Sharad Purnima 2025: चांद की रोशनी में खीर रखने का शुभ मुहूर्त और महत्व

शरद पूर्णिमा 2025 का त्योहार 6 अक्टूबर को सोमवार के दिन मनाया जा रहा है। इस दिन चंद्रमा पूरी तरह चमकता है और उसकी किरणों में खीर रखने से स्वास्थ्य और समृद्धि मिलती है। भद्रा काल और पंचक के बावजूद खीर रखने का शुभ मुहूर्त रात 10:46 बजे से सुबह 6:17 बजे तक है। इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा, दान-पुण्य और चंद्र देव को अर्घ्य देना अत्यंत फलदायी माना जाता है।

Sharad Purnima 2025: चांद की रोशनी में खीर रखने का शुभ मुहूर्त और महत्व

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    हिंदू धर्म में शरद पूर्णिमा का त्योहार बहुत ही पवित्र माना जाता है। इस साल यह खुशी का दिन 6 अक्टूबर 2025 को सोमवार के दिन मनाया जा रहा है। यह वो खास रात है जब चांद मामा अपनी पूरी चमक के साथ आसमान में दिखाई देते हैं और लोग उनकी रोशनी में खीर रखकर अगली सुबह उसे प्रसाद के रूप में खाते हैं।

     

    शरद पूर्णिमा का सही समय और तिथि

    आश्विन मास की पूर्णिमा तिथि इस बार 6 अक्टूबर को दोपहर 12 बजकर 23 मिनट से शुरू हो रही है। यह तिथि अगले दिन यानी 7 अक्टूबर की सुबह 9 बजकर 16 मिनट तक चलेगी। इसलिए शरद पूर्णिमा का मुख्य त्योहार 6 अक्टूबर को ही मनाया जाएगा। इस दिन चांद निकलने का समय शाम को 5 बजकर 31 मिनट का है।लेकिन इस बार एक खास बात यह है कि 6 अक्टूबर को भद्रा काल भी लग रहा है। यह भद्रा काल दोपहर 12 बजकर 23 मिनट से रात 10 बजकर 53 मिनट तक रहेगा। इसके अलावा पंचक भी चल रहा है जो 3 अक्टूबर से शुरू होकर 8 अक्टूबर तक रहेगा।

     

    चांद की रोशनी में खीर रखने का सही मुहूर्त

    शास्त्रों के अनुसार खीर को चंद्रमा की रोशनी में रखने का सबसे अच्छा समय भद्रा काल के बाद का है। इस साल खीर रखने का शुभ मुहूर्त रात 10 बजकर 54 मिनट के बाद से शुरू होगा। आप अपनी बनाई गई खीर को 6 अक्टूबर की रात 10:46 बजे से रख सकते हैं और यह समय 7 अक्टूबर की सुबह 6 बजकर 17 मिनट तक चलेगा।खीर को रखते समय इस बात का विशेष ध्यान रखें कि इसे किसी जालीदार कपड़े या छलनी से ढककर रखना चाहिए। ऐसा इसलिए करते हैं ताकि कोई कीड़ा-मकोड़ा खीर में न गिर जाए। खीर को खुले आसमान के नीचे रखना जरूरी है जहां चांद की रोशनी सीधे पड़े।

     

    क्यों खास है शरद पूर्णिमा का चांद

    शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा अपनी 16 कलाओं से पूर्ण होता है। हिंदू मान्यता के अनुसार इस रात चांद की किरणों से अमृत की वर्षा होती है। यही कारण है कि इस दिन को साल की सबसे पवित्र और शुभ पूर्णिमा माना जाता है। चंद्रमा का संबंध दूध से है, इसलिए दूध से बनी चीजों को इस रात चांद की रोशनी में रखने से वे अमृत के समान गुणकारी हो जाती हैं।पुराणों में लिखा है कि इस रात भगवान श्रीकृष्ण ने गोपियों के साथ रास लीला की थी। इसलिए इसे रास पूर्णिमा भी कहते हैं। साथ ही यह भी माना जाता है कि इस दिन मां लक्ष्मी धरती पर आती हैं। इसलिए इस दिन जागरण करके मां लक्ष्मी की पूजा करने का विधान है।

     

    खीर बनाने और खाने के फायदे

    शरद पूर्णिमा की रात चांद की रोशनी में रखी गई खीर खाने से शरीर और मन दोनों को शुद्धता मिलती है। इस खीर में दिव्य औषधीय गुण आ जाते हैं जो स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छे होते हैं। धार्मिक मान्यता है कि इस प्रसाद को खाने से आरोग्य की प्राप्ति होती है और घर में सुख-समृद्धि आती है।खीर बनाते समय सबसे अच्छा यह होता है कि आप चावल, दूध, चीनी और सूखे मेवों का इस्तेमाल करें। इसे पूरे प्रेम और श्रद्धा के साथ बनाना चाहिए। कई लोग इसमें केसर भी डालते हैं जो खीर को और भी स्वादिष्ट बना देता है।

     

    शरद पूर्णिमा के दिन अन्य महत्वपूर्ण कार्य

    इस पावन दिन केवल खीर रखना ही नहीं, बल्कि और भी कई शुभ काम किए जा सकते हैं। सुबह जल्दी उठकर स्नान करना चाहिए। मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। चंद्र देव को अर्घ्य देना भी बहुत शुभ माना जाता है।इस दिन दान-पुण्य करने से विशेष फल मिलता है। गरीबों को खाना खिलाना, कपड़े दान करना और जरूरतमंदों की मदद करना बहुत अच्छा फल देता है। व्रत रखने वालों के लिए यह दिन बहुत ही पुण्यदायी है।

     

    सावधानियां और विशेष बातें

    खीर को चांद की रोशनी में रखते समय कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना जरूरी है। पहली बात यह है कि खीर को साफ बर्तन में ही रखें। दूसरी बात यह है कि इसे किसी ऊंची जगह पर रखें ताकि कोई जानवर न पहुंच सके। तीसरी बात यह है कि अगर मौसम खराब हो और बादल हों तो भी कोई बात नहीं, क्योंकि चांद की शक्ति बादलों के पार भी काम करती है।

    सबसे जरूरी बात यह है कि पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ यह काम करना चाहिए। शरद पूर्णिमा का त्योहार हमारी संस्कृति का एक अमूल्य हिस्सा है जो हमें प्रकृति से जोड़ता है। इस दिन का चांद हमारे जीवन में नई ऊर्जा और सकारात्मकता लेकर आता है।

    शरद पूर्णिमा पर भद्रा काल में क्या करें?

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