शरजील इमाम ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया, बोले- मुझे भी चुनाव लड़ने दो
दिल्ली की ठंडी दीवारों के बीच बैठा एक शख्स फिर खबरों में है। नाम है शरजील इमाम। कभी जेएनयू का छात्र, अब एक विवादित चेहरा। इस बार वजह कोई भाषण नहीं, बल्कि बिहार विधानसभा चुनाव है। शरजील ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई है। मांग छोटी सी—बस 14 दिन की अंतरिम जमानत। वजह, वो अपने गांव की मिट्टी से जुड़ना चाहते हैं। बहादुरगंज सीट से चुनाव लड़ना है। निर्दलीय उम्मीदवार बनकर।
राजनीति में उतरने का इशारा
कहते हैं, कुछ फैसले अचानक नहीं होते। वो धीरे-धीरे पकते हैं। जैसे यह वाला। शरजील ने कड़कड़डूमा कोर्ट में पहले ही कहा था कि उन्हें 15 से 29 अक्टूबर तक बाहर निकलने दिया जाए। ताकि वो नामांकन कर सकें, लोगों से मिल सकें। अदालत ने इनकार कर दिया। लेकिन वो रुके नहीं। बोले—अब सुप्रीम कोर्ट ही सही।
उनकी बात में आत्मविश्वास भी था, और एक हल्की जिद भी। “मैं चुनाव लड़ना चाहता हूं। जनता के बीच जाना चाहता हूं।” ये उनके शब्द हैं। थोड़ा सख्त, थोड़ा सीधा।
कड़कड़डूमा कोर्ट से झटका, अब सुप्रीम कोर्ट में उम्मीद
कड़कड़डूमा कोर्ट ने साफ मना कर दिया था। कहा गया—आरोप गंभीर हैं। इतनी आसानी से बाहर नहीं जा सकते। लेकिन शरजील ने हार नहीं मानी। अब उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में दस्तक दी है। 14 दिन की जमानत, बस उतनी ही। वो कहते हैं, लोकतंत्र में हर किसी को बराबरी का हक है। “अगर मैं जेल में हूं, तो क्या मेरा हक खत्म हो गया?” यह सवाल उन्होंने कोर्ट से किया है।
शरजील कौन हैं, और क्यों चर्चा में रहते हैं
शरजील का नाम पहली बार 2019-20 में उभरा था। सीएए और एनआरसी के विरोध में। जामिया और शाहीन बाग के बीच जब सड़कों पर नारे गूंज रहे थे, तब वही थे शरजील। उनका एक भाषण वायरल हुआ, और फिर सब कुछ बदल गया। उन पर देशद्रोह और UAPA जैसी धाराएँ लगीं। पुलिस ने कई राज्यों से मुकदमे ठोके। वो पकड़े गए। और तब से जेल में हैं।
लोग उन्हें या तो नायक मानते हैं, या गुनहगार। बीच की कोई राय नहीं।
बहादुरगंज क्यों? वहां की मिट्टी में कहानी है
शरजील का गांव किशनगंज जिले के बहादुरगंज क्षेत्र में है। यही उनका बचपन, यही उनकी जड़ें। शायद इसलिए उन्होंने तय किया कि अगर कहीं से शुरुआत करनी है, तो यहीं से। कहा—“मैं अपनी जनता की आवाज बनना चाहता हूं।” यह इलाका मुस्लिम बहुल है, और यहां के मुद्दे पुराने हैं—बेरोजगारी, शिक्षा, और पलायन। शायद वो इन्हीं सवालों पर बात करना चाहते हैं।
कानूनी लड़ाई अब और मुश्किल
उन पर लगे केस हल्के नहीं हैं। देशद्रोह, उकसाने और अवैध गतिविधि निवारण कानून के तहत मुकदमे चल रहे हैं। हर सुनवाई में नए सवाल उठते हैं। वकील कहते हैं—“यह सिर्फ जमानत नहीं, संविधान के अधिकार की बात है।” वहीं, सरकार की ओर से दलील आती है—“अगर बाहर गए, तो माहौल बिगड़ सकता है।” अब फैसला सुप्रीम कोर्ट के हाथ में है।
राजनीति में हलचल, लोग बोलने लगे हैं
बिहार की गलियों में इस खबर ने आग लगा दी है। कुछ लोग कहते हैं—“देखो, वो लोकतंत्र में भाग लेना चाहता है।” दूसरे कहते हैं—“यह सियासत है, रणनीति है।” सोशल मीडिया पर बहस गर्म है। कोई समर्थन में, कोई विरोध में। लेकिन एक बात तय है—शरजील इमाम अब फिर से चर्चा के केंद्र में हैं।
बिहार चुनाव में नया मोड़?
बिहार की बहादुरगंज सीट पहले भी दिलचस्प रही है। वहां हर बार जाति, धर्म और स्थानीय मुद्दे टकराते हैं। अब अगर शरजील मैदान में उतरते हैं, तो यह मुकाबला और रंगीन हो जाएगा। कुछ लोग कहते हैं—“उन्हें ज्यादा वोट नहीं मिलेंगे।” पर क्या पता, कभी-कभी एक नाम ही काफी होता है चर्चा के लिए।
अब निगाहें सुप्रीम कोर्ट पर
सभी की नजरें अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर हैं। अगर कोर्ट ने राहत दी, तो शरजील 14 दिनों के लिए आज़ाद होंगे। वे प्रचार कर सकेंगे, लोगों से मिल सकेंगे। अगर याचिका खारिज हुई, तो कहानी वहीं थम जाएगी। या शायद, एक नया मोड़ लेगी। क्योंकि राजनीति में कोई अंत नहीं होता, बस रुकावटें होती हैं।
लोकतंत्र या रणनीति? सवाल अभी बाकी है
कुछ लोग कहते हैं यह लोकतंत्र की ताकत है। तो कुछ मानते हैं कि यह एक सोची-समझी चाल है। सच क्या है, कोई नहीं जानता। लेकिन शरजील ने फिर से साबित किया कि वो चुप रहने वालों में से नहीं हैं। वो बोलते हैं। और जब बोलते हैं, तो सुना जाता है।
Gaurav Jha
मैं गौरव झा, GCShorts.com पर संपादकीय दिशा, SEO और प्लेटफ़ॉर्म के तकनीकी संचालन का नेतृत्व करता हूँ। मेरा फोकस तेज़, मोबाइल-फर्स्ट अनुभव, स्पष्ट सूचना संरचना और मज़बूत स्ट्रक्चर्ड डेटा पर है, ताकि पाठकों तक भरोसेमंद खबरें शीघ्र और साफ़ तरीके से पहुँचें। पाठकों और समुदाय से मिलने वाले सुझाव/फ़ीडबैक मेरे लिए अहम हैं उन्हीं के आधार पर कवरेज, UX और परफ़ॉर्मेंस में लगातार सुधार करता रहता हूँ।