभिभावक रोज़ाना दस मिनट बिना किसी फ़ोन या टीवी के साथ बिताएँ, बच्चों को सुनें, दोष न निकालें। स्कूल को भी विवाद सुलझाने के लिए काउंसलर रखना चाहिए। यदि हम समय पर ध्यान दें तो अगली करछना छात्र हत्या जैसी घटना रोकी जा सकती है।
कानूनी सख़्ती या सामाजिक शिक्षा—क्या है सही रास्ता, विशेषज्ञों में छिड़ी बहस
कुछ शिक्षक और पुलिस अधिकारी सख़्त कानून की वकालत करते हैं, ताकि किशोर भी अपराध से डरें। दूसरी ओर सामाजिक कार्यकर्ता कहते हैं कि दंड से ज़्यादा ज़रूरी है बच्चों को सहानुभूति सिखाना। करछना की घटना ने इन दोनों ध्रुवों को आमने-सामने ला खड़ा किया है। शायद समाधान बीच का हो—कानून का डंडा भी, और दिल में समझ भी।
भइया की किताबें मैं पढ़ूँगा—छोटे भाई के नए वादे ने नम आँखों में भी जगा दी उम्मीद
अंतिम दृश्य किसी भी पत्थर दिल को पिघला देगा। चिता बुझने के बाद छोटे भाई ने पिता का हाथ पकड़ा और बोला, “भइया का सपना मैं पूरा करूँगा।” घर लौटते समय उसने वो ही गणित की किताब उठाई जो खून से सनी थी। उसने माँ से कहा, “इसे मैं साफ करूँगा, पढ़ूँगा भी।” शायद यही उम्मीद है जो करछना को धीरे-धीरे ज़ख्म से उबरने की ताक़त देगी।
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