AI की जंग चीन बनाम अमेरिका, किसका भविष्य मज़बूत?
सैम अल्टमैन ने साफ कहा कि चीन एआई में तेजी से आगे बढ़ रहा है। सिर्फ चिप्स की आपूर्ति रोकने से उसे नहीं रोका जा सकता। असली लड़ाई खुलेपन बनाम पाबंदी की है।
चीन का AI दबदबा, OpenAI को भी खोलने पड़े दरवाज़े
कुछ समय पहले सैन फ्रांसिस्को में एक छोटी-सी बैठक हो रही थी। सामने थे OpenAI के प्रमुख सैम अल्टमैन और कुछ चुनिंदा पत्रकार। माहौल हल्का था, लेकिन अचानक अल्टमैन ने एक बात कही जिसने सबको चुप कर दिया। उन्होंने कहा – “मुझे चीन की चिंता है।”
उनका इशारा उस तेज़ रफ्तार की ओर था, जिसमें चीन कृत्रिम बुद्धिमत्ता यानी एआई में आगे बढ़ रहा है। अल्टमैन का मानना है कि अमेरिका यह सोचकर बड़ी गलती कर रहा है कि केवल चिप्स या मशीनों की आपूर्ति रोककर चीन की प्रगति धीमी की जा सकती है। उन्होंने साफ शब्दों में कहा – “अगर आप एक दरवाज़ा बंद करेंगे, तो चीन दूसरा दरवाज़ा खोल लेगा।”
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असल में चीन ने दुनिया को हैरान कर दिया है। उसकी कंपनियाँ बहुत ही कम बजट में ऐसे-ऐसे एआई मॉडल बना रही हैं, जिनके लिए पश्चिमी देशों को कई गुना अधिक पैसा और समय लगाना पड़ता है। DeepSeek नामक एक कंपनी ने मात्र कुछ ही मिलियन डॉलर में ऐसा मॉडल बना दिया, जो कई मामलों में अमेरिका और यूरोप की महंगी कंपनियों की बराबरी करता है। और यही नहीं, चीन इन मॉडलों को ओपन-सोर्स बनाता है, यानी कोई भी उनका इस्तेमाल कर सकता है। यही उसका असली हथियार है।
इस दौड़ ने OpenAI जैसी बड़ी अमेरिकी कंपनी को भी उलझन में डाल दिया। कई सालों तक वह अपने मॉडल को गुप्त रखती थी। लेकिन जैसे-जैसे चीन के मॉडल दुनिया भर में मशहूर होते गए, उसे डर हुआ कि अगर यही चलता रहा, तो लोग OpenAI को नज़रअंदाज़ करने लगेंगे। नतीजा यह हुआ कि अगस्त 2025 में कंपनी ने पहली बार अपने ओपन-वेट मॉडल सबके लिए खोल दिए। अल्टमैन ने खुद माना कि यह फैसला लेने में चीन का दबाव सबसे बड़ी वजह था।
यह कहानी सिर्फ दो देशों की तकनीकी भिड़ंत की नहीं है। यह भविष्य के राजनीति और ताकत के नक्शे की कहानी है। अगर चीन अपने दम पर आगे बढ़ गया, तो उसकी राजनीतिक और आर्थिक ताकत भी बहुत बढ़ जाएगी। वहीं, अमेरिका का रुख अब तक ज्यादातर रोकथाम और पाबंदी वाला रहा है। सवाल ये है कि क्या यह तरीका सही है?
इतिहास हमें सिखाता है कि नई खोजों पर रोक लगाने से वे रुकती नहीं हैं, बल्कि और तेज़ी से बढ़ती हैं। शायद यही हाल एआई का भी हो। अमेरिका जहां दीवारें खड़ी कर रहा है, वहीं चीन उन दीवारों के ऊपर से रास्ता ढूँढ रहा है।
अल्टमैन की चेतावनी दरअसल इसी सच को उजागर करती है। यह केवल तकनीक की रेस नहीं है, बल्कि खुलेपन और बंदिशों की जंग है। अब फैसला दुनिया को करना है कि वह किस रास्ते पर जाएगी – खुले और साझा भविष्य की तरफ या पाबंदी और डर के साये में थमे हुए कल की ओर।
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