सासाराम चुनाव में भावनाओं का तूफान, आरजेडी उम्मीदवार की गिरफ्तारी के बाद मां और पत्नी उतर आईं मैदान में
सासाराम की सड़कों पर इन दिनों एक अलग ही नज़ारा है। न कोई बड़ा मंच, न बड़े नेता — बस दो औरतें, जिनके चेहरों पर थकान भी है और उम्मीद भी। एक हैं आरजेडी उम्मीदवार सत्येंद्र साह की बुजुर्ग मां, और दूसरी उनकी पत्नी। दोनों सुबह-सुबह झोला लेकर निकलती हैं, हर दरवाजे पर दस्तक देती हैं, और नरमी से कहती हैं – “हमारे बेटे के लिए वोट करिए।” यह चुनाव अब सिर्फ राजनीति नहीं रहा, यह भावनाओं का युद्ध बन गया है।
सास और बहू एक साथ कर रहीं प्रचार
यह दृश्य सासाराम के लोगों के लिए अजीब भी है, तो प्रेरणादायक भी। सत्येंद्र की गिरफ्तारी के बाद जब परिवार टूटा तो इन दोनों महिलाओं ने गिरकर संभलना सीखा। बुजुर्ग मां, जिनकी उम्र सत्तर के पार है, के चेहरे पर हर लकीर एक कहानी कहती है। वह कहती हैं – “हमारे बेटे को जनता समझेगी। मैं अब बूढ़ी जरूर हूं, लेकिन वोट मांगना नहीं छोड़ूंगी।” साथ चलती बहू, जो सिर पर पल्लू रखे हल्की आवाज़ में कहती हैं – “हम जनता के द्वार जा रहे हैं, सच की उम्मीद अभी बाकी है।”
गांव-गांव पहुंची सादगी भरी लड़ाई
दोनों महिलाएं पूरे इलाके में घूम रही हैं। कभी धूल भरी सड़क पर, तो कभी खेतों के किनारे से। लोग देखते हैं और ठहर जाते हैं। कुछ लोग पानी देते हैं, कुछ चाय। “हमारे बेटे का नाम मत भूलना,” मां कहती हैं और आगे बढ़ जाती हैं। बुजुर्ग हाथ कांपते जरूर हैं, पर इरादा कितना मजबूत है, यह देखकर हर कोई सलाम करता है। सासाराम में अब लोग कहने लगे हैं — “यह चुनाव अब मां की आंखों का सवाल है।”
गिरफ्तारी के बाद बदला माहौल
कुछ हफ्ते पहले तक वातावरण सामान्य था। आरजेडी उम्मीदवार सत्येंद्र साह जनता से खुद मिलते थे, अपने मुद्दे रखते थे। लेकिन गिरफ्तारी के बाद माहौल बदल गया। घर पर सन्नाटा छाया, पर जनता ने दूरी नहीं बनाई। परिवार ने तय किया कि प्रचार नहीं रुकेगा। अब वही जनता, जो पहले नेता को सुनती थी, अब उनकी मां और पत्नी की बातें सुनकर भावुक होती है।
भावनाओं से भरा प्रचार अभियान
त्योहार के मौसम जैसा माहौल है, लेकिन यह एक अलग किस्म का उत्साह है। सासाराम की गलियाँ अब सियासी नहीं, संवेदनशील बन गई हैं। लोग अब सिर्फ दल नहीं, दिल देख रहे हैं। मां के आंखों की चमक, और बहू की आवाज़ में जो दर्द है, वही सबसे बड़ा प्रचार बन गया है। किसी ने दीवार पर लिखा — “जिस घर से मां निकल जाए, वहां राजनीति नहीं, इबादत होती है।” यह तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल भी हो चुकी है।
कार्यकर्ताओं में नया जोश
आरजेडी के स्थानीय कार्यकर्ता इस नयी प्रेरणा से और सक्रिय हो गए हैं। एक कार्यकर्ता ने कहा, “जब मां खुद निकल पड़ी हैं, तो हमें कैसे रुकना चाहिए?” वे हर गांव में पोस्टर लगा रहे हैं, और हर नुक्कड़ पर सास-बहू की मौजूदगी चर्चा का विषय बन गई है। यह प्रचार साधन कम, संदेश ज्यादा है — दृढ़ता, साहस और परिवार की। लोग इसे “सासाराम की सच्ची कहानी” कहने लगे हैं।
जनता का मिल रहा है साथ
सास-बहू का यह मिलाजुला प्रयास अब जनता के दिलों में जगह बना रहा है। गांव की महिलाएं कह रही हैं — “यह सिर्फ एक नेता की लड़ाई नहीं, यह हर औरत की लड़ाई है।” हर दरवाजे पर लोग उन्हें आशीर्वाद देते हैं। बच्चे उनका हाथ पकड़कर कहते हैं – “दादी, हम भी चलेंगे आपके साथ।” यह संवाद केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि मानवीय हो गया है। यह शायद पहली बार है जब सासाराम के चुनाव में प्रचार नहीं, अपनापन सबसे बड़ी ताकत बन गया है।
बहू की आवाज में उम्मीद
उम्र में भले फर्क हो, पर उनमें एक जैसी बात है — धैर्य और हिम्मत। बहू बताती हैं, “हम डरने वालों में नहीं हैं, साहब के मामले में न्याय होगा।” उनके चेहरे पर वह भरोसा है जो अब कई मतदाताओं में भी दिखाई देने लगा है। लोग कहते हैं — “बहू की जुबान में सच्चाई है, और मां की आंखों में संघर्ष।” इस जोड़ी ने इस बार चुनाव को संवेदना से भर दिया है।
आरजेडी के लिए बढ़ा मनोबल
पार्टी नेताओं के लिए यह दृश्य भावनात्मक है। वरिष्ठ नेता कहते हैं कि जनता से इस तरह का जुड़ाव अब दुर्लभ है। “मां और पत्नी का साहस हमारे लिए प्रेरणा है,” एक नेता बोले। उन्होंने कहा कि अब यह चुनाव जीत से आगे की बात है – यह जनता और परिवार के रिश्ते का प्रतीक बन गया है। सासाराम में अब प्रचार नहीं, संयम और सम्मान की कहानी लिखी जा रही है।


