राजस्थान के लाल बबलू सिंह का नाम आज पूरे जिले में चर्चा का विषय बन गया है। सात महीने पहले ही उन्होंने जयपुर के पास रहने वाली काजल से शादी रचाई थी। पूरा गांव उस वक्त खुशियों में डूबा था, लेकिन अब जंग की ट्रेनिंग के दौरान शहीद होकर लौटे तो हर आंख नम थी।
परिवार की इकलौती उम्मीद था बबलू सिंह, घर की जिम्मेदारी निभाते हुए देश सेवा का सपना देखा
बबलू सिंह अपने माता-पिता का इकलौता बेटा था। उनकी दो बहनें पहले से ही शादीशुदा हैं। घर में सबसे ज़्यादा जिम्मेदारी उन्हीं के कंधों पर थी। बबलू के पिता मोहन सिंह पिछले 25 वर्षों से रीढ़ की हड्डी की गंभीर बीमारी से जूझ रहे हैं। ऐसे में बबलू ही उनके सहारा था और पूरे घर को संभालता था।
शादी के सात महीने बाद ही ट्रेनिंग में मिला देश के लिए कुर्बान होने का मौका
सात महीने पहले, फरवरी 2025 में बबलू सिंह और काजल की शादी पूरे रीति-रिवाज से हुई थी। शादी के कुछ समय बाद ही भारतीय सेना की ट्रेनिंग में जाने का मौका मिला। बबलू ने अपने परिवार और गांव का नाम रोशन करने की ठान ली थी। पर किसे पता था कि शादी के कुछ महीनों बाद ही देश सेवा करते हुए वह शहीद हो जाएंगे।
गांव ने सैन्य सम्मान के साथ किया अंतिम विदाई, हर तरफ गूंजा ‘अमर रहे शहीद बबलू सिंह’
जब बबलू सिंह की शहादत की खबर गांव पहुँची तो मातम पसर गया। पूरा गांव उनके अंतिम दर्शन को उमड़ पड़ा। सैन्य जवानों ने सैन्य सम्मान के साथ उन्हें विदाई दी। तिरंगे में लिपटी उनकी पार्थिव देह जब गांव पहुंची तो ‘अमर रहे शहीद बबलू सिंह’ के नारों से माहौल गूंज उठा।
समाज से जुड़ी जिम्मेदारियों का हमेशा निभाया फर्ज, जाते-जाते भी मिसाल बन गए राजस्थान के लाल
बबलू सिंह अपने गांव और समाज के लिए हमेशा तत्पर रहते थे। जब भी किसी को कोई जरूरत होती, वे सबसे पहले मदद के लिए आगे आते थे। वे कहते थे, “जो देश के लिए जीता है, वही सही मायने में सच्चा इंसान है।” उनकी बातें आज भी लोगों की जुबान पर हैं। उनकी बहनों ने कहा, “हमें गर्व है कि हमारे भाई ने देश के लिए जान दी।”
शहादत के बाद परिवार की हालत, पिता की बीमारी और अब जिम्मेदारी का टोह
शहादत के बाद बबलू सिंह का परिवार पूरी तरह टूट गया है। बावज़ूद इसके, उनके पिता मोहन सिंह कहते हैं, “मेरा बेटा देश के काम आया, यही सबसे बड़ी बात है।” माँ की आंखों में आंसू तो हैं, लेकिन बेटे की बहादुरी पर गर्व भी। बहनों ने कहा कि अब उन्हें भी अपने भाई की तरह परिवार का सहारा बनना है।
काजल की आँखों में अपनों की यादें, फौजी पति के नाम पर गर्व
शादी के सात महीने बाद ही काजल बेसहारा हो गई। मगर, उन्होंने कहा, “मेरे पति ने जो किया, वह देश के लिए था। मैं हमेशा गर्व करूंगी कि वह देश का सच्चा लाल था।” गांव की महिलाएं भी काजल को सांत्वना देती रहीं और उसे नई हिम्मत देते हुए कहा कि उनके पति की शहादत किसी सम्मान से कम नहीं।
गांव में मनाया गया शहीद दिवस, बच्चों को बताई गई शहादत की कहानी
शहादत के अगले दिन गांव के स्कूल में बच्चों को शहीद बबलू सिंह की वीरता की कहानी सुनाई गई। शिक्षक बोले, “हमारे गांव का बेटा देश के लिए चला गया, हमें उसकी बहादुरी से प्रेरणा लेनी चाहिए।” बच्चों ने भी तिरंगे के आगे फूल अर्जित किए और देशभक्ति की शपथ ली।
राजस्थान के लाल की यादें हमेशा रहेंगी जीवित, गांव के लिए बना प्रेरणा स्रोत
राजस्थान के बबलू सिंह आज भले ही हमारे बीच न हों, लेकिन उनकी यादें और उनकी बहादुरी की कहानी हमेशा गांव में गूंजती रहेगी। उनकी शहादत ने पूरे गांव को एकजुट किया और नौजवानों को देश सेवा का जज़्बा दिया। बबलू सिंह का नाम संपूर्ण राजस्थान में गौरव से लिया जाता रहेगा।