Rare Earth Minerals पर चीन की पकड़ और भारत के सामने चुनौती
आज की दुनिया तकनीक पर टिकी हुई है और तकनीक के इस दौर में रेयर अर्थ मिनरल्स की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण है। इन खनिजों का इस्तेमाल मोबाइल फोन, कंप्यूटर, इलेक्ट्रिक वाहन, सोलर पैनल, विंड टर्बाइन और यहां तक कि मिसाइल और रक्षा उपकरणों में भी किया जाता है। यानी कहा जा सकता है कि यह मिनरल्स आधुनिक जीवन की रीढ़ हैं।
रेयर अर्थ मिनरल्स को इतना जरूरी इसलिए माना जाता है क्योंकि इनसे बिना आधुनिक तकनीक की कल्पना करना मुश्किल है। ये खनिज न सिर्फ अर्थव्यवस्था बल्कि किसी भी देश की सुरक्षा व्यवस्था से भी जुड़े हैं। यही वजह है कि इन पर पकड़ रखने वाला देश पूरी दुनिया पर दबाव बनाने में सक्षम हो जाता है।
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चीन ने कैसे बनाई अपनी पकड़
दुनिया के रेयर अर्थ मिनरल्स उत्पादन में सबसे बड़ा हिस्सा चीन का है। पिछले कई दशकों से चीन ने इस क्षेत्र में लगातार निवेश किया और खनन से लेकर प्रोसेसिंग तक पूरी सप्लाई चेन पर कब्जा कर लिया। नतीजा यह हुआ कि आज दुनिया का लगभग 60 से 70 प्रतिशत रेयर अर्थ मिनरल्स उत्पादन चीन के हाथ में है।
चीन ने न सिर्फ अपने यहां खनिजों का दोहन किया बल्कि दूसरे देशों से भी रेयर अर्थ मिनरल्स खरीदकर उसे प्रोसेस करके सप्लाई करना शुरू किया। इससे दुनिया के ज्यादातर देश चीन पर निर्भर हो गए। जब-जब किसी देश ने चीन के खिलाफ सख्त रुख अपनाया, चीन ने रेयर अर्थ मिनरल्स की सप्लाई रोककर दबाव बनाने की कोशिश की। यह उसकी सबसे बड़ी रणनीति बन चुकी है।
भारत के लिए क्यों है यह खतरा
भारत तकनीक और रक्षा के क्षेत्र में लगातार आगे बढ़ रहा है। इलेक्ट्रिक वाहन उद्योग, सोलर एनर्जी, मोबाइल मैन्युफैक्चरिंग और डिफेंस सेक्टर में भारत तेजी से निवेश कर रहा है। लेकिन इन सभी क्षेत्रों में रेयर अर्थ मिनरल्स की जरूरत है। अगर इन खनिजों पर चीन का कब्जा बना रहेगा, तो भारत को अपनी ज़रूरतों के लिए चीन पर निर्भर रहना पड़ेगा।
यह भारत की आर्थिक और रणनीतिक आज़ादी के लिए खतरा है। अगर भविष्य में चीन और भारत के रिश्ते खराब होते हैं, तो चीन रेयर अर्थ मिनरल्स की सप्लाई रोक सकता है। ऐसे में भारत की तकनीकी प्रगति और रक्षा तैयारियां दोनों प्रभावित हो सकती हैं। यही वजह है कि इस विषय को लेकर देश में चिंता बढ़ रही है।
भारत में रेयर अर्थ मिनरल्स की संभावनाएं
भारत के पास भी रेयर अर्थ मिनरल्स के भंडार हैं। खासकर केरल, आंध्र प्रदेश, झारखंड और ओडिशा में इन खनिजों की अच्छी संभावना मानी जाती है। भारतीय वैज्ञानिक और भूवैज्ञानिक मानते हैं कि अगर इन खनिजों की सही तरीके से खोज और खनन किया जाए, तो भारत अपनी जरूरतों को पूरा कर सकता है।
लेकिन समस्या यह है कि भारत अभी तक इन खनिजों के खनन और प्रोसेसिंग में उतना मजबूत नहीं है। तकनीक और निवेश की कमी के कारण भारत अपने संसाधनों का पूरा इस्तेमाल नहीं कर पा रहा है। इस क्षेत्र में निजी और सरकारी दोनों स्तर पर बड़े बदलाव की जरूरत है।
भारत को क्या कदम उठाने होंगे
भारत को अब यह समझना होगा कि रेयर अर्थ मिनरल्स सिर्फ खनिज नहीं बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा और आत्मनिर्भरता से जुड़े संसाधन हैं। भारत को सबसे पहले अपने भंडारों की खोज को तेज करना होगा। इसके साथ ही खनन और प्रोसेसिंग की आधुनिक तकनीक अपनानी होगी।
सरकार को इस क्षेत्र में प्राइवेट कंपनियों को प्रोत्साहित करना चाहिए और विदेशी तकनीक का इस्तेमाल करना चाहिए। इसके अलावा भारत को दूसरे देशों से भी साझेदारी करनी होगी, ताकि सप्लाई पर चीन का दबाव न रहे। अगर भारत इस दिशा में गंभीर कदम उठाता है तो आने वाले वर्षों में वह खुद को चीन की पकड़ से बाहर निकाल सकता है।
वैश्विक राजनीति और रेयर अर्थ मिनरल्स का खेल
रेयर अर्थ मिनरल्स अब केवल खनिज नहीं बल्कि वैश्विक राजनीति का हिस्सा बन चुके हैं। अमेरिका और यूरोप लंबे समय से इस बात से चिंतित हैं कि चीन इन खनिजों का इस्तेमाल दबाव बनाने के लिए करता है। यही कारण है कि कई देश अब मिलकर चीन के विकल्प खोजने की कोशिश कर रहे हैं।
भारत इस वैश्विक रणनीति का हिस्सा बन सकता है। अगर भारत अपने संसाधनों का उपयोग ठीक से करता है और दूसरे देशों के साथ मिलकर काम करता है तो यह न सिर्फ अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करेगा बल्कि वैश्विक स्तर पर भी बड़ी भूमिका निभा सकता है।
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