महाराष्ट्र के संभाजीनगर जिले में एक दर्दनाक घटना सामने आई है जिसने पूरे इलाके को हिला दिया है। खेत का पंचनामा करने पहुंचे अधिकारियों के सामने ही एक किसान ने अपनी जान दे दी। जानकारी के अनुसार, अधिकारियों ने जब किसान से बात की तो कथित रूप से उसे डांट दिया। यह बात किसान को इतनी बुरी लगी कि उसने पास के कुएं में छलांग लगाकर आत्महत्या कर ली। यह घटनास्थल पर मौजूद सभी लोगों के लिए किसी सदमे से कम नहीं था। गांव के लोगों ने बताया कि किसान अपने परिवार का सहारा था और पिछले कई दिनों से खेती की समस्याओं से जूझ रहा था। जिस वक्त अधिकारी खेत का पंचनामा करने आए, उस समय किसान की उम्मीद थी कि उसे राहत मिलेगी, लेकिन हालात उल्टे हो गए। गांव वालों ने कुएं से शव बाहर निकालने में पुलिस की मदद की। इस घटना के बाद गांव में भारी संख्या में लोग जमा हो गए। हर कोई यही कह रहा था कि अगर अधिकारियों ने किसान से सामान्य भाषा में बात की होती तो शायद यह बड़ा कदम नहीं उठाया जाता। खेत और मेहनतकश जिंदगी से जुड़े लोग इस घटना को गहराई से महसूस कर रहे हैं। यह हादसा पूरे संभाजीनगर जिले के लिए चेतावनी की तरह है कि किसानों की भावनाओं को समझे बिना उनसे व्यवहार करना कितना खतरनाक हो सकता है।
पंचनामा के दौरान क्या हुआ था
सूत्रों के अनुसार, जिस दिन यह घटना हुई उस दिन अधिकारी सुबह ही संबंधित खेत का पंचनामा करने पहुंचे थे। किसान भी मौके पर मौजूद था और प्रारंभ में सब कुछ सामान्य दिखाई दे रहा था। लेकिन अचानक अधिकारियों और किसान के बीच बातचीत में तल्खी आ गई। मृतक किसान के भाई ने बताया कि अधिकारियों ने उसके भाई को डांट दिया और उसे फटकार लगाई। उनका कहना है कि जब एक किसान हल्की सी बात को भी दिल पर ले लेता है तो ऐसी कठोर भाषा की उम्मीद नहीं की जाती। खेत का पंचनामा करना एक सामान्य प्रक्रिया होती है जिसमें जमीन से जुड़े मामले दर्ज किए जाते हैं और कागजात तैयार किए जाते हैं। लेकिन कई बार इस प्रक्रिया के दौरान किसानों की भावनाओं को हल्के में ले लिया जाता है। मृतक किसान पहले से ही आर्थिक तनाव में था और उसे लगा कि अधिकारी उसकी बातों को महत्व नहीं दे रहे। तभी अचानक उसने कुएं की ओर रुख किया और सभी के सामने छलांग लगा दी। यह दृश्य वहां मौजूद लोगों को हमेशा के लिए दहला गया। अधिकारियों के सामने ही यह कदम उठाना साफ बताता है कि किसान के मन में गहरी निराशा और अपमान की भावना थी।
किसान के परिवार का रो-रो कर बुरा हाल
इस घटना ने किसान के परिवार को तोड़कर रख दिया है। मृतक किसान के भाई ने बताया कि उसका भाई बहुत मेहनती था और खेती ही उसके जीवन का आधार थी। घर में उसके माता-पिता और पत्नी का रो-रोकर बुरा हाल हो गया है। बच्चे बार-बार अपने पिता को पुकार रहे थे जिससे वहां मौजूद हर शख्स की आंखें नम हो गईं। परिवार ने अधिकारियों पर यह आरोप लगाया कि उनकी गलत भाषा और डांट-फटकार ने किसान को आत्महत्या के लिए मजबूर कर दिया। गांव के बड़े-बुजुर्ग भी परिवार के दुख में अपने आंसू रोक नहीं पाए और उन्होंने कहा कि आज के समय में प्रशासन और किसानों के बीच की दूरी और गलतफहमी लगातार बढ़ती जा रही है। किसान पहले से ही कर्ज और आर्थिक दबाव झेल रहे हैं और ऐसे में अगर अधिकारी भी उन्हें सम्मान न दें तो हालात और बिगड़ते हैं। इस मामले ने परिवार को हमेशा के लिए गहरा दर्द दे दिया है और गांव में हर जगह यही चर्चा है कि एक किसान को अपनी जान क्यों गंवानी पड़ी।
गांव वालों की प्रतिक्रिया और गुस्सा
गांव में इस घटना ने आक्रोश और दुख दोनों को जन्म दिया है। लोग मानते हैं कि किसान ने जो कदम उठाया है वह उसकी मजबूरी और अंदरूनी पीड़ा को दिखाता है। ग्रामीणों का कहना है कि कृषि कार्य आसान नहीं है और दिन-रात मेहनत करने वालों को अगर बार-बार अपमान और डांट ही मिले तो उनका मनोबल टूटना तय है। कुछ ग्रामीणों ने प्रशासन के खिलाफ आवाज भी उठाई और यह मांग की कि मामले की जांच होनी चाहिए ताकि आगे कोई भी अधिकारी इस तरह की भाषा या व्यवहार किसानों के साथ न करे। गांव के कई युवाओं ने अफसोस जताया कि मेहनतकश किसान के साथ ऐसा बर्ताव किया गया। उनका कहना है कि अगर सरकार और प्रशासन सही तरीके से किसानों की समस्याएं सुनें और उन्हें हल करें तो इस प्रकार की घटनाओं से बचा जा सकता है। पूरे इलाके में यह घटना लोगों के दिलों को चीर रही है और यह सवाल भी खड़ा कर रही है कि हमारे किसान कब तक अपमान सहेंगे और कब तक ऐसी घटनाएं देखते रहेंगे।
प्रशासन और पुलिस की कार्रवाई
घटना के बाद प्रशासन और पुलिस भी सक्रिय हुई। अधिकारियों ने तुरंत पंचनामा रोक दिया और पुलिस ने गांव आकर मामले की तहकीकात शुरू की। शव को कुएं से निकालकर पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया। पुलिस ने मृतक किसान के भाई और अन्य ग्रामीणों के बयान दर्ज किए। प्रारंभिक जांच में सामने आया कि अधिकारियों से हुई बातचीत के दौरान किसान खुद को अपमानित महसूस कर रहा था। प्रशासन ने फिलहाल जांच के आदेश दे दिए हैं और किसानों से अपील की है कि वे किसी भी तरह की समस्या पर खुलकर प्रशासन से बात करें। लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि केवल अपील से समस्या हल नहीं होगी, सरकार और अधिकारी वर्ग को जमीन पर उतरकर किसानों के साथ सहयोगी की तरह खड़ा होना चाहिए। इस घटना ने एक बार फिर यह दिखा दिया है कि खेती से जुड़े मामलों में संवेदनशीलता बरतना कितनी जरूरी है। अगर प्रशासन सही तरीके और भाषा का इस्तेमाल करे तो किसान आत्महत्या जैसे कदम उठाने से बच सकते हैं। अब देखने वाली बात यह होगी कि इस घटना के बाद अधिकारियों पर कोई कार्रवाई होती है या नहीं और क्या मृतक किसान के परिवार को उचित मुआवजा मिलेगा। फिलहाल परिवार और गांव के लोग शोक में डूबे हुए हैं और इंसाफ की उम्मीद लगाए बैठे हैं।