शांति या युद्ध? शी जिनपिंग, पुतिन और किम की भव्य सैन्य परेड

बीजिंग में आयोजित भव्य सैन्य परेड में शी जिनपिंग ने रूस के पुतिन और उत्तर कोरिया के किम को साथ लाकर पूरी दुनिया को शांति व युद्ध के बीच नई चुनौती का संदेश दिया।

शांति या युद्ध? शी जिनपिंग, पुतिन और किम की भव्य सैन्य परेड

चीन की राजधानी बीजिंग हाल ही में उस दिन की गवाह बनी जब राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने एक विशाल सैन्य परेड का आयोजन किया। इस भव्य आयोजन में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग उन भी मौजूद रहे। यह केवल सैन्य क्षमता का प्रदर्शन नहीं था, बल्कि वैश्विक स्तर पर एक संदेश भेजने की कोशिश भी थी—शांति की बात होगी या दुनिया को युद्ध के माहौल की ओर धकेला जाएगा।

वैश्विक पर नजरें

पूरी दुनिया की निगाहें इस परेड पर टिकी हुई थीं। एक ओर जहां चीन ने अपनी आर्थिक और तकनीकी ताकत के साथ-साथ सैन्य शक्ति का प्रदर्शन किया, वहीं दूसरी ओर इसका राजनीतिक अर्थ भी निकाला जा रहा है। अमेरिका और यूरोप के कई देशों ने इसे भविष्य की भू-राजनीतिक जंग के संकेत के तौर पर देखा।

 

परेड में दिखाई गई शक्ति

परेड में चीन की नवीनतम मिसाइलें, ड्रोन्स और आधुनिक हथियारों का प्रदर्शन किया गया। हजारों की संख्या में सैनिक, टैंक, फाइटर जेट्स और नौसैनिक उपकरणों ने अपनी मौजूदगी दर्ज कराई। यह परेड न केवल चीन की सैन्य शक्ति का प्रतीक थी बल्कि अपनी मर्जी से विश्व व्यवस्था को आकार देने की उसकी महत्वाकांक्षा को भी दर्शाती थी।

 

पुतिन और किम की मौजूदगी का महत्व

इस आयोजन में पुतिन और किम जोंग उन की उपस्थिति ने इसे और भी खास बना दिया। तीन देशों के शीर्ष नेताओं का एक मंच पर आना दुनिया के लिए एक बड़ा भू-राजनीतिक संदेश था। पुतिन की मौजूदगी रूस और चीन के बढ़ते रिश्तों का संकेत थी, वहीं किम जोंग उन की भागीदारी इसे अमेरिका और पश्चिमी देशों के लिए चुनौती के तौर पर देखी गई।

 

साझा मंच से निकला संदेश

इस बड़े आयोजन का मकसद केवल शक्ति प्रदर्शन नहीं था। शी जिनपिंग, पुतिन और किम ने मिलकर दुनिया के सामने यह संदेश देने की कोशिश की कि यदि पश्चिमी देशों ने दबाव बढ़ाया तो इनकी साझेदारी वैश्विक राजनीति में बड़ा बदलाव ला सकती है। कई विशेषज्ञ मानते हैं कि यह "शांति या युद्ध" के दोहरे विकल्प वाली स्थिति तैयार करना है।

 

राजनयिक समीकरण

इस आयोजन के बाद यह साफ हो गया कि चीन, रूस और उत्तर कोरिया एक नए प्रकार के रणनीतिक गठबंधन की ओर बढ़ रहे हैं। यह न केवल रक्षा साझेदारी है, बल्कि आर्थिक और राजनीतिक मोर्चे पर भी सहयोग बढ़ाने की दिशा में इशारा करता है। अमेरिका और उसके सहयोगी देशों को यह साफ संदेश गया कि अब वैश्विक शक्ति संतुलन में बदलाव आ सकता है।

 

पश्चिमी देशों की चिंता

अमेरिकी विदेश मंत्रालय और यूरोपीय संघ ने इस पर चिंता जताई है। उनका मानना है कि यह परेड दुनिया को दो ध्रुवों में बाँटने का प्रयास है। यदि यह ध्रुवीकरण और बढ़ता है तो शांति के बजाय संघर्ष की आशंका ज्यादा होगी। कई देशों के नेताओं ने इसे संतुलन बिगाड़ने वाली घटना बताया और कहा कि आने वाले समय में यह स्थिति अंतर्राष्ट्रीय संकट को जन्म दे सकती है।

 

एशिया पर असर

इस परेड ने एशियाई देशों को भी गहराई से प्रभावित किया है। भारत, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देश अब अपने सुरक्षा समीकरणों पर पुनर्विचार कर रहे हैं। भारत विशेष रूप से यह देख रहा है कि चीन, रूस और उत्तर कोरिया का यह गठजोड़ उसकी सुरक्षा और कूटनीति को किस हद तक चुनौती दे सकता है। जापान और दक्षिण कोरिया पहले से ही उत्तर कोरिया की गतिविधियों को लेकर चिंतित हैं।

 

जनता की प्रतिक्रिया

चीन में इस आयोजन को राष्ट्रीय गर्व का प्रतीक बताया गया। सोशल मीडिया पर चीनी नागरिकों ने सैन्य परेड की तस्वीरें और वीडियो साझा करते हुए कहा कि यह उनके देश की शक्ति और स्वाभिमान की निशानी है। वहीं दूसरी ओर, दुनिया के अन्य हिस्सों में लोग इसे डर और धमकी के प्रतीक के रूप में देख रहे हैं।

 

विशेषज्ञों की राय

अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों का मानना है कि यह परेड केवल

बीजिंग में हुई इस सैन्य परेड का उद्देश्य क्या था?
इस सैन्य परेड का मुख्य उद्देश्य चीन की शक्ति का प्रदर्शन करना और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह संदेश देना था कि चीन, रूस और उत्तर कोरिया साथ मिलकर वैश्विक राजनीति को प्रभावित कर सकते हैं।
इस परेड में पुतिन और किम की मौजूदगी क्यों अहम थी
व्लादिमीर पुतिन और किम जोंग उन की मौजूदगी से यह स्पष्ट संदेश गया कि रूस, चीन और उत्तर कोरिया का रणनीतिक गठबंधन और भी मज़बूत हो रहा है, जो पश्चिमी दुनिया के लिए चुनौती है।
अमेरिका और पश्चिमी देशों की प्रतिक्रिया क्या रही
अमेरिका और यूरोप ने इस परेड पर चिंता व्यक्त की। उनका मानना है कि यह शक्ति प्रदर्शन दुनिया को दो ध्रुवों में बाँटने और नया तनाव पैदा करने की कोशिश है।
इसका एशियाई देशों पर क्या असर पड़ेगा
भारत, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देश क्षेत्रीय सुरक्षा समीकरणों पर पुनर्विचार कर सकते हैं। खासतौर पर उत्तर कोरिया और चीन के कदम एशिया की स्थिरता को प्रभावित कर सकते हैं।
विशेषज्ञ इस पूरे आयोजन को कैसे देखते हैं
अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ मानते हैं कि यह परेड केवल सैन्य शक्ति दिखाने का मंच नहीं थी, बल्कि यह संकेत था कि चीन और उसके सहयोगी निकट भविष्य में वैश्विक राजनीति का संतुलन बदल सकते हैं।