Satta Ka Sangram : एनडीए ने किया मतभेद न होने का दावा, महागठबंधन ने किसानों के मुद्दे पर सरकार को घेरा

एनडीए ने किया मतभेद न होने का दावा, जबकि बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के सत्ता का संग्राम में महागठबंधन ने किसानों की आत्महत्या और रोजगार के सवालों पर सरकार को घेर लिया। समस्तीपुर रथ यात्रा मंच से नेताओं ने तमाम मुद्दों पर खुलकर अपनी बात रखी, जनता ने भी सवाल उठाए। यह बहस चुनावी राजनीति का असली रंग दिखाती है।

Satta Ka Sangram : एनडीए ने किया मतभेद न होने का दावा, महागठबंधन ने किसानों के मुद्दे पर सरकार को घेरा

Satta Ka Sangram: एनडीए ने कहा कोई मतभेद नहीं, महागठबंधन ने किसानों के सवाल पर सरकार को घेरा

 

दिन शनिवार का था, जगह समस्तीपुर। Satta Ka Sangram का मंच लगा था और भीड़ पहले से जुट चुकी थी। गर्मी थी, पर बहस उससे ज्यादा गर्म। क्योंकि Bihar Vidhan Sabha Chunav 2025 बस दरवाज़े पर है। माहौल ऐसा, जैसे कोई बड़ी फिल्म का ट्रेलर चल रहा हो — हर पार्टी अपने डायलॉग के साथ तैयार।

 

एनडीए का दावा: मतभेद शून्य, गठबंधन पहले से मजबूत

पहले मंच पर एनडीए के नेता आए। बोले— “हमारे बीच कोई मतभेद नहीं है। अफवाहें हैं बस।” चेहरे पर आत्मविश्वास, आवाज़ में ठहराव था। भाजपा के प्रतिनिधि ने कहा, “हम एक हैं, बिहार के विकास के लिए काम कर रहे हैं।”

लेकिन भीड़ में कुछ लोग मुस्कुरा रहे थे। शायद सोच रहे थे, वाकई सब ठीक है क्या? भीतर की बात कौन जाने। फिर भी, एनडीए का दावा साफ था— गठबंधन अटूट है। उन्होंने कहा कि Satta Ka Sangram में जीत निश्चित है, क्योंकि जनता विकास देखना चाहती है, विवाद नहीं।

 

महागठबंधन का प्रहार: किसान मरा, सरकार खामोश

जैसे ही माइक विपक्ष के पास गया, लहजा बदल गया। आरजेडी प्रवक्ता उठे और कहा— “जब खेत सूख रहे हैं, किसान खुद पर पानी डाल नहीं पा रहे, तब ये सरकार कहां है?” शब्दों में दर्द था, और गुस्सा भी। उन्होंने याद दिलाया कि पिछले साल कई जिलों में किसानों ने आत्महत्या की, लेकिन सरकार ने आँखे मूँद लीं।

महागठबंधन के एक नेता बोले, “एनडीए के पास योजनाएँ हैं, लेकिन ज़मीन पर कुछ नहीं। किसान आज भी इंतजार कर रहा है — मदद मिलेगी या बस फोटो खिंचवाएंगे?” इस पर जनता की तरफ़ से कुछ ताली बजी, कुछ ठहाके भी।

 

जनता की आवाज़ — नारों से ज़्यादा सवाल

कार्यक्रम में जनता का माहौल कुछ अलग था। किसान, छात्र, व्यापारी — सब अपनी बात कहने को बेचैन। एक युवक बोला, “हम रोज़ सुनते हैं कि बिहार बदल गया, मगर रोज़गार कहाँ है?” किसी ने कहा, “आपस में कम लड़ो, हमारी सुनो। हम ही वोट देंगे।”

ये लाइने ही शायद पूरी शाम का सार थीं। मंच पर बहसें तेज थीं, पर नीचे बैठे लोग शांति से सुन रहे थे — मानो सबको मालूम है कि असली फैसला कहीं उनके दिल में बैठेगा।

 

राजनीतिक गर्मी बढ़ी, बातें भिड़ीं लेकिन मुस्कानें भी रहीं

कार्यक्रम आगे बढ़ा। एक वक्त ऐसा आया जब एनडीए और महागठबंधन दोनों आमने‑सामने हो गए। शब्दों की जंग, लेकिन एक-दो जगह मुस्कानें भी थीं। जैसे दो पुराने प्रतिद्वंद्वी फिर उसी मैदान में आमने-सामने हों और दोनों जानते हों, ये खेल अनंत है।

एनडीए ने कहा, “हमने बिहार को सड़कें दीं, उद्योगों के दरवाजे खोले।” विपक्ष ने पलटकर जवाब दिया, “सड़क है, पर पेट भर नहीं रहा।” यह सुनकर सब हँस पड़े, लेकिन सच्चाई गहरी थी।

 

किसानों का दर्द — हर मंच पर वही सवाल

कार्यक्रम खत्म होता दिखा, पर किसानों का मुद्दा वहीं ठहरा रहा। कोई बोले, “हम वोट देंगे, मगर पेट भरना ज़रूरी है।” एक बूढ़े किसान ने कहा— “हम हर साल वोट देते हैं, पर हर साल बीज नहीं मिलता।”

यह बोलते हुए उसके हाथ काँप रहे थे। कैमरे उसकी ओर घूमे, सबने देखा, और कुछ सेकंड खामोशी छा गई। शायद यही सत्ता का संग्राम है — जब शब्द नहीं, सच्चाई बोलती है।

 

बेरोजगारी और युवाओं का आक्रोश

युवाओं का मुद्दा इस बार चुनाव का बड़ा सिरा बन चुका है। समस्तीपुर के कॉलेज छात्रों ने कहा कि वे पार्टी नहीं, जवाब चाहते हैं। “कभी नौकरी, कभी वादा, पर हकीकत कहाँ है?” — यह सवाल मंच से नहीं, सीधे नेताओं की आँखों में था।

एनडीए ने जवाब दिया, “हमने हजारों युवाओं को रोजगार दिया।” विपक्ष ने कहा, “संख्या बताइए।” और फिर माहौल गर्म — जैसे मैदान में गेंद हवा में रुकी हो और सबकी साँसें थम गई हों।

 

‘सत्ता का संग्राम’ ने बनाया जनता को बहस का हिस्सा

इस मंच की खासियत यही रही कि यहां सिर्फ नेता नहीं बोले, लोग भी बोले। एक महिला बोली, “हमें बस इतनी उम्मीद है कि अगली बार जो जीते, वह काम करे।” यह सीधी, सादी आवाज थी, जो हर टेलीविज़न बहस से ज्यादा प्रभावशाली थी।

Satta Ka Sangram के जरिए ये सामने आया कि बिहार की जनता अब भावनाओं से नहीं, नतीजों से वोट देगी। मंच पर बैठे सभी ने यह बात स्वीकार भी की।

 

6 और 11 नवंबर को बिहार तय करेगा दिशा

अब फैसला जनता के हाथ में है। दो चरणों में वोट होंगे — 6 और 11 नवंबर को। हर दल के लिए यह परीक्षा की घड़ी है। समस्तीपुर की जनता ने जो आवाज उठाई, वही अब पूरे बिहार की गूंज बन गई है।

एनडीए दावा कर रहा है कि उनकी एकजुटता ही जीत दिलाएगी, जबकि महागठबंधन को भरोसा है कि गरीब‑किसान और नौकरीपेशा उनकी ताकत बनेंगे।

 

अंत में भी एक सवाल बाकी रहा

कार्यक्रम खत्म हुआ, लेकिन लोगों के मन में सवाल रह गया — “क्या इस बार कुछ बदलेगा?” मंच खाली हो गया, लाइटें मंद पड़ीं, पर जमीन पर खड़े लोग वहीं चर्चा में जुटे थे।

शायद यही तो असली Satta Ka Sangram है — जब लड़ाई मंच पर नहीं, दिलों में चलती है। और बिहार, एक बार फिर, उसी संग्राम की तैयारी में है।