प्रेमानंद पर रामभद्राचार्य की टिप्पणी से संत समाज भड़का

स्वामी रामभद्राचार्य और संत प्रेमानंद महाराज विवाद ने संत समाज में गहरी बहस छेड़ दी है, जहाँ विद्वत्ता बनाम भक्ति का मुद्दा धर्म और समाज की एकता को प्रभावित कर रहा है।

प्रेमानंद पर रामभद्राचार्य की टिप्पणी से संत समाज भड़का

प्रेमानंद महाराज पर रामभद्राचार्य का बयान, संत समाज में आक्रोश और बढ़ती बहस

हाल ही में आध्यात्मिक गुरु स्वामी रामभद्राचार्य ने लोकप्रिय संत प्रेमानंद महाराज पर एक बयान दिया, जिससे संत समाज में गहरा असंतोष फैल गया है। उन्होंने प्रेमानंद जी को न तो विद्वान माना और न ही चमत्कारी। साथ ही उन्होंने चुनौती दी कि यदि प्रेमानंद जी सचमुच चमत्कारी हैं तो वे उनके सामने संस्कृत श्लोकों का अर्थ बताकर दिखाएँ।यह टिप्पणी सोशल मीडिया और धार्मिक हलकों में आग की तरह फैल गई और देखते ही देखते संत समाज का बड़ा वर्ग इस बयान के विरोध में खड़ा हो गया।

संत समाज की प्रतिक्रिया

रामभद्राचार्य के इस बयान को लेकर देशभर के संतों और धार्मिक गुरुओं ने आपत्ति जताई है। कई संतों का कहना है कि यह बयान अनावश्यक विवाद को जन्म देता है और सनातन धर्म की एकता पर प्रश्नचिह्न लगाता है।

महंत राजू दास (हनुमान गढ़ी मंदिर):
उन्होंने कहा कि रामभद्राचार्य और प्रेमानंद महाराज दोनों ही महान संत हैं। ऐसे बयान समाज को बांटते हैं और इन्हें टाला जाना चाहिए।

दिनेश फलाहारी महाराज:
उनके अनुसार, प्रेमानंद जी दिव्य और महान संत हैं। रामभद्राचार्य का यह बयान दुर्भावना से भरा है और एक गंभीर चिंता का विषय है।

महंत केशव स्वरूप ब्रह्मचारी (अखिल भारतीय संत समिति):
उनका मानना है कि संस्कृत का जानकार होना और चमत्कार करना दोनों अलग-अलग बातें हैं। केवल विद्वत्ता से किसी की आध्यात्मिक ऊँचाई नहीं आंकी जा सकती।

आचार्य मधुसूदन महाराज:
उन्होंने कहा कि प्रेमानंद जी को विद्वान नहीं कहना या उनकी भक्ति को कमतर आंकना पूरी तरह निराधार और निंदनीय है।

स्वामी चिदंबरानंद सरस्वती (महानिर्वाणी अखाड़ा):
उनका कहना है कि रामभद्राचार्य अक्सर विवादास्पद बयान देते रहते हैं। यह उनकी आदत बन चुकी है और उन्हें इस पर संयम रखना चाहिए।

सीताराम दास महाराज:
उन्होंने कहा कि यह बयान संकीर्ण मानसिकता को दर्शाता है। प्रेमानंद महाराज लाखों युवाओं के प्रेरणास्रोत हैं और इस तरह का बयान उनकी लोकप्रियता पर आघात है।

रामभद्राचार्य का पक्ष

आलोचना के बीच रामभद्राचार्य ने यह साफ किया कि उनका उद्देश्य प्रेमानंद महाराज का अपमान करना नहीं है और न ही उनके प्रति कोई व्यक्तिगत द्वेष है। लेकिन उन्होंने यह भी स्पष्ट कहा कि लोकप्रियता को चमत्कार नहीं कहा जा सकता।

उनके अनुसार: असली चमत्कार वही है जो शास्त्रीय चर्चा में सहज हो। संस्कृत श्लोकों का अर्थ ठीक से बता सके।गहरी विद्वत्ता और शास्त्रज्ञान के साथ भक्ति को प्रस्तुत करे।रामभद्राचार्य ने प्रेमानंद जी की लोकप्रियता को "क्षणभंगुर" करार दिया और कहा कि भजन करना अच्छी बात है, लेकिन उसे चमत्कार कहना गलत है।

भक्तों और समाज की प्रतिक्रिया

इस विवाद ने न सिर्फ संत समाज को बांट दिया है, बल्कि भक्तों के बीच भी बहस छेड़ दी है। प्रेमानंद जी के समर्थकों का कहना है कि उनकी सरलता, सहजता और भक्तिभाव ही उनके असली चमत्कार हैं।कई लोग मानते हैं कि भक्ति और संस्कृत ज्ञान का कोई सीधा संबंध नहीं है।वहीं, कुछ लोग रामभद्राचार्य की बात को सही ठहराते हुए कहते हैं कि किसी संत का मूल्यांकन उनकी विद्वत्ता और शास्त्रज्ञान से ही होना चाहिए।

सनातन समाज पर असर

इस विवाद ने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या संत समाज की आंतरिक मतभिन्नताएँ सार्वजनिक तौर पर सामने आनी चाहिए?एक वर्ग का मानना है कि ऐसे बयान सनातन धर्म की एकता और गरिमा को नुकसान पहुँचाते हैं।दूसरी ओर, कुछ लोग इसे स्वस्थ बहस मानते हैं, जो भक्ति और ज्ञान के बीच संतुलन खोजने की दिशा में मददगार हो सकती है।

 

प्रेमानंद महाराज पर रामभद्राचार्य ने क्या बयान दिया?
रामभद्राचार्य ने कहा कि प्रेमानंद जी न तो विद्वान हैं और न ही चमत्कारी। उन्होंने उन्हें संस्कृत श्लोकों का अर्थ बताने की चुनौती भी दी।
संत समाज ने इस बयान पर कैसी प्रतिक्रिया दी?
संत समाज के कई प्रमुख संतों ने इसे दुर्भावनापूर्ण और विवाद उत्पन्न करने वाला बयान बताया। उन्होंने कहा कि इससे सनातन धर्म की एकता पर असर पड़ सकता है।
भक्तों की प्रतिक्रिया क्या रही?
प्रेमानंद जी के समर्थकों का कहना है कि उनकी सरलता, सहजता और भक्ति ही उनका चमत्कार है। वहीं, कुछ लोग रामभद्राचार्य की विद्वत्ता संबंधी राय को सही मानते हैं।
क्या रामभद्राचार्य का उद्देश्य प्रेमानंद महाराज का अपमान करना था?
रामभद्राचार्य ने कहा कि उनका कोई व्यक्तिगत द्वेष नहीं है। उनका मानना है कि असली चमत्कार विद्वत्ता और शास्त्रज्ञान में है, न कि लोकप्रियता में।
इस विवाद का सनातन समाज पर क्या असर पड़ा?
विवाद ने संत समाज और भक्तों को बाँट दिया है। एक वर्ग इसे सनातन धर्म की एकता के लिए हानिकारक मानता है, तो दूसरा इसे स्वस्थ बहस बताता है।