संबलपुर तहसीलदार रिश्वत का यह ताज़ा मामला न सिर्फ ओडिशा बल्कि पूरे देश में चर्चा का विषय बन गया है। जिस अफ़सर ने कभी कठिन सिविल सर्विस परीक्षा में प्रथम स्थान पाया था, वही आज रिश्वत लेते पकड़ा गया। यह घटना बताती है कि पद और प्रतिष्ठा अगर ईमानदारी का साथ न दें तो प्रतिष्ठा पल भर में राख हो जाती है।
परीक्षा के शिखर से सरकारी कुर्सी तक का सफर
बामड़ा के इस युवा अधिकारी का सफर किसी प्रेरक कथा से कम नहीं था। मध्यमवर्गीय परिवार में जन्में इस छात्र ने बचपन से ही किताबों से दोस्ती कर ली थी। गाँव के एक छोटे स्कूल से निकल कर उसने जिला मुख्यालय के कॉलेज में दाख़िला लिया। वहाँ उसने दिन-रात मेहनत करके सिविल सर्विस का सपना सँजोया। कठिन प्रतिद्वंद्विता में उसने टॉप किया तो पूरा क्षेत्र खुशी से झूम उठा। लोग उसे देखते और अपने बच्चों को उसका उदाहरण देकर प्रेरित करते। लेकिन सरकारी कुर्सी की असली परीक्षा तो तैनाती के बाद शुरू होती है।
रिश्वतखोरी का जाल कैसे बिछा
पदभार सँभालने के कुछ महीनों बाद ही तहसीलदार पर काम जल्दी कराने के बदले पैसों की माँग के आरोप सुनाई देने लगे। पहले लोग यह मानने को तैयार नहीं थे कि एक मेधावी अफ़सर ऐसे रास्ते चुन सकता है। धीरे-धीरे शिकायतों की संख्या बढ़ती गई। बताया जाता है कि उसने कार्यालय में कुछ भरोसेमंद कर्मचारियों का एक अनौपचारिक घेेरा बना लिया था। फ़ाइलें तभी आगे बढ़ती थीं जब “चाय-पानी” का संकेत मिल जाता था। यह संकेत कभी नकद तो कभी ऑनलाइन लेन-देन के रूप में सामने आता। आम किसान और छोटे दुकानदार, जिन्हें जमीन संबंधी क़ागज़ात की तुरंत ज़रूरत होती थी, सबसे पहले शिकार बने।
छापेमारी में मिली नकदी ने उड़ा दिए होश
राज्य सतर्कता विभाग को मिले पक्के सुराग के बाद स्पेशल टीम ने जाल बिछाया। गुरुवार की दोपहर शिकायतकर्ता को सीलबंद नोटों के साथ तहसील कार्यालय भेजा गया। जैसे ही अधिकारी ने पैसे हाथ में लिये, टीम ने भीतर घुसकर उसे रंगे हाथों पकड़ लिया। प्राथमिक पूछताछ के बाद उसी शाम उसके सरकारी क्वार्टर और पैतृक घर पर भी छापे पड़े। अलमारियों, बैगों और यहाँ तक कि रसोई में रखे डिब्बों से भी नोटों की गड्डियाँ निकल आईं। जब गिनती पूरी हुई तो रकम लाखों रुपये तक पहुँच गई। पास-पड़ोस के लोग अवाक् रह गये; किसी ने नहीं सोचा था कि ईमानदारी का पाठ पढ़ाने वाला युवक इतनी तेज़ी से लालच के अँधेरे में डूब जाएगा।
भ्रष्टाचार के खिलाफ राज्य की मुहिम
ओडिशा सरकार ने हाल के वर्षों में भ्रष्टाचार पर नकेल कसने के लिए कई सख़्त कदम उठाए हैं। डिजिटल फाइल ट्रैकिंग, समयबद्ध सेवा गारंटी और ऑनलाइन शिकायत पोर्टल जैसे उपाय लागू किये गये हैं। फिर भी सिस्टम में छेद ढूँढ़ने वाले रास्ता बना ही लेते हैं। अधिकारियों का कहना है कि एक ही घटना सबक बना सकती है, बशर्ते आरोपी पर त्वरित और पारदर्शी कार्रवाई हो। इस केस में भी सतर्कता विभाग ने अदालत से सात दिन की हिरासत माँगी है ताकि पैसों के स्रोत और नेटवर्क का पता चल सके।
इलाके में फैली मायूसी और गुस्सा
बामड़ा और आसपास के गाँवों में लोग इस खबर पर दुख के साथ-साथ गुस्सा भी जता रहे हैं। किसान संघ के नेता का कहना है, “हमने सोचा था कि पढ़ा-लिखा अफ़सर आएगा तो दफ्तर में सुधार होगा, लेकिन यहाँ तो हालात बद से बदतर हो गये।” स्कूल के उस पुराने शिक्षक ने, जिसने कभी छात्र की लगन देखकर अतिरिक्त किताबें दी थीं, आज लज्जा से सिर झुका लिया। कई युवाओं ने सोशल मीडिया पर लम्बे-लम्बे पोस्ट लिखकर पूछा कि यदि शीर्ष रैंक वाला अफ़सर भी भ्रष्ट हो सकता है तो वे किससे उम्मीद रखें।
एक उदाहरण और एक चेतावनी
हर बड़ी घटना अपने पीछे सबक छोड़ जाती है। इस कहानी का पहला सबक यह है कि परीक्षा की सफलता चरित्र की गारंटी नहीं है। दूसरा सबक यह कि तंत्र तभी बदलेगा जब जनता जागरूक रहेगी और हर अनियमितता पर आवाज़ उठाएगी। सतर्कता टीम ने जिस तरह कैमरे, सीलबंद नोट और डिजिटल प्रमाण जुटाए, वह बताता है कि तकनीक के दौर में भ्रष्टाचार छिपाना आसान नहीं रहा।
यह मामला उन हज़ारों ईमानदार कर्मियों के लिए भी राहत है जो बिना रिश्वत काम करते हैं। उन्हें अब कहने का अवसर मिला है कि व्यवस्था में गड़बड़ी पकड़ी जा सकती है, बशर्ते शिकायत करने वाला डरे नहीं। अंत में, समाज को यह समझना होगा कि ईमानदारी सिर्फ भाषण का विषय नहीं, बल्कि रोज़मर्रा के आचरण में दिखने वाली चीज़ है। अगर एक अफ़सर की गिरफ़्तारी से छोटे किसान की फ़ाइल बिना घूस आगे बढ़ने लगे, तो यह गिरफ्तारी वाकई सार्थक होगी।
आगे क्या होगा?
कानूनी प्रक्रिया के तहत अब चार्जशीट तैयार होगी। अदालत में साबित हो जाने पर तहसीलदार को निलंबन, फ़र्ज़ी कमाई की वसूली और लंबी सज़ा तक का सामना करना पड़ सकता है। विभागीय कार्रवाई के बाद उसकी सरकारी सेवाएँ भी समाप्त की जा सकती हैं। इस बीच राज्य सरकार ने सभी जिलों को निर्देश दिया है कि वे अपने-अपने राजस्व कार्यालयों की आकस्मिक जाँच कराएँ। जिले के कलेक्टर ने भरोसा दिलाया है कि पीड़ित जनता को न्याय दिलाने में कोई कोताही नहीं होगी।
लेकिन कहानी यहीं नहीं रुकती
बामड़ा के तहसीलदार की गिरफ्तारी ने शिक्षा, सफलता और नैतिकता के बीच की खाई को उजागर कर दिया है। यह घटना बताती है कि असली परीक्षा पद पाकर शुरू होती है, और वहाँ फेल होने पर डिग्री भी धूल बन जाती है। अब देखना यह है कि समाज, सरकार और भविष्य के अधिकारी इस चेतावनी को कितनी गंभीरता से लेते हैं। अगर हम सबक सीख लें, तो शायद कल किसी और बच्चे को अपने हीरो की तस्वीर दीवार से उतारनी न पड़े।