Shahjahanpur : में गर्रा नदी बनी आत्महत्या का अड्डा, 15 दिन में 7वीं घटना से फैली दहशत
शाहजहांपुर में गर्रा नदी आत्महत्या की घटनाओं का केंद्र बनती जा रही है। केवल 15 दिनों में यहां सात लोगों ने नदी में छलांग लगाकर अपनी जान दे दी। लगातार बढ़ती घटनाओं ने क्षेत्र में डर और चिंता का माहौल पैदा कर दिया है। प्रशासन और पुलिस की चुप्पी पर सवाल उठ रहे हैं। लोग मांग कर रहे हैं कि तुरंत सुरक्षा इंतजाम किए जाएं ताकि इस नदी को मौत का स्थान बनने से रोका जा सके।
उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले में गर्रा नदी के किनारे बुधवार को उस समय सनसनी फैल गई जब एक 55 वर्षीय महिला ने पुल से छलांग लगाकर अपनी जान दे दी। घटना की जानकारी मिलते ही आसपास मौजूद लोग सकते में आ गए। पुलिस और गोताखोरों की टीम ने महिला की तलाश शुरू की और थोड़ी ही देर में उसका शव बरामद कर लिया गया। इस घटना के बाद पूरे क्षेत्र में भारी दहशत का माहौल है क्योंकि पिछले पंद्रह दिनों में यह सातवीं आत्महत्या है जो इसी नदी में दर्ज की गई है। यह सवाल उठने लगे हैं कि आखिर क्यों लोग लगातार इस नदी को अपनी जान लेने का जरिया बना रहे हैं।
स्थानीय लोगों का कहना है कि महिला की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी और परिवारिक कलह से वह परेशान थी। हालांकि पुलिस का कहना है कि मामले की गंभीरता से जांच हो रही है ताकि असल वजह सामने आ सके। लोगों के बीच यह चर्चा भी जोर पकड़ रही है कि आखिर क्यों हाल के दिनों में गर्रा नदी एक दुखद घटनाओं का ठिकाना बन चुकी है।
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पंद्रह दिनों में सात आत्महत्याएं, क्यों लगातार बढ़ रहा है आंकड़ा
यह घटना पहली बार नहीं हुई है। अगर पूरे पंद्रह दिनों का रिकॉर्ड देखा जाए तो गर्रा नदी का नाम बार-बार सामने आया है। लगभग दो हफ्तों के भीतर सात लोगों ने इस नदी में छलांग लगाकर खुदकुशी कर ली। यह आंकड़ा प्रशासन और आम जनता दोनों के लिए बड़ा खतरे का संकेत है। जहां पुलिस इन घटनाओं को अलग-अलग मामलों के तौर पर देख रही है वहीं समाजशास्त्री और मानसिक स्वास्थ्य के जानकार इसे एक खतरनाक संदेश मान रहे हैं। उनका कहना है कि आत्महत्या की बढ़ती घटनाओं के पीछे तनाव, अकेलापन और परिवारिक दबाव जैसी समस्याएं जिम्मेदार हो सकती हैं।
लोगों का कहना है कि नदी के किनारे सुरक्षा के इंतजाम बिल्कुल कमजोर हैं। जिन पुलों से लोग कूद रहे हैं वहां किसी तरह की रोक-टोक नहीं है और न ही कोई चेतावनी बोर्ड लगा है। सवाल यह भी उठ रहा है कि आखिर इतनी जानें जाने के बाद भी प्रशासन अब तक क्यों कोई ठोस कदम नहीं उठा सका। लोग डरे हुए हैं कि अगर यही सिलसिला जारी रहा तो आने वाले दिनों में और त्रासदी देखने को मिल सकती है।
स्थानीय लोगों का डर और प्रशासन की चुप्पी
शाहजहांपुर की जनता आज बेचैन है। हर रोज शहर से गुजरने वाली गर्रा नदी अब एक खौफनाक जगह के रूप में देखी जाने लगी है। नदी किनारे रहने वाले परिवार अब अपने बच्चों और महिलाओं को वहां भेजने से भी डर रहे हैं। उनकी चिंता जायज भी है क्योंकि लगातार हो रही घटनाओं ने माहौल को असुरक्षित और डरावना बना दिया है। नदी किनारे रहने वाले दुकानदार और मछुआरे बताते हैं कि वे रोज किसी न किसी को पुल पर जाते हुए देखते हैं, लेकिन पहचान पाना आसान नहीं होता कि कौन वहां सामान्य काम से आया है और कौन किसी परेशान हालत में।
दूसरी ओर पुलिस और प्रशासन की चुप्पी पर सवाल उठने लगे हैं। जब घटनाओं का सिलसिला जारी है तो गश्त क्यों नहीं बढ़ाई गई? पुल के पास पुलिसकर्मी क्यों तैनात नहीं हैं? आखिर क्यों अब तक कोई सुरक्षा व्यवस्था नहीं की गई? प्रशासन की यह चुप्पी जनता की बेचैनी को और बढ़ा रही है। स्थिति यह है कि लोग सरकार और प्रशासन दोनों से कड़े कदम उठाने की मांग करने लगे हैं ताकि भविष्य में इस तरह की घटनाओं को रोका जा सके।
आत्महत्या रोकने के लिए कदम क्यों जरूरी
आत्महत्या आज सिर्फ शाहजहांपुर का नहीं बल्कि पूरे समाज का बड़ा सवाल है। बीते वर्षों में भारत में मानसिक स्वास्थ्य को लेकर चर्चा जरूर हुई है, लेकिन उसके लिए ठोस योजनाएं जमीन पर कम ही दिखती हैं। गर्रा नदी में घटती घटनाएं इसका एक बड़ा उदाहरण हैं कि जब लोग निराशा में डूब जाते हैं तो उन्हें रास्ता दिखाई नहीं देता और वे ऐसा कदम उठा लेते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे मामलों को रोकने के लिए सिर्फ पुलिस की चौकसी ही काफी नहीं होगी, बल्कि लोगों को समझाने और मानसिक स्वास्थ्य की दिशा में बड़े अभियान चलाने होंगे।
जरूरी है कि समाज और सरकार मिलकर लोगों तक यह संदेश पहुँचाएं कि आत्महत्या समस्या का समाधान नहीं है। जो लोग परेशान हैं, उन्हें सलाह और मदद आसानी से उपलब्ध कराई जाए। स्कूल, कॉलेज और गांवों तक मानसिक स्वास्थ्य पर बात की जाए ताकि लोग चुप रहने की बजाय खुलकर अपनी तकलीफ साझा कर सकें। प्रशासन को चाहिए कि नदी किनारे सीसीटीवी कैमरे लगाए जाएं और पुलों पर लगातार गश्त कराई जाए। इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए एक मजबूत सामाजिक और सरकारी पहल की सख्त जरूरत है।
गर्रा नदी और शहर की पहचान पर असर
शाहजहांपुर के लिए गर्रा नदी हमेशा से एक पहचान रही है। यह नदी गांवों और शहरों को जोड़ती है और हजारों लोग हर दिन इसके किनारे से गुजरते हैं। लेकिन पिछले दिनों में इस नदी का नाम जिस तरह बार-बार आत्महत्या की खबरों के साथ सामने आ रहा है, उसने शहर की छवि को धूमिल कर दिया है। लोग अब इस नदी का जिक्र डर और निराशा के साथ करने लगे हैं। शहर की चर्चाओं में अब गर्रा नदी खुशियों या सौंदर्य का प्रतीक नहीं रही, बल्कि खौफ और दर्द की जगह बन गई है।
अगर प्रशासन और समाज ने तुरंत कदम नहीं उठाए तो यह डर और गहरा हो सकता है। जरूरत है ऐसे माहौल को बदलने की, जिससे लोग नदी को फिर से एक जीवन देने वाली धारा के तौर पर देखें न कि आत्महत्या की जगह के रूप में। इसके लिए सिर्फ सुरक्षा ही नहीं बल्कि सकारात्मक पहल भी जरूरी है। नदी किनारे मनोरंजन और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जा सकते हैं जिससे लोगों का ध्यान अच्छी चीजों की ओर जाए और नकारात्मक विचारों को दूर किया जा सके।
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