दुनिया की राजनीति अक्सर बंद दरवाज़ों के पीछे तय होती है और फिर अचानक खबरों में धमाका करती है। इन दिनों तुर्की के अखबारों में एक बड़ी हलचल की खबर छपी है—रूस अब तुर्की से S-400 एयर डिफेंस सिस्टम वापस ले सकता है। यह वही सिस्टम है जिसने नाटो के बीच फूट डलवा दी थी और अमेरिका को गुस्से में तुर्की पर कार्रवाई करनी पड़ी थी। जब अंकारा ने रूस से यह सौदा किया था, तो वॉशिंगटन ने साफ कह दिया था कि तुर्की को इसके बदले भारी कीमत चुकानी होगी। कीमत यह थी कि तुर्की को अमेरिका के सबसे महत्वाकांक्षी फाइटर जेट प्रोजेक्ट F-35 से बाहर कर दिया गया। अब मामला और दिलचस्प हो गया है क्योंकि रूस इस सिस्टम को भारत की ओर मोड़ने की तैयारी कर रहा है।
भारत के लिए यह सौदा क्यों बन सकता है सुरक्षा ढाल
भारत लंबे समय से S-400 सिस्टम पर भरोसा करता आया है। कुछ रेजिमेंट पहले ही भारत को मिल चुकी हैं और उन्हें सीमा पर तैनात भी किया गया है। यह सिस्टम इतना ताकतवर है कि दुश्मन के जहाज या मिसाइलें सैकड़ों किलोमीटर दूर से ही इसका शिकार बन सकती हैं। अगर रूस वाकई तुर्की से यह सिस्टम वापस लेकर भारत को सप्लाई करता है तो यह हमारे लिए बोनस की तरह होगा। भारत को न सिर्फ समय से पहले अतिरिक्त यूनिट्स मिल जाएंगी बल्कि सीमा पर चीन और पाकिस्तान दोनों के लिए खतरे का स्तर और बढ़ जाएगा। रक्षा विशेषज्ञ कहते हैं कि यह डील भारत की सुरक्षा रणनीति को अगले स्तर पर ले जाएगी और वायुसेना की क्षमता दोगुनी हो जाएगी।
अमेरिका और रूस की खींचतान में उलझा तुर्की
यह पूरा खेल सिर्फ हथियारों का नहीं है, बल्कि अमेरिका और रूस की पुरानी प्रतिद्वंद्विता का हिस्सा है। अमेरिका ने तुर्की को साफ चेतावनी दी थी कि S-400 मत लो, वरना F-35 प्रोजेक्ट से बाहर कर दिए जाओगे। तुर्की ने उस समय रूस पर भरोसा दिखाया, लेकिन नतीजा यह हुआ कि उसे आर्थिक और सैन्य दोनों मोर्चों पर झटका झेलना पड़ा। अब हालात ऐसे हैं कि तुर्की न तो अमेरिका को पूरी तरह नाराज़ कर सकता है और न रूस को छोड़ सकता है। रूस ने चालाकी दिखाते हुए सिस्टम वापस लेने का रास्ता ढूंढा है और उसे भारत की ओर भेजकर अमेरिका को भी यह संदेश दे दिया है कि उसकी ताकत अब भी बरकरार है।
पाकिस्तान के लिए क्यों बजने लगी खतरे की घंटी
पाकिस्तान की सबसे बड़ी मुश्किल यह है कि उसकी वायुसेना पहले ही भारत के मुकाबले पीछे है। चीन से हथियार लेकर उसने कई बार संतुलन बनाने की कोशिश की, लेकिन असलियत यह है कि पाकिस्तान तकनीक और संसाधनों के मामले में बहुत पीछे है। अगर भारत को और S-400 मिलते हैं तो इस्लामाबाद की बेचैनी और बढ़ जाएगी। पाकिस्तान जानता है कि यह सिस्टम उसके किसी भी हवाई हमले को बीच रास्ते ही खत्म कर सकता है। ऐसे में न सिर्फ पाकिस्तान की रणनीति कमजोर पड़ेगी बल्कि अमेरिका और रूस के बीच चल रहे इस खेल में पाकिस्तान का महत्व भी घट जाएगा। साफ है कि इस डील से पाकिस्तान का दोस्ती वाला समीकरण भी दबाव में आएगा।
भारत की रणनीतिक बढ़त और आने वाले साल
भारत के लिए यह मौका बेहद अहम है। चीन और पाकिस्तान दोनों ही मोर्चों पर सुरक्षा चुनौती लगातार बनी हुई है। ऐसे में अगर S-400 की अतिरिक्त यूनिट भारत को मिलती है तो यह हमारे लिए सुरक्षा ढाल साबित होगी। लद्दाख से लेकर अरुणाचल तक और राजस्थान से लेकर पंजाब की सीमा तक—हर जगह इसकी तैनाती से दुश्मन की कोई भी हरकत पकड़ी जा सकती है। रूस के साथ भारत का पुराना भरोसेमंद रिश्ता इस सौदे को और आसान बना देता है। आने वाले सालों में भारत की स्थिति न सिर्फ दक्षिण एशिया बल्कि पूरे एशिया-प्रशांत क्षेत्र में मजबूत होगी। यही वजह है कि इस सौदे को सिर्फ रक्षा समझौता मानना गलत होगा। यह भारत की बढ़ती रणनीतिक ताकत और विश्व राजनीति में उसकी अहमियत का सबूत भी है।