Pune cyber frode: रिटायर्ड अफसर से ठगी में उड़ाए 97 लाख रुपये
सोचना मुश्किल है कि महज एक फोन कॉल किसी सीधे-सादे इंसान की दुनिया को उलट सकता है, मगर महाराष्ट्र के पुणे में यही हुआ. शहर के एक 66 वर्षीय रिटायर्ड सरकारी अफसर को ठगों ने हाई-टेक जाल में ऐसा फँसाया कि वे घर से बाहर भी न निकल सके. उन्हें वीडियो कॉल पर दिखाया गया कि उनका नाम अंतरराज्यीय ड्रग तस्करी और मनी-लॉन्ड्रिंग केस में जुड़ गया है. डर, शर्म और ‘क्या होगा’ की उधेड़बुन के बीच अफसर ने महीने भर में बैंक के अलग-अलग खातों में लगभग एक करोड़ रुपये ट्रांसफर कर दिए.
एक साधारण ‘सर, आपके पार्सल में ड्रग मिला है’ से शुरू हुई दहशत की पटकथा
वाकया पिछले महीने की शुरुआत का है. सुबह करीब 10 बजे मोबाइल घनघनाया. स्क्रीन पर अंजान नंबर था, पर फ़ोन उठाया गया. उधर से रौबदार आवाज़ आई, “मैं दिल्ली कस्टम्स से बोल रहा हूँ, आपका पार्सल रोका गया है. उसमें प्रतिबंधित सामग्री मिली है.” रिटायर्ड अफसर ने टूटे-फूटे शब्द सुने और घबराहट में पूछा, “कौन-सा पार्सल?” आगे से जवाब आया, “सर, यह मामला अब महाराष्ट्र साइबर सेल और Narcotics Control Bureau के पास जा रहा है. हमें आपकी पहचान वेरिफ़ाई करनी होगी.” यहीं से शुरू हुआ डर का सिलसिला, जिसे ठगों ने हर कदम पर बढ़ाया.
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शिकार को यकीन दिलाने के लिए ठगों ने एक लिंक भेजा. लिंक क्लिक करते ही मोबाइल स्क्रीन काले-नीले बैकड्रॉप वाले ‘ऑफ़िस’ में बदल गई. सामने तीन लोग कोट-टाई में बैठे थे. एक ने कहा, “सर, अब आपको डिजिटल अरेस्ट में रखा जाएगा. जब तक इन्वेस्टिगेशन चलेगी, घर से बाहर ना जाएँ, मोबाइल ऑन रखें, स्क्रीन शेयर चालू रखें.” हर शब्द इतना कानूनी-सा था कि अफसर को लगा—अगर सहयोग नहीं किया तो असली पुलिस दरवाज़ा खटखटाएगी. डर के साए में उन्होंने TeamViewer जैसा रिमोट-स्क्रीन ऐप डाउनलोड करवाया. इसके बाद ठग उनके नेट-बैंकिंग पर नज़र रखने लगे.
महीने भर की ‘कैद’: दिन-रात वॉट्सऐप कॉल, खाते से पैसे निकलवाने की तरकीबें और परिवार से दूरी
पहले दिन अफसर से 15 लाख रुपये ‘सुरक्षा जमा’ के तौर पर ट्रांसफर कराए गए. ठग बोले, “जाँच पूरी होने पर रिफ़ंड मिलेगा.” अगले पाँच दिन में बड़ी बेहयाई से कहा गया, “आपके ख़िलाफ़ इंटरपोल नोटिस है; केस सिंघापुर शाखा में ट्रांसफर हुआ है.” घबराए अफसर ने FD तुड़वाई, म्यूचुअल फ़ंड निकाले और हर बार नयी कहानी सुनकर पैसे भेजते रहे. ठगों ने तर्क दिया—“अगर आपने बैंक जाकर विदड्रॉल या ट्रांसफ़र किया तो ब्रांच मैनेजर को बताना मत, वरना पूरे स्टाफ़ को पूछताछ में ले लेंगे.” इस मानसिक दबाव से वे न तो बच्चों से खुलकर बात कर पाए, न ही दोस्तों से सलाह ले सके. कुल मिलाकर 28 दिनों में 97 लाख 60 हज़ार रुपये सात अलग-अलग खातों में पहुँचा दिए गए.
फँसाने के बाद ब्लॉक कॉल कटे, लिंक गायब, तब जागा शक—और पुलिस के पास पहुँची गुहार
महीने के अंतिम सोमवार को अफसर ने जब अगली ‘इंस्टॉलमेंट’ पूछी तो कॉल कट गई. वॉट्सऐप चैट भी ‘डिलीट फॉर एवरीवन’ दिखा रही थी. यहीं से शक को जगह मिली. अगले दिन परिजन को पूरा किस्सा बताया गया. परिवार सीधे पुणे सायबर थाने पहुँचा. पुलिस ने खाते सीज़ कराए, मगर तब तक रकम कई लेयर में घूम कर बाहर जा चुकी थी. शुरुआती पड़ताल में पता चला कि फ्रॉड कॉल आईपी अड्रेस हांगकांग के सर्वर से रूट किया गया था. जिन खातों में पैसे भेजे गए, वे फर्जी डॉक्यूमेंट से खुले थे. पुलिस अब इंटरनेशनल एजेंसियों से संपर्क कर रही है, लेकिन रकम वापस मिल पाना मुश्किल लग रहा है.
सबक जो हर डिजिटल नागरिक को याद रखने चाहिए ताकि अगला शिकार आप न हों
पहला, किसी भी अनजान कॉल पर खुद को ‘सरकारी अधिकारी’ बताकर अगर पैसा मांगता है तो तुरंत कॉल काटें और विभाग की ऑफ़िशियल वेबसाइट से नंबर निकालकर दोबारा पुष्टि करें. दूसरा, पुलिस या कस्टम कभी भी वीडियो कॉल पर ‘डिजिटल हिरासत’ नहीं देता; असल नोटिस काग़ज़ पर आता है. तीसरा, स्क्रीन-शेयर या रिमोट-ऐक्सेस ऐप डाउनलोड करने से पहले दस बार सोचें. चौथा, बैंक ट्रांज़ैक्शन के नाम पर गोपनीयता की शर्त रखने वाला कोई भी व्यक्ति जालसाज़ है. पाँचवाँ, डर लगने पर चुप न रहें; परिवार, दोस्त या सीधे 1930 हेल्पलाइन पर संपर्क करें. याद रखिए, साइबर ठगी में शर्म सबसे बड़ा दुश्मन बन जाती है.
इस घटना ने फिर साबित कर दिया कि तकनीक जितनी ताक़त देती है, उतना ही बड़ा धोखा भी हो सकती है. आज ज़रूरत है डिजिटल सावधानी, सही जानकारी और तर्कपूर्ण सोच की. पुलिस भले ही मामले पर काम कर रही हो, लेकिन असली सुरक्षा हमारी आँखें और समझ ही देती हैं. अगली बार, अगर कोई आपको ‘डिजिटल अरेस्ट’ की धमकी दे, तो न झिझकें, न डरें—सीधे शिकायत दर्ज कराएँ. जागरूक रहिए, सुरक्षित रहिए.
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