मध्य प्रदेश के सलकनपुर आश्रम में हर साल की तरह इस बार भी शरद पूर्णिमा का भव्य उत्सव मनाया गया। पूरा आश्रम दीपों और फूलों से सजा था, वातावरण में मंत्रों की गूंज थी। भक्तों की भीड़, संत समाज की उपस्थिति और खास तौर पर जैविक कृषि और नर्मदा सेवा के लिए सम्मान समारोह भी रखा गया था। पूरी शाम एक अलग सुकून दे रही थी, मगर इसी उत्सव के मध्य एक ऐसा पल भी आया जब माहौल थोड़ा बदल गया।
सीएम मोहन यादव की गैरमौजूदगी ने सबको चौंकाया
हर कोई मुख्यमंत्री मोहन यादव का इंतजार कर रहा था। लोग उम्मीद कर रहे थे कि वे इस खास मौके पर आएंगे और संतों का आशीर्वाद लेंगे। मगर सीएम नहीं आए, उनकी जगह संदेश पहुंचा कि वे किसी जरूरी कारण से शामिल नहीं हो पा रहे हैं। इसी वजह से आश्रम के मुख्य संत उत्तम स्वामी महाराज नाराज हो गए। उन्होंने खुलकर मंच से बताया कि मुख्यमंत्री से इस मौके पर उनकी उम्मीद थी, लेकिन वह नहीं आए। इससे माहौल थोड़ा गंभीर हो गया।
मुख्यमंत्री ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए मांगी क्षमा
माहौल को शांत करने के लिए मुख्यमंत्री मोहन यादव ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से संतों और उपस्थित लोगों से क्षमा मांगी। उन्होंने दिल से कहा कि वे किसी भी तरह की गलती के लिए माफी चाहते हैं। मोहन यादव ने संतों के प्रति अपना आदर भी जताया। उन्होंने कहा कि वह आश्रम और वहां की परंपरा का सम्मान करते हैं, भविष्य में कभी भी ऐसे किसी आयोजन में ज़रूर उपस्थित रहेंगे। इस जनसंवाद के बाद माहौल फिर से हल्का हो गया और कार्यक्रम पहले की तरह आगे बढ़ा।
महोत्सव में जैविक कृषि और नर्मदा सेवा पुरस्कार भी बांटे गए
शरद पूर्णिमा महोत्सव महज एक धार्मिक आयोजन नहीं था बल्कि यहां समाज सेवा और संरक्षण के कार्यों को भी सराहा गया। ऐसे नागरिक और किसान जिन्होंने जैविक खेती में उत्कृष्ट योगदान दिया, उन्हें सम्मानित किया गया। इसके अलावा नर्मदा नदी की सेवा के लिए भी कई लोगों को पुरस्कार वितरित किए गए। मंच पर सेवा भावना को बढ़ावा देने की बातें की गईं और सभी को नियम, पर्यावरण, और सामूहिक भलाई के लिए आगे आने के लिए प्रेरित किया गया।
संतों की नाराजगी और फिर बनी सहमति की कहानी
संत समाज का अपनी परंपराओं और मर्यादाओं के प्रति सम्मान होता है। जब मुख्यमंत्री जैसे बड़े नेता अनुपस्थित होते हैं, तो संतों को लगता है कि मान-सम्मान में कमी आई है। उत्तम स्वामी महाराज की नाराजगी स्वाभाविक थी, लेकिन मुख्यमंत्री का विनम्र प्रायश्चित, उनकी सरल और साफ भाषा ने माहौल बदल दिया। अब संतों ने भी माहौल को सामान्य बनाने में योगदान दिया और आयोजक प्रसन्न नज़र आए।
मुख्यमंत्री के माफी मांगने के बाद कैसा था आश्रम का माहौल
मुख्यमंत्री की माफी और बातचीत के बाद हर चेहरे पर संतोष झलक रहा था। बच्चों से लेकर बुजुर्ग सभी ने महसूस किया कि आपसी संवाद से बड़ी से बड़ी गलतफहमी दूर हो जाती है। संत समाज ने भी संदेश दिया कि हर किसी से संवाद जरूरी है, चाहे वह कितना भी बड़ा पद पर क्यों न हो। सभी ने एक स्वर में सेवा और समाज के लिए अपना योगदान देने की बात कही।
इस किस्से से समाज को क्या सिखने को मिला?
इस पूरे वाकये ने समाज को यह सिखाया कि संवाद और क्षमा की ताकत बड़ी होती है। किसी भी गलतफहमी या नाराजगी को सुलझाने के लिए बातचीत सबसे अच्छा रास्ता है। माफी मांगने में ही प्रतिष्ठा है, और इससे समाज में प्रेम, विश्वास और सहयोग की भावना बनी रहती है। मुख्यमंत्री मोहन यादव के व्यवहार ने एक उदाहरण प्रस्तुत किया, और अब सभी को आगे बढ़कर एक-दूसरे की भावनाओं का सम्मान करने की प्रेरणा मिली है।
संवाद और क्षमा से ही रिश्ता बनता है मजबूत
सलकनपुर आश्रम का यह शरद पूर्णिमा महोत्सव इस बार कुछ अलग रहा। मुख्यमंत्री मोहन यादव के माफीनामे और संत समाज की सच्चाई ने हर किसी को सोचने पर मजबूर किया कि रिश्ता और समाज संवाद और क्षमा के बिना अधूरा है। समाज का हर वर्ग अगर एक-दूसरे की भावनाओं का सम्मान करे, तो बड़े से बड़ा मनमुटाव भी छोटी बात बन जाता है।
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सीएम की अनुपस्थिति पर माफी मांगना कितना उचित?